शुक्रवार, 5 जनवरी 2024

 कहते हैं कि हम धर्म बदल

 सकते हैं,किंतु जाति नहीं

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हालांकि एक पिछड़ी जाति का व्यक्ति सोम यज्ञ 

करके ब्राह्मण बन गया था।

यह कैसे संभव हुआ ? !

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सुरेंद्र किशोर

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राज्य सभा के सदस्य रहे भाजपा नेता

तरुण विजय ने नागपुर के डा.श्रीकांत जिचकर के बारे में पांचजन्य (13 जून 2004)में लिखा था--

‘‘विद्वान शिरोमणि यौवन तेज से भरपूर सुदर्शन चेहरा एवं वाणी मेें नूतन ब्राह्मण का परिमर्जित माधुर्य।’’

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 पिछड़ी जाति में जन्मे डा.जिचकर ने खुद कहा था कि 

‘‘अब मैं दीक्षित हो गया हूं।

 दीक्षा प्राप्त करने के बाद ब्राह्मणत्व की श्रेष्ठत्तम परंपरा में सम्मिलित हो गया हूं। 

मैं जन्म से ब्राह्मण नहीं था।

 परंतु घर में अग्नि प्रतिष्ठापित कर अग्निहोत्र धर्म का नियमानुसार पालन कर और अब सोम यज्ञ द्वारा दीक्षित होने के बाद मैं स्वयं को दीक्षित कहने का अधिकारी हो गया हूं।’’

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सर्वाधिक शिक्षित होने का विश्व रिकाॅर्ड कायम कर चुके दिवंगत डा.जिचकर के बारे में जान लीजिए।

 जिचकर (1954--2004)न सिर्फ महाराष्ट्र सरकार के  मंत्री थे बल्कि राज्य सभा के सदस्य भी थे।

वह महाराष्ट्र विधान परिषद के भी सदस्य रहे।

उन्होंने कांग्रेस के टिकट पर एक बार लोक सभा का चुनाव भी लड़ा था।

पर वे विफल रहे।

सत्तर के दशक में इंदिरा गांधी की गिरफ्तारी के विरोध में उन्होंने भारतीय पुलिस सेवा से  इस्तीफा दे दिया था।

     जिचकर एम.बी.बी.एस. और एम.डी. थे।

 वह एलएल.बी., एलएल.एम. और एम.बी.ए. भी थे।

उन्होंने पत्रकारिता की भी डिग्री ली थी।

दस विषयों में एम.ए. थे।

1973 से 1990 के बीच उन्होंने कुल 20 डिग्रियां लीं।

सारी परीक्षाओं में उन्होंने प्रथम श्रेणी में उत्तीर्णता हासिल की।

उन्हें कई स्वर्ण पदक भी मिले।

वह संस्कृत में डि लिट थे।

 1978 में आई.पी.एस.बने।

 इस्तीफा देने के बाद आई.ए.एस.बने।

1980 में महाराष्ट्र विधान सभा के सदस्य बने। 

मंत्री भी बने।

 उनके पास 14 विभाग थे।

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   डा. जिचकर का नाम लिम्का बुक आॅफ वल्र्ड रिकाॅर्ड में  भारत के सबसे अधिक योग्य और निपुण व्यक्ति के नाते दर्ज है।

 वित्त मंत्री के रूप में उन्होंने जीरो बजट की अवधारणा को कार्यरूप दिया था। 

डा. जिचकर को समय -समय पर याद करके नागपुर का  अभिभावक अपने बच्चों से कहता है कि ‘बेटा, बड़ा होकर श्रीकांत जिचकर की तरह बनना। ’

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वह आधुनिक राजनीति में एक,संभवतः एकमात्र, ऐसे व्यक्ति थे जिनको कोई पिता दिल्ली में अपनी संतान का स्थानीय अभिभावक बना सकता था।

 आज कितने अभिभावक दिल्ली में अपनी संतान का लोकल र्गािर्जयन किसी सांसद को बनाना पसंद करेंगे ?

   डा. जिचकर ने नागपुर में एक विद्यालय की स्थापना की थी ।

उस स्कूल के बारे में अभिभावकों से अपील करते हुए अखबार में विज्ञापन छपा था, 

‘‘ डा. श्रीकांत जिचकर जिस विद्यालय में अपने बेटे को प्रवेश दिला रहे हैं, क्या आप अपने बच्चों को भी उसी विद्यालय में पढ़ाना चाहेंगे ? ’’

 इस विज्ञापन के छपते ही सैकड़ों अभिभावकों की भीड़ लग गई थी।

यानी, उन्होंने एक ऐसा गुणवत्तापूर्ण स्कूल स्थापित किया था जिसमें उनका बेटा भी पढ़ सके।

   इतनी अधिक पढ़ाई लिखाई करने के साथ -साथ वह छात्र राजनीति में भी रूचि लेते थे।

वह  नागपुर छात्र संघ के अध्यक्ष भी  थे।

 इसके अलावा भी उनके पास डिग्रियां और उपलब्धियां थीं। 

सन् 1983 में दुनिया के दस सर्वाधिक प्रमुख युवा व्यक्तियों की सूची में 

 शामिल होने का सम्मान उन्हें मिला था।

  वह सन 1992 में राज्य सभा के सदस्य चुने गए।

पी.वी.नरसिंह राव उन्हें पसंद करते थे।

राव ने डा. जिचकर को इंदिरा गांधी से मिलवाया था।

डा.जिचकर ने  अधिकतर देशों की यात्राएं की थीं।

उनके निजी पुस्तकालय में 52 हजार पुस्तकें थीं।

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वे छायांकन, चित्र कला, रंगकर्म के भी जानकार थे।

 उन्हें संपूर्ण गीता कंठस्थ थी। 

साथ ही उन्होंने वेदों और उपनिषदों का गहन अध्ययन किया था।

    खेतिहर परिवार के जिचकर के साथ एक सुविधा अवश्य थी कि पैसे की कमी के कारण उनका कोई काम नहीं रुका।

 एक व्यक्ति सिर्फ 50 साल की उम्र में ही यह सब प्राप्त कर ले, यह अकल्पनीय लगता है।

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    उनमें  और भी अनेक गुण थेे।

पर सबसे बड़ी बात यह थी कि वे राजनीति में भी थे।

 यानी ऐसे लोग राजनीति में आ सकते हैं ,यदि उनके लिए सम्मानपूर्ण जगह बनाई जाए।

 हालांकि आज जितने लोग राजनीति मंे हैं, उनमें से भी अनेक लोग योग्य और कत्र्तव्यनिष्ठ हैं।अभी भाजपा के राज्य सभा सदस्य डा.सुधांशु त्रिवेदी श्रेष्ठ हैं।

 पर, वैसे लोगों की संख्या घटती जा रही है।

यह लोकतंत्र के लिए चिंताजनक बात है।

   डा. जिचकर जैसी विभूतियों को समय -समय पर याद करके नई पीढ़ी को प्रेरित किया जा सकता है।

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5 जनवरी 23


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