शुक्रवार, 5 दिसंबर 2025

 संदर्भ-आई.ए.एस.संतोष वर्मा की ब्राह्मणों के खिलाफ आपत्तिजनक टिप्पणी

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हर जाति में अच्छे-बुरे लोग होते हैं।

आलोचना व्यक्ति की करिए, जाति की नहीं

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सुरेंद्र किशोर

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आज मैं यहां ब्राह्मण के खिलाफ अभद्र टिप्पणियों की चर्चा करूंगा।क्योंकि हाल में मध्य प्रदेश के एक आई.ए.एस.अफसर ने अभद्र टिप्पणी की है जो पूरी तरह अस्वीकार है।

  मैं ब्राह्मण नहीं हूं किंतु मैं ब्राह्मणों का प्रशंसक हूं।अपने निजी अनुभवों के आधार पर मैं यह बात कह रहा हूं।मैंने ब्राह्मणों से न सिर्फ बहुत कुछ सीखा है,बल्कि पाया भी है।

 ऐसा नहीं है कि अन्य जातियों के लोगों से मैंने नहीं सीखा।किंतु पत्रकारिता में ब्राह्मण अधिक हैं,इसलिए मेरा अनुभव अधिक है।

ऐसा नहीं है कि ब्राहमण सिर्फ पत्रकारिता में ही अधिक हैं।

  पूर्व प्रधान मंत्री वी.पी.सिंह ने पत्रकार राम बहादुर राय को बताया था कि आजादी की लड़ाई में उत्तर प्रदेश में सबसे अधिक ब्राह्मण शामिल हुए थे।

  मेरा पारिवारिक संस्कार यह था कि हम लोग ब्राह्मण को ‘‘ब्राह्मण देवता’’ कहते थे।

गो ब्राह्मण की रक्षा करने की जो बात कही गई थी,वह अकारण नहीं था।

भारत की देसी गाय मंे जो औषधीय गुण पाया जाता है,वैसा गुण किसी अन्य 

नस्ल की गाय में नहीं पाया जाता।

वही स्थिति गंगा नदी का है जिसके जल में औषधीय गुण पाया जाता है।

किंतु आजादी के तत्काल बाद वाली तथाकथित सेक्युलर सरकार ने गंगा और गाय के साथ जो किया,वह जग जाहिर है।

खैर,


  

   ख्कििसी जाति खास कर ब्राह्मण के खिलाफ 


1.-त्रेता युग में इस धरा के ब्राह्मणों ने स्वजातीय किंतु मर्यादाहीन 

रावण की जगह मर्यादा पुरूषोत्तम राम का साथ दिया था।

यह भी रही है ब्राहमणों की दिव्य परंपरा ।

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2.- इस घोर कलियुग का भी एक उदाहरण पेश है।

 स्वजातीय पत्रकारों की जोरदार पैरवियों को ठुकरा कर प्रभाष जोशी

ने मुझे 1983 में ‘जनसत्ता’ में रखा।

 पटना के एक्सप्रेस आॅफिस को एकाधिक संदेश भेज कर उन्होंने पटना

से मुझे दिल्ली बुलवाया था।

मेरा पहले से उनसे कोई परिचय तक नहीं था।

सिर्फ वे मेरा काम जानते थे।

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3.-1977 में जब मैंने पटना में दैनिक ‘आज’ ज्वाइन किया तो ब्यूरो 

प्रमुख पारसनाथ सिंह ने मुझे एक मंत्र दिया।

उन्होंने कहा कि पत्रकारिता ब्राह्मणों के स्वभाव के अनुकूल पेशा हैं।

ब्राह्मण विनयी और विद्या व्यसनी होते हैं।

यदि आपको इस पेशे में बेहतर करना है तो ये दो गुण अपनाइए।

मैंने इसकी कोशिश की।

मुझे लाभ हुआ।

4.-कैरियर के बाद के वर्षों में इस देश के जिन आधा दर्जन प्रधान संपादकांे ने इस गैर ब्राह्मण को यानी मुझे संपादक बनाने की कोशिश की,उनमें चार ब्राह्मण ही थे।

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मैंने यह सब आज क्यों लिखा ?

थोड़ा लिखना, बहुत समझना !

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शनिवार, 29 नवंबर 2025

 ‘मौके पर चैका’ लगाइए

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सम्राट चैधरी-विजय सिन्हा को इतिहास ने अच्छा मौका दिया है,उसका फायदा उठाइए,जनता को राहत पहुंचाइए।

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सुरेंद्र किशोर

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इतिहास ने बिहार के दोनों उप मुख्य मंत्रियों को आम जनता के बीच अत्यधिक लोकप्रिय बनने का अवसर दे दिया है।ऐसा अवसर कम ही लोगों को मिलता है।

देखना है कि उस अवसर का भरपूर लाभ सम्राट चैधरी और विजय कुमार सिन्हा उठाते हैं या नहीं।

वैसे मानना पड़ेगा कि सम्राट चैधरी की शुरूआत अच्छी है।पर उसे और तेजी से आगे बढ़ाने की जरूरत है।

अभी निकट भविष्य में बिहार में कोई चुनाव भी नहीं है।इसलिए निहितस्वार्थियों की परवाह करने की जरूरत नहीं है।

‘‘योगी माॅडल’’को अपना कर बिहार में अपराधियों -माफियाओं की सही ढंग से ठुकाई होती रहे तो जनता जंगल राज की कभी वापसी नहीं होने देगी।जनता गद् गद् रहेगी।

राज्य में उद्योगपति निवेश भी अधिक करेंगे।

अंचल अधिकारी राजस्व विभाग के

तहत आते हैं।आज बिहार की आम जनता अधिकतर अंचल कार्यालयों की भीषण घूसखोरी से बुरी तरह पीड़ित है।सब जानते हैं कि उसके लिए सिर्फ अंचल अधिकारी ही दोषी नहीं है।पहले रावण का अमृत कुंड को वाण से सुखाइए।

मुख्य मंत्री नीतीश कुमार से तालमेल बैठा कर यदि उप मुख्य मंत्री विजय कुमार सिन्हा अंचल कार्यालयों की घूसखोरी से लोगों को राहत दिला सकें तो हर जाति- बिरादरी के लोग विजय बाबू का गुणगान करेंगे।

यू.पी.की मुस्लिम महिलाओं को भी टी.वी.चैनलों पर यह कहते हुए सुना जाता है कि योगी बाबा के राज में हम महिलाएं रात के अंधरे में भी सड़कों पर निकल सकती हैं।योगी जी के सत्ता में आने से पहले ऐसा नहीं था।

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नेताओं को मौका मिला तो उसका लाभ उन लोगों ने जनहित में कैसे उठाया,उसके सबसे बड़े उदाहरण नरेंद्र मोदी और नीतीश कुमार हैं।

 मोदी जी जब गुजरात में शासन चला रहे थे,उन्हीं दिनों देश के विभिन्न कोनों से आवाज उठने लगी थी कि ‘‘मोदी का प्रधान मंत्री बनाओ।’’जनता ने पहले कहा,पार्टी ने पी.एम.का उम्मीदवार उन्हें बाद में बनाया।

मोदी के प्रधान मंत्री बनने से पहले की बात है। राम जेठमलानी रजत शर्मा के ‘‘आप की अदालत’’ कार्यक्रम में बोल रहे थे।

 जेठमलानी कह रहे थे कि मैं देश में जहां कहीं भी जाता हूं लोग मुझसे पूछते हैं कि मोदी को प्रधान मंत्री कब बना रहे हो ?

