सोमवार, 29 मई 2023

 बागेश्वर बाबा धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री की ‘कथा’ में 

देश भर में उमड़ती भीड़ का निहितार्थ समझिए

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सुरेंद्र किशोर

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सन 1990-91 में लालू प्रसाद की सभाओं में जुट रही भारी भीड़ का निहितार्थ जिसने नहीं समझा,उन्हें 15-20 साल तक ‘झेलना’ पड़ा।

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2013-14 में नरेंद्र मोदी की सभाओं की भारी भीड़ का निहितार्थ जिसने नहीं समझा,उन्हें अब तक मोदी को ‘झेलना’ पड़ रहा है।

आगे भी नहीं झेलना पड़ेगा,इसकी कोई गारंटी नहीं।

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अब आइए ‘बागेश्वर बाबा’ के लिए जुटती अभूतपूर्व भीड़ पर ।

इस भीड़ का निहितार्थ नहीं समझिएगा तो काफी लंबे समय तक उस स्थिति को ‘झेलना’ पड़ेगा जिसकी आपको कल्पना नहीं होगी।

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इसलिए बागेश्वर बाबा को हंसी में मत उड़ाइए।खुद में जल्द से जल्द सुधार की लीजिए।

देश की समाज-नीति -राज-नीति की जहां तक मेरी समझ है,उसके अनुसार मेरा यह मानना है कि बागेश्वर बाबा के लिए जुट रही भीड़ असामान्य है।मौजू है।कुछ खास संदेश दे रही है।

उससे काफी महत्व की बातें जुड़ी हुई हंै,सिर्फ चमत्कार नहीं।

किसी बड़े से बड़े बाबा के लिए ऐसी रिस्पोंसिव भीड़ यानी रूचि व उत्साहपूर्वक पक्ष में भावना व्यक्त करने वाली भीड़ पहले नहीं मिलती थी।

धीरेंद्र शास्त्री की हिन्दू राष्ट्र की बात को लेकर अधिक उत्साह है,यह जाहिर है।

हालांकि हिन्दू राष्ट्र बनाने का उनका वादा संविधान विरोधी है और गलत भी है।

पर,जब देश के कोई भी तथाकथित सेक्युलर राजनीतिक दल, जेहादी संगठन पी.एफ.आई. के सन 2047 वाले घोषित लक्ष्य पर बयान तक नहीं दे पा रहा है,उल्टे कांग्रेस हाल में उसी संगठन से जुड़े एस.डी.पी.आई. की मदद से कर्नाटका का चुनाव जीत जाती है तो बागेश्वर बाबा का जन समर्थन क्यों नहीं बढ़ेगा ?सब तरफ से निराश लोग बाबा के पास जा रहे हैं।

अनेक लोग जब यह देख रहे हैं कि बड़े- बड़े राजनीतिक दल जेहादियों से हमें व हमारे वंशज को नहीं बचाएंगे क्योंकि उन्हें तो सिर्फ वोट बैंक चाहिए,ऐसे में शायद ‘‘बागेश्वर सरकार’’ हमारे काम आ जाएं !!

मरता ,क्या न करता !! 

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इस तथ्य को कोई झुठला नहीं सकता कि ममता सरकार की मदद से सैकड़ों बंगलादेशी-रोहिंग्या घुसपैठिए इस देश में रोज प्रवेश कर रहे हैं।वे पूरे देश में फैलते जा रहे हैं।हाल के दशकों में इस देश के कई जिले हिन्दू बहुल से मुस्लिम बहुल हो गए और होते जा रहे हैं। जाकिर नाइक को यह बोलते हुए सुना-देखा जा रहा है कि भारत में मुस्लिमों की आबादी अब 40 प्रतिशत हो चुकी है।

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याद रहे कि पी.एफ.आई.ने यह लक्ष्य तय किया है कि वह हथियारों के बल पर भारत को 2047 तक इस्लामी राष्ट्र बना देगा।

इसके लिए वह हजारों हथियार बांट रहा है और लाखों लश्कर तैयार कर रहा है।केरल में तो उसके लश्कर यूनिफार्म में ‘सैन्य परेड’ भी कर रहे हंै।

पी.एफ.आई.कहता है कि यदि हमारे साथ इस देश के 10 प्रतिशत मुस्लिम भी आ जाएं तो हम अपना लक्ष्य पूरा कर लेंगे।

यह इस देश के लिए सौभाग्य की बात है कि पी.एफ.आई.के साथ 10 प्रतिशत भी मुसलमान नहीं है।उन मुसलमानों को सलाम जो पी.एफ.आई.का साथ नहीं दे रहे हैं।पर,उन दलों को शर्म आनी चाहिए जो वोट व सत्ता के लिए देश की सुरक्षा को खतरे में डाल रहे हैं।

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कम संख्या में होने के बावजूद जब तब व जहां तहां हिंसा फैलाने के लिए जितने लोगों की जरूरत होती है,उतने लोग पी.एफ.आई.के साथ आज भी हैं।

देश की कई राज्य सरकारें वोट के लिए पी.एफ.आई.का समर्थन कर रही हैं।

भाजपा जब 2014 में केंद्र में सत्ता में आई थी,तब अनेक लोगों को यह उम्मीद थी कि वह इस मामले में कुछ खास करेगी।यानी जिस तरह चीन सरकार जेहादी उइगर मुसलमानों के खिलाफ कठोरत्तम कार्रवाई कर रही है,उसी तरह की कार्रवाई भाजपा सरकार  भारत में करेगी।

पर भाजपा सरकार से इस मामले में कई लोगों को निराशा ही मिल रही है।बी.एस.एफ.भी बंाग्ला देश की सीमा से घुसपैठियों को पश्चिम बंगाल में  आने से रोकने में विफल हैं।लोगबाग उसके कारण की चर्चा भी करते हैं।अमित शाह को उस चर्चा की नोटिस लेनी चाहिए।

ऐसे निराश लोग बाबा बागेश्वर की ओर उम्मीद भरी नजरों से देख रहे हैं।

आगे क्या -क्या होगा,यह देखना दिलचस्प होगा।

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किंतु तथाकथित सेक्युलर दल यदि चाहते हैं कि पी.एफ.आई. के प्रत्यक्ष-परोक्ष मदद से वे केंद्र की सत्ता हासिल कर लेंगे तो वह उनके लिए प्रति उत्पादक ही साबित होगा।

वैसी सत्ता अधिक दिनों नहीं चलेगी।

इसलिए कि पी.एफ.आई.किसी का नहीं है।

याद रहे कि कर्नाटका की नयी कांग्रेसी सरकार ने पी.एफ.आई. के कुछ एजेंडा पर काम करना शुरू भी कर दिया है।

केंद्र में कोई नयी सरकार बनेगी तो उसे भी वह सब एजेंडा लागू करना पड़ेगा।

फिर बाबा बागेश्वर का ‘जन समर्थन’ भाजपा के साथ जुड़ जाएगा।

अभी तो बागेश्वर बाबा कह रहे हैं कि हमारा किसी दल से कोई संबंध नहीं।दल हमसे अलग ही रहें।

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जेपी आंदोलन जब शुरू हुआ था तो छात्र-युवा बड़े -बड़े राजनीतिक नेताओं को अपने मंच से उतार दिया करते थे।

पर,जब प्रशासन का दमन शुरू हुआ तो बाद में प्रतिपक्षी नेताओं के मजबूत कंधे ही अंततः उनके काम आए।

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 29 मई 2023

 


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