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नीतीश कुमार ने ईमानदारी,विजन और मेहनत से इतने अच्छे काम बिहार में किए जितना अच्छा काम पहले कभी नहीं हुआ था।इसलिए नीतीश के राजनीतिक विरोधी भी कहते हैं कि उनके खिलाफ भ्रष्टाचार का कोई आरोप नहीं है।इसे ही कहते हैं--सफल राजनीतिक जीवन।

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कांग्रेस ने वी.पी.सिंह को पहले मुख्य मंत्री बनाया।फिर केंद्र में मंत्री बनाया।

बोफोर्स सहित भ्रष्टाचार के ऐसे -ऐसे मामलों का उन्होंने भंडाफोड़ किया कि कांग्रेस छोड़ने के बाद जनता मांग करने लगी--वी.पी.को प्रधान मंत्री बनाओ।

बने भी।

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इस तरह जिन्होंने भी ‘‘मौके पर चैका’’ लगाया,वे जनता के हीरो बन गये।आप भी बन ही सकते हैं।

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27 नवंबर 25


सोमवार, 24 नवंबर 2025

 ‘‘संतोषम परम सुखम’’

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‘‘समय से पहले और भाग्य से ज्यादा

 कभी किसी को कुछ नहीं मिलता।’’

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 मूुझे तो वह सब भी मिला जिसकी मैंने कभी कल्पना भी नहीं की थी।

वह भी बिन मांगे और बिन चाहे।

मैंने सिर्फ काम किया,फल की कोई कामना नहीं की।न ही किसी से कोई याचना की।

मेरे साथ जो भी हुआ,उससे मेरा यह विश्वास पक्का हुआ कि ‘‘ईश्वर है’’जो न्यायप्रिय भी है। तभी तो यह सब मेरे साथ हुआ।

अतएव, आज मैं एक संतुष्ट व्यक्ति हूं।

---सुरेंद्र किशोर

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23 नवंबर 2025 


  ‘‘न्यूयाॅर्क में मामदानी मेयर चुने जा सकते हें लंदन में एक खान मेयर चुने

जा सकते हैं।लेकिन भारत में किसी विश्व विद्यालय का कुलपति मुस्लिम नहीं बन सकता।बनेगा भी आजम खान की तरह जेल भेजा जाएगा।अल फलाह में क्या हो रहा है ?’’

---मौलाना अरशद मदनी

प्रमुख,जमीयत उलमा -ए-हिन्द 

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‘‘भारत के तीन केंद्रीय विश्वविद्यालयों के वाइस चांसलर मुस्लिम हैं-- 

वे हैं डा.नइमा खातून,

डा.सैयद ऐनूल हसन


 और डा.मजहर आसिफ। 

---दिलीप सी. मंडल

इंडिया टूडे के पूर्व संपादक 

और लेखक

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शनिवार, 22 नवंबर 2025

 

 

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गुरुवार, 20 नवंबर 2025

 आतंक के खिलाफ कठिन हो रही लड़ाई

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सुरेंद्र किशोर

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जेहादी घुसपैठियों की संख्या और अधिक बढ़ा देने के लिए ही देश भर में तथाकथित सेक्युलर दल कर रहे मतदाता गहन पुनरीक्षण का विरोध

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उधर पूरे भारत में इस्लामिक शासन कायम करने के लिए जेहादियों ने युद्ध शुरू कर दिया है।दिल्ली का फिदाइन बम विस्फोट उसका ताजा नमूना है।

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बिहार में कांग्रेस तथा अन्य तथाकथित सेक्युलर दलों ने चुनाव से ठीक पहले मतदाता सूची विशेष गहन पुनरीक्षण के काम का जोरदार विरोध किया था।चुनाव में बिहार के सजग मतदाताओं ने उन दलों को सबक सिखा दिया।बिहार के मतदाताओं ने यह समझ लिया था कि राजग विरोधी दलों की असली मंशा क्या है। 

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अब तथाकथित सेक्युलर दल 12 राज्यों में जारी मतदाता पुनरीक्षण का विरोध कर रहे हैं। जानकार लोग बता रहे हैं कि इन तथाकथित सेक्युलर दलों को लगता है कि यदि अवैध मतदाताओं के नाम हट गए तो उनका अगला चुनाव जीतना कठिन हो सकता है।उन 12 राज्यों में से अधिकतर राज्यों के मतदाताओं को अब यह समझ में आ रहा है कि 

पुनरीक्षण के विरोध के पीछे मंशा क्या है ?

 दूसरी ओर, चुनाव आयोग पुनरीक्षण पर अमादा है।क्योंकि यह उनका संवैधानिक दायित्व है।यदि  कुछ राज्य सरकारें यह काम आयोग को नहीं करने देगी तो चुनाव समय पर नहीं भी हो सकते हंैं।फिर तो वहां राष्ट्रपति शासन लागू हो जाएगा।

वैसे शासन में पुनरीक्षण भी हो जाएगा और स्वच्छ मतदान भी हो जाएगा।

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लेकिन घुसपैठियों के समर्थक दलों का वहां भी चुनावी भविष्य अनिश्चित हो सकता है जैसा बिहार में हुआ है।साफ संकेत हैं कि बिहार में गैर राजग दलों का सत्ता में आने का सपना ,अब सपना ही रहेगा।क्योंकि अगले पांच साल में मोदी-नीतीश की सरकारें मिलकर बिहार को कुछ और चमका देगी।

यदि बिहार की कानून -व्यवस्था यू.पी.की कानून व्यवस्था जैसी ही बना दी गयी तो बिहार में उद्योग भी लगेंगे।अभी बिहार में कानून-व्यवस्था सही नहीं है।बिहार में आए दिन अपराधी पुलिस को मारते और दौड़ाते हैं।

  उधर यू.पी.में अपराधी पुलिस से भागते हैं।इसलिए यू.पी.में नये -नये उद्योग खड़े हो रहे हैं।  

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पाकिस्तान में जेहादी मानसिकता वाले सेनाध्यक्ष को बहुत अधिक अधिकार दे दिए गए हैं ताकि वह भारत में ‘‘गजवा ए हिन्द’’ के काम को आगे बढ़ा सके।

पर हमारे देश के कुछ वोट लोलुप राजनीतिक दल यह नहीं चाहते कि देसी-विदेशी जेहादियों का सफलतापूर्वक इस देश में मुकाबला करने के लिए भारत सरकार को अधिक अधिकार मिले। 

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और अंत में

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जिस तरह बिहार में प्रतिपक्षी दलों ने कई कारणों से अपने राजनीतिक पैरों में कुल्हाड़ी मार ली है,उसी तरह राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिपक्ष अगले चुनाव में कमजोर होंगे,यह भी संकेत है।

इसलिए भारत सरकार और संसद इस बीच ऐसे -ऐसे कानून बनाए और तरह -तरह के प्रबंध करे ताकि जेहादियों,फिदाइनों और गजवा ए हिन्द के लश्करों का सफलतापूर्वक मुकाबला किया जा सके।संविधान के अनुच्छेद-30 की समाप्ति उस दिशा में पहला कदम हो सकता है,यदि मौजूदा संसद में संभव हो !

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19 नवंबर 25     


गुरुवार, 13 नवंबर 2025

 राबड़ी देवी सरकार के दौर में बिहार की कामकाजी महिलाओं के हक में ऐतिहासिक फैसला हुआ था।ऐसा फैसला इटली की महिला प्रधान मंत्री भी नहीं कर पा रही हंै।

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सुरेंद्र किशोर

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मुख्य मंत्री राबड़ी देवी के शासन काल (1997--2005)में बिहार में महिलाओं के हित में एक ऐसा काम हुआ जो काम इटली में भी अब तक नहीं हो पाया है जबकि वहां की प्रधान मंत्री महिला हैं।यूरोप के स्पेन में ऐसी सुविधा है।

 वह है सरकारी सेवा में कार्यरत महिलाओं के लिए हर माह पीरियड के दौरान दो दिनों की सवैतनिक छुट्टी देने का काम।

   मेरी पत्नी तब सरकारी स्कूल में नौकरी कर रही थी।राबड़ी देवी के उस काम को वह अब भी सराहना के भाव से याद करती है।

  अपने देश के कर्नाटका जैसे विकसित राज्य में यह काम पहली बार इसी साल अक्तूबर में संभव हो सका।

किंतु सिर्फ एक दिन की छुट्टी का फैसला हुआ।

यह फैसला करने से पहले वहां के मुख्य मंत्री को चाहिए था कि वे अपनी पत्नी से पूछ लेते कि वैसी छुट्टी एक दिन की होनी चाहिए या 

दो दिनों की ?

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इस देश के अन्य किस राज्य में ऐसी छुट्टी महिला सरकारी कर्मियों को दी जाती है,यह जानकारी मेरे पास नहीं है।

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बिहार में महिला पेेंशन--1100 रुपए।

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इस चुनाव कवरेज के लिए राज्य के कोने -कोने में गए संवाददाताओं को पेंशन प्राप्त कर रही  बुजुर्ग महिलाओं ने यही कहा--

‘‘मेरा बेटा तो मुझे निजी खर्च के लिए 5 रुपए भी नहीं देता।पर मोदी-नीतीश ने 11 सौ रुपए का प्रबंध कर दिया।मेरा बेटा तो मोदी -नीतीश है।’’

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और अंत में

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डा.राम मनोहर लोहिया कहा करते थे कि हर जाति -समुदाय की महिलाएं पिछड़ी और उपेक्षित होती हैं।इसलिए हमारे साठ प्रतिशत आरक्षण वाले फार्मूले में हर जाति-समुदाय की महिलाएं भी शामिल हैं।उनका नारा था--‘‘संसोपा ने बांधी गांठ,पिछड़े पावें सौ में साठ।’’

कर्पूरी सरकार ने 1978 के रिजर्वेशन में हर जाति-समुदाय की महिलाओं के लिए जगह बनाई थी।पर मंडल आरक्षण लागू करते समय लालू प्रसाद सरकार ने 1993 में अति पिछड़ा-महिला- आदि के कर्पूरी फार्मूले को समाप्त कर दिया। 

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12 नवंबर 25


मंगलवार, 11 नवंबर 2025

 शत्रु-बोध 

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‘‘भारतीय स्टेट’’ के खिलाफ इस्लामिक 

युद्ध में कौन किधर रहेगा ?

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पाॅपुलर फं्रट आॅफ इंडिया ने घोषित कर रखा है कि हम हथियारों के बल पर भारत को सन 2047 में इस्लामिक देश बना देंगे।इसके लिए वह कातिलों के दस्ते तैयार कर रहा है।

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सिर्फ दो बातें ध्यान में रखिए

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1.-सन 2002 में गुजरात के गोधरा में ट्रेन के डिब्बे के भीतर बाहर से पेटा्रेल छिड़क कर 59 कार सेवकों को जेहादियों ने जिन्दा जला दिया था।

उस जघन्य घटना की खिलाफ इस देश के जिन -जिन राजनीतिक दलों ने एक शब्द भी नहीं बोला या कोई प्रेस बयान नहीं दिया,वे फाइनल इस्लामिक युद्ध में जेहादियों का ही साथ देंगे।

जिस तरह मान सिंह ने अकबर का साथ दिया था।

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2.-आज जब भी देश या विदेश के जेहादी तत्व भारत को इस्लामी देश बनाने के क्रम में जहां -तहां हिंसा करते रहते हैं,कई तथाकथित सेक्युलर राजनीतिक दल सदा चुप रहते 

हैं ।कभी -कभी वे उल्टे भारत सरकार की ही आलोचना करने लगते हैं।

उन्हें अभी से पहचान लीजिए।उनके नाम याद कर लीजिए।वैसे लोगों से मेलजोल बंद कर दीजिए।अन्यथा धोखा खाइएगा।

वैसे दल व उनके नेता ‘फाइनल युद्ध’ के समय भारत सरकार का साथ नहीं देंगे।

जिस तरह जयचंद ने चैहान बनाम गोरी की लड़ाई में चैहान का साथ नहीं दिया था।तटस्थ रह गया था।

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यह भी याद कर लीजिए कि चैहान को मारने के बाद गोरी की सेना ने जयचंद को भी मार दिया था।

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10 नवंबर 25


 


शनिवार, 1 नवंबर 2025

 मतदाताओं के प्रति राजद-कांग्रेस 

के बदले हुए रुख

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सुरेंद्र किशोर

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तब 

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राजद जब सत्ता में था तो उसके शीर्ष नेता कहा करते थे--

‘‘विकास से वोट नहीं मिलते।सामाजिक समीकरण से वोट मिलते हैं।’’

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और अब 

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अब राजद के नेता मतदाताओं से विकास-कल्याण

के वायदों की झरी लगा रहे हैं।

क्योंकि अब सिर्फ सामाजिक समीकरण से सत्ता नहीं मिल रही है।अब तो ‘‘वाई.श्रेणी’’ के अनेक नौजवान भी टी.वी.चैनलों पर यह कहते अब सुने जा रहे हैं कि हमें भी शिक्षा -विकास चाहिए। अब लाठी घुमावन से काम नहीं चलेगा।

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तब 

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कांग्रेस के नेतृत्व ने आजादी के बाद से ही वोट बैंक की राजनीति शुरू कर दी थी।उससे ताकत पाकर सवर्णवाद जमकर चलाया।

काग्रेस को जब तक पूर्ण बहुमत मिलता रहा,न तो किसी गैर सवर्ण को प्रधान मंत्री बनाया और न ही बिहार में किसी गैर सवर्ण को मुख्य मंत्री बनाया।

यहां तक कि जवाहर लाल नेहरू चाहते थे कि राष्ट्रपति,प्रधान मंत्री और उप राष्ट्रपति तीनों प्रमुख पदों पर एक ही जाति के नेता बैठें।

खुद प्रधान मंत्री थे ही।उप राष्ट्रपति के पद के लिए 

डा.राधाकृष्णन का नाम तय था।

नेहरू ने सी.राज गोपालाचारी को राष्ट्रपति बनाने की जिद्द कर दी जबकि राजा जी ने 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन का सख्त विरोध किया था।

कांग्रेस पार्टी की बैठक में नेहरू ने कह दिया कि यदि राजा जी को राष्ट्रपति नहीं बनाया जाएगा तो मैं प्रधान मंत्री पद से इस्तीफा दे दूंगा।पर उनकी यह धमकी भी काम नहीं आई।सरदार पटेल की जिद्द थी कि राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद बनें।और वह काम होकर रहा।  

यहां तक कि 1990 में राजीव गांधी ने मणि शंकर अय्यर की सलाह पर मंडल आरक्षण का विरोध कर दिया।जबकि, आरक्षण संविधान सम्मत था।

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एक अति के बाद कांग्रेस अब 

दूसरी अति की ओर

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अब किसी ‘‘अदृश्य शक्ति’’ के उकसावे पर कांग्रेस ने अपनी

रणनीति बनाई है--रणनीति यह है कि हिन्दुओं को बांटकर पिछड़ों का तुष्टिकरण करो।हिन्दू सांप्रदायिकताका खतरा दिखाओ।

उधर मुसलमानों के बीच के जातिवाद की चर्चा तक मत करो

अन्यथा मुसलमान मतदाताओं में फूूट पड़ जाएगी।‘‘जेहादी हिंसा’’और गजवा ए हिन्द शब्दों को जुबान पर भी मत लाओ।

मुसलमानों की एकता और हिन्दुओ में फूट का लाभ कांग्रेस को तेलांगना -कर्नाटका जैसे राज्यों में गत चुनाव में मिला भी।

कांग्रेस चाहती है कि पसमांदा,अजलाफ,अरजाल या अशरफ शब्दों का उच्चारण तक नहीं हो।

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क्या बिहार के मतदातागण राजद -कांग्रेस के इस बदले हुए रुख-रवैए  को विश्वसनीय मानकर उन्हें वोट देंगे ?पता नहीं।

आगे-आगे देखिए होता है क्या ?

यह भी एक राजनीतिक प्रयोग ही है।

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1 नवंबर 25

 


गुरुवार, 23 अक्टूबर 2025

  महामारी बन रही एक बीमारी

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राजनीति में परिवारवाद इसी रफ्तार से बढ़ता गया तो नई पीढ़ी इस सिस्टम के खिलाफ एक दिन विद्रोह कर सकती है 

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सुरेंद्र किशोर

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घातक है जो देवता सदृश दिखता है,

लेकिन,कमरे में गलत हुक्म लिखता है,

जिस पापी को गुण नहीं,गोत्र प्यारा है,

समझो,उसने ही हमें यहां मारा है।

---- रामधारी सिंह दिनकर

         (परशुराम की प्रतीक्षा)

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राष्ट्रकवि दिनकर ने जब यह लिखा था,उस समय तक राजनीति में ‘‘गोत्र वाद’’(यानी वंशवाद-परिवारवाद का) का आज जैसा घिनौना रूप सामने नहीं आया था।आज जो कुछ हो रहा है,उसे आप नंगी आंखों से देख सकते हैं।दिनकर आज होते तो क्या लिखते !

बिहार विधान सभा के मौजूदा चुनाव में जिस तरह बड़े पैमाने पर राजनीतिक परिवारों के लोगों को टिकट दिए गए हैं,उसके कैसे संकेत हैं ?

लोकतंत्र के लिए खतरनाक संदेश हंै।

यह लोकतंत्र है या वैसा ही राजतंत्र जब इस देश में आजादी से पहले 565 रजवाड़े राज करते थे ?

संकेत यही है कि यदि इसी गति से यह कुप्रथा जारी रही तो वह दिन दूर नहीं जब लोक सभा की 543 और बिहार विधान सभा  की 243 सीटों में से लगभग सभी सीटों पर किसी न किसी राजनीतिक परिवार के ही सदस्य ही चुनाव लड़ेंगे।राजनीतिक कार्यकत्र्ता नामक प्राणी का मूलोच्छेद हो जाएगा।

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फिर वे सेवाभावी सामाजिक -राजनीतिक कार्यकर्ता (हांलाकि उनकी संख्या अब कम है)क्या करेंगे जो किसी राजनीतिक परिवार से नहीं आते हैं ?

ध्यान रहे कि परिवारवाद-वंशवाद नई -नई बुराइयां अपने साथ लाता है।यह संयोग नहीं है कि 

लगभग हर परिवादवादी -वंशवादी नेता के खिलाफ किसी न किसी घोटाले के आरोप में मुकदमे चल रहे हैं।यह भी संयोग नहीं कि अयोग्य उत्तराधिकारी के कारण कुछ वंशवादी राजनीतिक दल तेजी से पतन की ओर अग्रसर हैं।

हर देश,काल,समाज के 10 प्रतिशत लोग अत्यंत ईमानदार होते हैं।

अन्य 10 प्रतिशत अत्यंत बेईमान होते हैं।

बाकी 80 प्रतिशत उन्हीें के साथ हो जाते हैं ,इन दोनों में से जिसका राज होता है।साथ में या निरपेक्ष।

 परिवारवाद-वंशवाद की महामारी इस देश की राजनीति को जब पूरी तरह अपनी गिरफ्त में ले लेगी तो ईमानदार समाज सेवकों के लिए खास कर उनमें से युवा वर्ग के लिए क्या रास्ता बच जाएगा ?

क्या वे मौजूदा ‘‘विकृतिकरण’’ को बर्दाश्त कर लेंगे ?

कत्तई नहीं।

वे सड़कों ंपर उतर सकते हैं।विद्रोह कर सकते हैं।

संभव है कि उस विदोह से कोई कल्याणकारी तानाशाह निकले। 

फिर वंशवाद-परिवारवाद को पराकाष्ठा पर पहुंचाने वाले नेतागण अपने हश्र की कल्पना कर लें।

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यहां की राजनीति की मौजूदा स्थिति को देखकर परलोक में मोतीलाल नेहरू खुश हो रहे होंगे।उन्होंने सन 1928-29 में महात्मा गांधी पर भारी दबाव डालकर कांग्रेस की राजनीति में वंशवाद का जो पौध रोपा,वह फल-फूल रहा है।वट वृक्ष बन रहा है। 

मोतीलाल नेहरू 1928 में कांग्रेस अध्यक्ष थे-जवाहरलाल नेहरू 1929 में अध्यक्ष बने।(संदर्भ--मोतीलाल नेहरू पेपर्स--नेहरू मेमोरियल)

लालू प्रसाद ने कभी कहा था कि ‘‘मेरा परिवार, बिहार का नेहरू परिवार है।’’

अब तो लगभग हर राज्य में नेहरू या लालू परिवार है।

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परिवारवादी नेता चाहते हैं कि जितने भी नेता एक बार सांसद या विधायक बनें,वे अगली बार अपने परिजन को विधायक -सांसद बनवा दें ताकि बदनामी का वितरण हो जाये।सिर्फ मुझ पर ही परिवारवाद का आरोप न लगे।

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नब्बे के दशक में प्रधान मंत्री पी.वी.नरसिंह राव पर 

 शेयर दलाल हर्षद मेहता से एक करोड़ रुपए घूस लेने का आरोप लगा था।

जब राव साहब बदनाम हुए तो उन्होंने सोचा कि कैसे ऐसा ही आरोप सभी सांसदों पर भी लगने लगे।यानी मेरी नाक कटी तो दूसरे की भी कट जाये।

उन्होंने एक तरकीब निकाली ।नब्बे के दशक में अपने वित्त मंत्री मनमोहन सिंह के कड़े विरोध के बावजूद   सांसदों के लिए राव ने एक करोड़ रुपए सालाना का सांसद फंड शुरू कर दिया।(यह काम तब किया गया जब मनमोहन सिंह लंबी विदेश यात्रा पर थे।)

उन दिनों सरकारी रिश्वत का रेट 20 प्रतिशत था।(आज तो 40 प्रतिशत हो गया है।)पांच साल में सांसदों को पांच करोड़ रुपए मिलने लगे।अपवादों को छोड़कर 

अधिकतर सांसदों के यहां बिन मांगे 20 प्रतिशत पहुंचने लगे।उससे राव साहब-हर्षद मेहता प्रकरण को नेतागण भूल गये।

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उसी तरह का हाल परिवारवाद -वंशवाद  का हो जाए,ऐसा वंशवादी नेता चाहते हैं।वंशवाद के लिए अब कौन किसे बदनाम करेगा ?

अटल जी,मनमोहन जी,मोदी जी की चाह के बावजूद सांसद फंड बंद इसलिए भी नहीं हो पा रहा है क्योंकि उसके ठेकेदार अनेक जन प्रतिनिधियों के राजनीतिक कार्यकर्ता का काम करते हैं।(अब तो प्रशांत किशोर जैसे नेता वेतन पर राजनीतिक कार्यकर्ता बहाल करने लगे हैं।)

जन प्रतिनिधि यदि अपने क्षेत्र में नये कार्यकर्ता उभरने देंगे तो वे कार्यकर्ता टिकट के उम्मीदवार बन जाएंगे। किंतु टिकट तो उन्हें अपने परिजन को देने हैं।

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आज राजनीति में इतनी गिरावट है--कल क्या -क्या होने वाला है ?कल्पना कर लीजिए।

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और अंत में

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1.-डा.राम मनाहर लोहिया कहा करते थे--राजनीति में रहने वालों को संतति और संपत्ति से दूर रहना चाहिए।

2.-1977 में राज नारायण जी केंद्र में स्वास्थ्य मंत्री बने तो किसी ने उनकी पत्नी को उनके दिल्ली आवास पर पहुंचा दिया।पत्नी को देख कर राजनारायण जी ने पूछा--‘‘ई के हवी ?’’(मेरी भाषा या जानकारी सटीक न हो तो कोई बनारसी व्यक्ति मुझे सही बता दें।)

यानी,राजनारायण जी ने  पूछा--ये कौन 

हैं ?

नेता जी (असली नेता जी वही थे,मुलायम जी के समर्थकों ने उनकी ही नकल करके मुलायम जी को नेता जी कहना शुरू कर दिया।) को बताया गया कि यह आपकी धर्म पत्नी हैं।

यानी, सार्वजनिक कामों में व्यस्त रहने के कारण ‘‘नेता जी’’ अपने परिवार से दूर-दूर रहते थे, इतने अधिक दिनों के बाद मिले थे कि तब तक पत्नी के चेहरे में थोड़ा परिवर्तन हो चुका था।

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  23 अक्तूबर 25



  


बुधवार, 22 अक्टूबर 2025

  मुख्य समस्याएं हैं--भ्रष्टाचार और जेहाद।

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जिस नेता के मन में इन दो तत्वों के खिलाफ गुस्सा नहीं, वह देश-प्रदेश का कभी भला नहीं कर सकता।

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सुरेंद्र किशोर

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मैं किसी नेता को इसी कसौटी पर कसता हूं कि उसके मन में भ्रष्टाचारियों और जेहादियांे के खिलाफ गुस्सा है या नहीं।

 जिसके मन में इन दो तत्वों के खिलाफ गुस्सा नहीं है,वह कभी देश-प्रदेश का भला नहीं कर सकता।

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इस पृृष्ठभूमि में कुछ लोग मुझसे पूछते हैं कि प्रशांत किशोर के बारे में आपकी क्या राय है ?

इसके जवाब में मैं कहता हूं--

ममता बनर्जी के मन में न तो जेहादियों के खिलाफ कोई गुस्सा दिखाई पड़ता है और न ही भ्रष्टाचारियों के खिलाफ।

दूसरी ओर, प्रशांत किशोर के मन में ममता बनर्जी के खिलाफ कोई गुस्सा नहीं है।पी.के.तो ममता के चुनावी सलाहकार रहे हैं।

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इतना ही नहीं,यह बात भी ध्यान में रखिए-पी.के.नीतीश से अलग क्यों हुए थे ?

इसलिए हुए थे क्योंकि नीतीश कुमार सी.ए.ए. के समर्थक थे और प्रशांत किशोर विरोधी।

यह भी ध्यान रहे कि जेहादी संगठन पी.एफ.आई.ने सी.ए.ए. के खिलाफ देश भर में हिंसा की थी।

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और अंत में

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नरेंद्र मोदी और योगी आदित्य नाथ जेहादियों -भ्रष्टाचारियों के सख्त खिलाफ हैं।

वे दोनों अमित शाह के सहयोग से भ्रष्टाचारी उन्मूलन-जेहादी उन्मूलन के काम में लगे हुए हैं।काम कठिन है।इसीलिए धीरे- धीरे हो रहा है।

इसी कारण आज देश के सबसे लोकप्रिय नेता मोदी और योगी हैं क्योंकि आम जनता की बहुसंख्या जेहाद-भ्रष्टाचार के सख्त खिलाफ है। जेहाद और भ्रष्टाचार का आपसी रिश्ता भी है।दोनों एक दूसरे को मदद पहुंचा रहे हैं।इससे देश की एकता-अखंडता को भारी खतरा है।क्योंकि इजरायल तो जेहादियों से घिरा हुआ है किंतु भारत के भीतर ही बड़ी संख्या में जेहादी बसते हैं।

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22 अक्तूबर 25 

 

  


मंगलवार, 21 अक्टूबर 2025

 ‘‘जब सरकार बनने का कोई चांस न हो तो 

टिकट के बदले भारी ‘‘चंदा’’ लेकर ही पार्टी व परिवार के लिए कुछ कमा लिया जाए,यही बेहतर रहेगा !

तालमेल करने के कारण यदि चंदा के बदले बांटने लायक सीटों की संख्या कम हो जाएगी तो फिर अगले पांच साल का खर्च कैसे निकलेगा ?’’

   

  


सोमवार, 20 अक्टूबर 2025

 भारतीय राजनीति का सफर-जनसेवा से 

‘व्यापार’ होते हुए ‘उद्योग’ तक का !!

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(अपवाद स्वरूप अब भी राजनीति में सेवा भाव वाले नेता-कार्यकर्ता मौजूद हैं, पर उनकी संख्या अंगुलियों पर गिनने लायक ही है।अपवादों से देश नहीं चलता।)

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सुरेंद्र किशोर

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1.-राजनीति पहले सेवा थी।

2.-प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी ने पूर्व सांसदों के लिए पेंशन का प्रावधान करके इसे नौकरी की श्रेणी में ला खड़ा किया।

3.-नब्बे के दशक में प्रधान मंत्री पी.वी.नरसिंह राव ने

सांसद फंड का प्रावधान करके इस राजनीति को ‘व्यापार’ बना दिया।

4.-अब जब पता चलता है कि इस देश-प्रदेश के कुछ बड़े नेताओं के पास अरबों की संपत्ति है,जबकि पहले वे साइकिल के लिए भी तरसते थे,उन्होंने कभी कोई व्यापार भी नहीं किया,तो राजनीति को उद्योग मान लेने मेें अब किसको एतराज हो सकता है ?

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मौजूदा बिहार विधान सभा चुनाव में बहुत बड़ी अकल्पनीय राशि लेकर टिकट बेचने की जो चर्चा आम है,उससे तो यही लगता है कि अपवादों को छोड़ कर लोग टिकट वैसे ही पा रहे हैं जैसे कोई डीलर कार बेचने का डीलरशिप हासिल करता है।

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और अंत में

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मैं सन 1972-73 में कर्पूरी ठाकुर का निजी सचिव था।

उन्हें विधायक के रूप में वेतन मद में मासिक 300 रुपए मिलते थे।

कमेटी की बैठक होने पर प्रति बैठक 15 रुपये भत्ता।

महीने में अधिकत्तम 4 बैठकें ही होती थीं।यानी 60 रुपए।

कर्पूरी जी की पत्नी ने एक बार मुझसे कहा कि ठाकुर जी से कहिए कि एक ही बार महीने भर का राशन खरीद कर घर में रख दिया करें।

कर्पूरी जी का जवाब था--‘‘सुरेंद्र जी,उन लोगों से कहिए कि वे जाकर पितौंझिया (यानी कर्पूरी जी के पुश्तैनी गांव )जाकर रहें।’’यानी, कर्पूरी जी की जायज आय पटना में परिवार रखकर उसका पालन-पोषण करने लायक नहीं थी।जबकि उससे पहले कर्पूरी जी मुख्य मंत्री रह चुके थे।

फिर भी कर्पूरी जी ने कभी सरकार से यह मांग नहीं की कि विधायकों का वेतन बढ़ना चाहिए।

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मेरे देखते -देखते क्या से क्या हो गया !!

जन सुराज पार्टी के मुखिया का चुनावी खर्च अरबों में है।यह उनकी ही स्वीकृति है।

आज विधायकों और सांसदों को वेतन आदि के रूप में कितने रुपए मिलते हंै ,उसका विस्तृत विवरण दैनिक जागरण (18 अक्तूबर 25)ने छापा है।

डा.आम्बेडकर कहते थे कि सांसदों-विधायकों को समुचित वेतन मिलना चाहिए।पर सवाल है कि समुचित का अर्थ कितना होता है ?

राजनीति को इतना महंगा बनाकर साधनहीन व स्वाभिमानी लोगों को लोकतंत्र से दूर रखने की जाने- अनजाने साजिश तो नहीं हो रही है ?

जितने बड़े पैमाने पर इन दिनों नेताओं के परिजनों को टिकट दिये जा रहे हैं,उससे सवाल उठता है कि आजादी से पहले देश में जो 565 रजवाडे थे,उस स्थिति में और आज के लोकतंत्र में क्या व कितना फर्क रह गया है ?

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19 अक्तूबर 25


  

 


शनिवार, 11 अक्टूबर 2025

 जेपी जन्म दिन-11 अक्तूबर

लोहिया पुण्य तिथि-12 अक्तूबर

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जेपी-लोहिया इसलिए सफल हुए क्योंकि

उन दोनों ने देश-काल-पात्र की जरूरतों 

के अनुसार अपनी नीति-रणनीति तय की

पुरानी बातों की बंदरमूठ नहीं पकडी 

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सुरेंद्र किशोर

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डा.राम मनोहर लोहिया ने सन 1967 में देश की सत्ता पर से कांग्रेस का एकाधिकार तोड दिय़ा।

प्रतिपक्षी दलों को एकजुट कर लेने में उनकी सफलता के कारण ही सन 1967 में 9 राज्यों में पहली बार गैर कांग्रेसी सरकारें बनीं।उससे पहले लोहिया के कुछ प्रमुख साथी कम्युनिस्टों और भारतीय जनसंघ के साथ समाजवादियों की एकजुटता के खिलाफ थे।पर लोहिया नहीं माने।

लोक नायक जयप्रकाश नारायण ने सन 1977 में केंद्र की सत्ता से कांग्रेस का एकाधिकार तोड़ा।

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जेपी -लोहिया इस मामले में सफल इसलिए हो सके क्योंकि उन महान व दूरदर्शी नेताओं ने देश के व्यापक हित के बारे में सोचा और जो दल साथ आ सकते थे ,उन्हें साथ लिया।दोनों नेताओं में से किसी ने यह नहीं कहा कि भारतीय जनसंघ अछूत है।

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डा.लोहिया ने कहा था कि कांग्रेस को हटाने के लिए हम शैतान से भी हाथ मिलाने को तैयार हैं।क्योंकि वे कांग्रेस को बड़ा शैतान मानते थे।

इमर्जेंसी तो बाद में लगी,सन 1971 में लोक सभा के चुनाव के तत्काल बाद से ही जब प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी ने अपनी एकाधिकारवादी प्रवृति के तहत शासन  शुरू किया तो जेपी ने इंडियन एक्सपे्रस में लेख लिख कर उनका विरोध प्रारंभ कर दिया।तभी से इंदिरा जेपी पर खफा थी।

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ध्यान रहे कि लोहिया और जेपी अपने लिए सत्ता नहीं चाहते थे।इसीलिए लोगों ने उन पर भरोसा किया।

ये दोनों चाहते तो जवाहरलाल नेहरू, जेपी और लोहिया को अपनी सत्ता में शामिल कर सकते थे।

डा.लोहिया सन 1936 में कांग्रेस के विदेश विभाग के प्रधान बनाये गये थे जब जवाहरलाल नेहरू कांग्रेस अध्यक्ष थे।

आजादी के बाद जेपी को नेहरू ने सरकार चलाने में मदद देने के लिए आमंत्रित किया था।पर,जेपी ने उन्हें 

समाजवादी कार्यक्रम की एक लंबी सूची थमा दी।नेहरू ने जब उसे लागू करने में असमर्थता दिखाई तो जेपी कांग्रेस से अलग ही रहे।

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आज देश की समस्याएं

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मेरी समझ से आज देश के सामने दो 

सबसे बड़ी समस्याएं हैं।

1.-भारत में सर्व व्यापी भ्रष्टाचार

2.-भारत सहित दुनिया भर में चल रही जेहादी आंधी

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इन दोनों समस्याओं के खिलाफ बेलाग-लपेट संघर्ष करके जो दल इन्हें पराजित करेगा,वे ही राजनीतिक दल या दल समूह इस देश की अधिकतर जनता के प्रिय बनेंगे,बाकी राजनीतिक दल समय के साथ कमजोर होते जाएंगे।

जेपी और लोहिया के जीवन से फिलहाल यही सबक मिलते हैं।

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पुनश्चः

जेपी पर जब भी कुछ आप लिखेंगे तो कुछ अर्ध ज्ञानी लोग कहेंगे कि उनके आंदोलन के कारण जेपी के जो चेले सत्ता में आए, वे बेईमान निकले।

 अरे भाई, जेपी के आंदोलन और इमर्जेंसी के तत्काल बाद सन 1977 में जो सरकारें बनीं थीं,उसके मुखिया कंेद्र में मोरारजी देसाई थे और बिहार में कर्पूरी ठाकुर।क्या ये दोनों बेईमान थे ?

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जिनकी ओर अज्ञानियों का इशारा होता है,वे ‘‘बोफोर्स आंदोलन’’और मंडल मंडल आंदोलन के कारण सत्ता में आए और जमे।केंद्र में सन 1989 में और बिहार में सन 1990 में।

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11 अक्तूबर 25


शुक्रवार, 3 अक्टूबर 2025

       जब विधायकी से अधिक 

      कुछ और ही महत्वपूर्ण था

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    सुरेंद्र किशोर

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सन 1957 के आम चुनाव के समय मोरारजी देसाई

पर्यवेक्षक बन कर बिहार आए थे।

पटना के सदाकत आश्रम में कांग्रेस उम्मीदवारों से मिल रहे थे।

किसी ने पूर्वोत्तर बिहार के एक निवर्तमान विधायक और टिकट के उम्मीदवार के बारे में देसाई से शिकायत कर दी कि वे छुआछूत मानते हैं।

मोरारजी ने उस टिकटार्थी से पूछा--क्या यह सच है ?

उन्होंने कहा-- हां,मैं छुआछूत मानता हूं।

देसाई ने कहा कि कांग्रेस तो छुआछूत नहीं मानती।आपको टिकट कैसे मिलेगा ?

उस उम्मीदवार ने कहा--टिकट अपने पास रखिए।मैं चला।

(यहां छुआछूत के समर्थन में यह पोस्ट नहीं लिखा गया है।बल्कि यह बताने के लिए कि तब के कई विधायकों के लिए पैसे या पद का महत्व अपेक्षाकृत कम था।

अब तो सांसद-विधायक के साथ कानूनी तौर से प्रत्यक्ष-परोक्ष रूप से इतने अधिक धन जुड़ गये हैं कि अपवादों को छोड़कर टिकट के लिए वे कुछ भी करने को तैयार रहते हैं।ध्यान रहे कि बिहार विधानसभा के मौजूदा चुनाव में जितने अधिक खर्च हो रहे हैं और जितने अधिक खर्च होने वाले हैं,वे अभूतपूर्व व अकल्पनीय है।राज्य के बाहर के लोगों को भी यदि राजनीति में इस भारी गिरावट के घिनौने दृश्य देखने हों तो वे इन दिनों बिहार का चुनाव आकर देखें।सिर्फ पैसे फेंक कर जीतेगा,वह इस अभागे प्रदेश को निर्ममता से लूटेगा ही।यह अब जनता पर है कि वह लूटने वालों को वोट देगी या 

किसी बड़े उद्देश्य मतदातन करेगी !  

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एक दूसरी कहानी

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पूर्वोत्तर बिहार के आलम नगर के पूर्व जमीन्दार परिवार के सदस्य रहे वीरेन्द्र कुमार सिंह आलम नगर से चार बार विधायक रह चुके थे।उनके खिलाफ अनियमितता की कोई शिकायत भी नहीं थी।

पर 1995 में जनता दल ने उनका टिकट काट दिया।

नरेंद्र नारायण यादव को टिकट मिला।

वीरेंद्र बाबू ने इन पंक्तियों के लेखक से बातचीत करते हुए तब कहा था कि भले मेरा टिकट काट दिया,पर मेरी जगह एक ईमानदार व्यक्ति को टिकट मिला है।यह अच्छी बात है।

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वीरेंद्र बाबू की राजनीति में पहले कोई रूचि नहीं थी।हां,कांग्रेस उम्मीदवार विद्याकर कवि की ही वे मदद करते थे।पर विशेष परिस्थिति में 1977 में पहली बार चुनाव लड़े और जीते।

विधायक के रूप में कैसा अनुभव रहा ?यह पूछने पर 

वीरेंद्र बाबू ने बताया कि ‘‘विधान सभा में पहले मामूली चापाकल के बारे में सवाल उठाये जाते थे तो प्रशासन हिल जाया करता था।आज वह स्थिति नहीं रही।सब कुछ (ये संस्थाएं)जड़ हो गया है।

यह तो 1995 तक का हाल था।

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पर आज ?

लोक सभा या विधान सभा की बैठक जैसे ही शुरू होती है,भारी शोरगुल शुरू हो जाता है।लगता है कि पागलखाने के गेट को तोड़कर कुछ लोग सीधे विधायिका मंे घुस गये हैं।

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स्पीकर,मार्शल,सत्ताधारी दल,कार्य संचालन नियमावली और अखिल भारतीय पीठासीन पदाधिकारी सम्मेलनों की सिफारिशें सब कुछ आज बेमतलब साबित हो चुके हैं।शांति पूर्वक -नियमपूर्वक सदनों के संचालन के पक्षधर सांसदों -विधायकों की संख्या अंगुलियों में गिनने लायक रह गई है।

ऐसे में नई पीढ़ी के आदर्शवादी युवक ,हालांकि समाज में अब उनकी संख्या काफी कम हो गई है,कैसे राजनीति की ओर आकर्षि होंगे ?

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3 अक्तूबर 25   


   


रविवार, 28 सितंबर 2025

 ‘सभ्यताओं के संघर्ष’ पर 

गोलमेज सम्मेलन जरूरी

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अब शुरू हो चुका है‘‘सभ्यताओं का संघर्ष।’’

इस संघर्ष से पीड़ित देश इस समस्या पर काबू पाने 

के लिए शीघ्र गोलमेज सम्मेलन बुलाएं।

अन्यथा देर हो जाएगी।

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सुरेंद्र किशोर

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नब्बे के दशक में अमरीकी राजनीतिक वैज्ञानिक सेम्युएल 

पी. हंटिग्टन ने लिखा था कि ‘‘शीत युद्ध की समाप्ति के बाद अब देशों के बीच नहीं, बल्कि सभ्यताओं के बीच संघर्ष होगा।

  उस संघर्ष में चीन इस्लामिक देशों के साथ रहेगा।’’

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करीब तीन दशक बाद हंटिंग्टन की भविष्यवाणी का मूर्त रूप सामने है।

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इसका निदान अभी नहीं तो कभी नहीं !!

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(सभ्यताओं के संघर्ष का मुख्य केंद्र अभी ब्रिटेन बन गया है।क्या दूसरा केंद्र भारत बनेगा ?)  

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27 सितंबर 25





गुरुवार, 11 सितंबर 2025

 किसी ने ठीक ही कहा है--

‘‘जरूरी नहीं है बीमार होने की वजह बीमारी ही हो .....कुछ लोग तो दूसरों की खुशियां देखकर भी बीमार हो जाते हैं।’’

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ऐसे बीमार लोगों में से कुछ की बीमारी शारीरिक होती है तो कुछ की मानसिक।शारीरिक बीमारी से ग्रस्त लोग तो अस्पताल पहुंच जाते हैं। किंतु मानसिक बीमारी वाले व्यक्ति आम लोगों के बीच अपने पागलपन के नमूने बिखरते रहते हैं--कुछ देश में रह कर तो कुछ विदेश जाकर।


 फेसबुक संवाद की एक झलक

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जिनके पास आपके तथ्यों और तर्कों का सही -सटीक जवाब नहीं होता ,वे 

पहले आपकी मंशा पर सवाल उठाते हैं और फिर अशिष्टता-असभ्यता-अश्लीलता पर उतर सकते हैं।

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ऐसे लोगों की परवाह न करके अपने मान-अपमान की चिंता किए बिना जो

बात  भी देशहित में हैं,उसे लिखते जाइए।

क्योंकि देश इन दिनों अभूतपूर्व संक्रमण काल से गुजर रहा है।

ऐसे में जरुरी है कि आप लोकतंत्र,संविधान,धर्म निरपेक्षता,कानून के शासन के पक्ष में मजबूती से खड़े रहें।

  


सोमवार, 8 सितंबर 2025

 क्या पोलैंड में भी आर.एस.एस.-

भाजपा सक्रिय है ???!!!

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सुरेंद्र किशोर

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यूरोपीय देश पोलैंड की संसद ने कह दिया है कि ‘‘मुसलमानों के लिए हमारे देश में कोई जगह नहीं है।

मुसलमानों को जगह देना यानी अपने देश में तबाही के लिए बम 

लगा देना।’’ 

(इस खबर को आप यूट्यूब पर देख सकते हैं।)

दूसरी ओर, भारत के तथाकथित और एकांगी सेक्युलर राजनीतिक दल और कुछ बुद्धिजीवी यह प्रचार करते रहते हैं कि इस देश की मुस्लिम सांप्रदायिकता -कटृटरपन,दरअसल भाजपा-संघ के कारण है।

क्या उनसे यह सवाल नहीं पूछा जाना चाहिए कि पोलैंड और यूरोप के कई देशों में वहां की मूल आबादी अतिवादी मुस्लिमों के खिलाफ इन दिनों यदि उद्वेलित है,तो उसका कारण क्या है ?

क्या वहां भी भाजपा-आर.एस.एस. सक्रिय है ?

जापान में इन दिनों मुसलमानों के खिलाफ प्रदर्शन क्यों हो रहे हैं ?

चीन सरकार अपने देश के उइगर मुसलमानों को अभूतपूर्व ढंग से क्यों प्रताडित कर रही है ?डर के मारे कोई मुस्लिम देश या भारत का सेक्युलर चीन की इस निरंतर प्रताड़ना के खिलाफ आवाज तक नहीं उठाता। 

एक आकलन के अनुसार भारत के करीब 10 प्रतिशत मुसलमान अपने समुदाय के अतिवादियों-जेहादियों से सहमत नहीं हैं।पर वह  10 प्रतिशत न तो प्रभावकारी है और न ही मुखर।

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8 सितंबर 25


मंगलवार, 2 सितंबर 2025

 अगले कुछ महीनों में शिवानन्द तिवारी और

 अमृतलाल मीणा के संस्मरण आपको पढ़ने को 

मिल सकते हैं।

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सुरेंद्र किशोर

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शिवानन्द तिवारी बिहार की राजनीति का एक बड़ा नाम है।पता चला है कि वे अपने संस्मरण लिख रहे हैं।साठ के दशक से ही वे राजनीति में अत्यंत सक्रिय रहे हैं।

मैंने देखा है कि उनकी स्पष्टवादिता से भले कोई नाराज हो जाए,पर वे किसी को सिर्फ खुश करने के लिए कोई बात नहीं करते चाहे सामने वाला कितना भी बड़ा आदमी क्यों न हो !उम्मीद है उनके संस्मरणों पर भी उनकी इस बात की छाप रहेगी।फिर तो किताब काफी पठनीय होगी। 

अमृत लाल मीणा ने भी ,जो राज्य के मुख्य सचिव पद से रिटायर हुए हैं,कहा है कि वे अपने संस्मरण लिखेंगे।

इन दोनों हस्तियों की पुस्तकें आ गईं तो पाठकों को बहुत सारी ऐसी बातें पढ़ने को मिलेंगी जिनसे लोग अब तक अनजान रहे हंैं।

एक अफसर चाहे वे सेवारत हो,या रिटायर, उनकी तो अपनी सीमाएं होती हैं।

पर,शिवानन्द तिवारी पर कोई सीमा नहीं लग सकती।

साठ के दशक से मैं भी समाजवादी आन्दोलंन की कुछ अच्छी-बुरी घटनाओं का गवाह रहा हूं।पर उसका बयान करने की जो हिम्मत तिवारी जी में है,वह हिम्मत मेरे जैसे दुबले-पतले आदमी में कत्तई नहीं है।इस कारण शिवानन्द भाई के संस्मरणों की मुझे भी प्रतीक्षा रहेगी।वे लंबे समय तक इनसाइडर भी रहे हैं जो सौभाग्य मुझे नहीं मिला।

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सेवारत मुख्य सचिव मीणा जी  और बिहार सरकार के पूर्व कैबिनेट मंत्री और पूर्व राज्य सभा सदस्य तिवारी जी के संस्मरणों से नई पीढ़ी को सीखने का अवसर मिलेगा,यदि वह सीखना चाहे।

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राजनीतिक क्षेत्रों के अधिकतर जानकार लोग अपने संस्मरण अपने ही साथ लेते चले गये।उन लोगों ने मेरी समझ से अच्छा नहीं किया।वैसे अपने देश में आत्म कथा या संस्मरण का अधिक चलन नहीं है।

बी.बी.सी.के लिए काम कर चुके डा.विजय राणा ने एक बार मुझे बताया था कि ब्रिटेन के लोग तो अपने मुहल्ले पर भी किताब लिख देते हैं।

 (दूसरी ओर भारत और बिहार के अधिकतर जानकार लोग देश या प्रदेश के बारे में भी शायद ही कुछ लिखते हैं।)

बहुत पहले राज्य सभा के पूर्व सदस्य बाबू गंगाशरण सिंह के पास उनके राजेंद्र नगर स्थित आवास पर उनसे लंबी बातें करने का मुझे अवसर मिला था।उनके संस्मरण सुनकर मुझे लगा कि वह सब बातें किताब के रूप में आनी चाहिए थीं।उनकी कई बातें अचरज से भरी हुई थीं। 

मैं पटना के पूर्व सांसद ,पटना विश्व विद्यालय के पूर्व वाइस चांसलर सारंगधर सिंह के पास भी उनके एक्जीविशन रोड स्थित बंगले पर  अक्सर बैठता था।उनके पास जो संस्मरण थे,वे कहीं नहीं छपे हैं।शीर्ष नेताओं के बारे में उनके पास संस्मरणों का खजाना था।

स्वतंत्रता सेनानियों की पहली पीढ़ी के लोगों के बारे में संस्मरण।सारंगधर बाबू संविधान सभा के भी सदस्य थे।

सारंगधर बाबू के बाकरगंज, पटना स्थित षड्ग विलास प्रेस में भारतंेदु हरिश्चंद्र की सारी रचनाएं छपी थीं।देश के अन्य छापाखानोें ने छापने से मना कर दिया था।

 उनके परिजन से एक बार मैंने पूछा- सारंगधर बाबू कुछ लिखते भी 

हैं या नहीं ?

उनके नाती ने बताया कि कुछ -कुछ लिखते रहते हैं।कोई उनके परिवार का निकटवर्ती हो तो अब भी  पता लगा सकता है कि उनके लिखे हुए की किताब बन सकती है क्या ?

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एक समकक्ष ने एक बार गंगाशरण सिंह से पूछा--आप अपने संस्मरण क्यों नहीं लिखते ?

उन्होंने कहा कि यदि मैं सच- सच लिख दूं तो जिन नेताओं को आप स्वर्गीय कहते हैं,उन्हें आप ‘‘नारकीय’’कहने लगेंगे।

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1 सितंबर 25  


 ब्रिटेन इस्लामिक सल्तनत की ओर बढ़ रहा ?

क्या अगला खतरा भारत पर है !

कई यूरोपीय शासकों की अपेक्षा इस मामले में 

मोदी -शाह की भूमिका काफी बेहतर है।

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 सुरेंद्र किशोर

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क्या ब्रिटेन जल्द ही इस्लामिक देश बन जाएगा ?

सोशल मीडिया की खबरों पर भरोसा करें तो ‘‘दुनिया पर कभी राज

 करने वाला ब्रिटेन अब अपनी ही गलियों में डर -डर कर रहा है।’’

सिर्फ लंदन में 10 लाख मुस्लिम हैं।

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ब्रिटिशर्स ने भारत में ‘‘बांटो और राज करो’’ की नीति अपनाई थी।

व्यापार करने भारत आए और भारत के राजा बन गये थे।

मुस्लिम लोग ब्रिटेन तथा यूरोप के अन्य देशों में शरणार्थी बन कर गए थे,अब बारी -बारी से कई यूरोपीय देशों पर वे कब्जा करने की प्रक्रिया में हैं।

यानी, प्रवासी-शरणार्थी मुस्लिम लोग गोरों के साथ ‘‘मियां की जूती मियां का सर’’ कर रहे हैं।

ब्रिटेन के उदारवादी और मानवतावादी राजनीति का लाभ उठाकर मुस्लिम धीरे- धीरे पूरे देश पर कब्जा करने के क्रम में आगे बढ़ रहे हैं,यदि आपको सोशल मीडिया पर विश्वास हो तो इसे भी सच मानिए।

कहा जा रहा है कि जेहादियों का अगला टारगेट भारत है।

हमारे यहां भी वोट लोलुप सेक्युरिस्टों के बल पर मुस्लिमों ने आबादी बढ़ा कर अनेक जिलों पर कब्जा कर लिया है।

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हालांकि भारत में बेहतर स्थिति यह है कि अभी राष्ट्रवादियों की सरकार है जिसके पी.एम.मोदी ने उच्चाधिकारप्राप्त डेमोग्राफिक मिशन बनाने की हाल में घोषणा कर दी है।बांग्ला देशी और रोहिंग्या धीरे-धीरे देश से भगाए जा रहे हैं।

पर,केंद्र सरकार का असल टेस्ट पश्चिम बंगाल में होगा जहां विशेष मतदान सूची परीक्षण होने ही वाला है।नरेंद्र मोदी जानते हैं कि जेहादियों से कैसे निपटा जाता है।

जिस तरह इजरायल में शत्रु बोध है।इजरायल  गाजा-हमास के पूर्ण सफाए में लगा हुआ है।वहां भी वही ्िरस्थति है--चाहे इजरायल जिंदा रहेगा या उसके पड़ोस की जेहादी शक्तियां।

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भारत में भी इजरायल फार्मूला अपनाए बिना यह देश एक बार फिर मुगल काल में वापस चला जा सकता है कम से कम एक हिस्सा,ऐसा जानकार लोग बताते हैं।

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और अंत मंें

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यदि बिहार विधान सभा चुनाव में जेहादी पक्षियों को बल मिला तो पूरे देश पर खतरा बढ़ जाएगा।

सन 2020 के बिहार विधान सभा चुनाव में जिन मतदाता लोगों ने चिराग पासवान के दल को वोट दिए,उन लोगों ने बाद में पछताया--कहा कि जंगल राजकी पुनरावृति से हम बाल-बाल बचे।

यदि इस बार भी चिराग पासवान के नये संस्करण के चक्कर में पड़े तो आप अपने और पूरे देश के लिए भारी संकट को आमंत्रित करेंगे।

याद रहे कि इस बार के बिहार चुनाव में जितने बड़े पैमाने पर पैसों का खेल होने वाला है--वैसा खेल इससे पहले कभी नहीं हुआ था यहां।

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29 अगस्त 25   



 ब्रिटिश इतिहासकार सर जे.आर.सिली (1834-1895)ने लिखा है कि ब्रिटिशर्स ने भारत को कैसे जीता।

मशहूर किताब ‘द एक्सपेंसन आॅफ इंगलैंड’ के लेखक सिली  की स्थापना थी कि 

‘‘हमने (यानी अंग्रेजों ने) नहीं जीता,बल्कि खुद भारतीयों ने ही भारत को जीत कर हमारे प्लेट पर रख दिया।’’

  चैधरी चरण सिंह ने सर जे.आर.सिली की पुस्तक का हिन्दी में अनुवाद करवाकर बंटवाया था।

  चरण सिंह ने एक तरह से हमें चेताया था कि यदि इस देश में गद्दार मजबूत होंगे तो देश नहीं बचेगा।

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मध्य युग में भी वीरता की कमी के कारण हम नहीं हारे।

बल्कि आधुनिक हथियारों की कमी और आपसी फूट के कारण हारे।

हमारे राजा अपने विदेशी दुश्मन की माफी को बार-बार स्वीकार कर उसे बख्श देते थे।

  पर, दुश्मन एक बार भी नहीं बख्शता था।


मंगलवार, 19 अगस्त 2025

 शेषन की उपलब्धि और ज्ञानेश के कत्र्तव्य !

आयोग के प्रति राजनीतिक दलों के रुख

--तब और अब !

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सुरेंद्र किशोर

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मुख्य चुनाव आयुक्त टी.एन. शेषन ने सन 1994 में कहा था कि ‘‘भारत का लोकतंत्र धन,अपराध और भ्रष्टाचारों के स्तम्भों पर खड़ा है।’’

सवाल है कि पिछले चार दशकों में इस मामले में कितना फर्क आया है ?

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यदि वे आज मुख्य चुनाव आयुक्त होते तो इन स्तम्भों में चैथा स्तम्भ भी जोड़ देते --

‘‘घुसपैठियों का वोट बैंक’’ वाला स्तम्भ।

   खैर, शेषन ने जो कुछ कहा था,उस ‘‘स्थिति’’ में 1994 से आज तक कितना फर्क आया है ?

इस सवाल का जवाब कोई पूर्वाग्रह रहित भारतीय नागरिक ही ठीक- ठीक दे सकता है।

मैं सिर्फ शेषन के कुछ कदमों और उनकी उक्तियों की यहां याद दिलाऊंगा।

अब यह तय करना भी पूर्वाग्रह रहित भारतीयों का ही काम है कि मौजूदा मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार सही कर रहे हैं या गलत।

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  टी.एन.शेषण ने कहा था कि ‘‘जब तक मतदाता पहचान पत्र नहीं बनेगा,तब तक मैं अगला कोई चुनाव नहीं कराऊंगा।’’

बिहार विधान सभा का 1995 का चुनाव सिर पर था।

मुख्य मंत्री लालू प्रसाद को लगा था कि हमें चुनाव में हराने के लिए शेषन यह षंड्यंत्र रच रहा है।मुख्य मंत्री ने कह दिया कि मतदाता पहचान पत्र बनाने के लिए हमारे पास पैसे नहीं हैं।पर शेषन की जिद के आगे उन्हें झुकना पड़ा।

शेषन ने कहा था कि पैसा नहीं है तो प्रजातंत्र बंद करो।

इस संबंध में इंडिया टूडे ने मुख्य मंत्री लालू प्रसाद से बातचीत की थी।मुख्य मंत्री ने कहा कि ‘‘कुछ नहीं।बात साफ है।यह प्रधान मंत्री नरसिंह राव ,भाजपा और शेषन की तिकड़मबाजी का नतीजा है।ब्राह्मणवादी शक्तियों को यह साफ लगने लगा कि हम दो -तिहाई बहुमत से जीत कर आनेवाले हैं तो उन्होंने एक षड्यंत्र रचा ,तिकड़मबाजी का।’’(इंडिया टूडे--15 मार्च 1995)

मतदाता पहचान पत्र के साथ जब चुनाव हुआ तो लालू प्रसाद की पार्टी को पूर्ण बहुमत मिल गया।

लालू प्रसाद ने स्वीकार किया था कि मतदाता पहचान पत्र के कारण हमारे मतदाताओं को बेहतर सुविधा मिली।

यही नहीं, टी.एन.शेषन पर हाजीपुर(वैैशाली ,बिहार )के जयप्रकाश क्रांतिकारी ने ‘शेषन चालीसा’ लिख डाला।

 उसकी कुछ पंक्तियां यहां उधृत हैं--

‘‘शेषन है अति गुन सागर।

जनतंत्र को करे उजागर ।।

आए शेषन लेकर डंडा।

हो गए होश सभी के ठंडा।।

शेषन है अति बजरंगी।

मतदाता के असली संगी।।

अब चुनाव में मजा आएगा।

भ्रष्ट नेता चने चबाएगा।।

जय जय हे शेषन महानामा।

कृपा करो जनतंत्र बचाना।।

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टी.एन.शेषन ने एक बार कहा था -‘‘मैं रीढ़विहीन नहीं हूं।’’ 

एक पत्रकार ने जब शेषन से पूछा कि क्या आपको इस्तीफा देने की नौबत आ सकती है,शेषन ने कहा--जो ऐसा सोचते हैं,वे विक्रम हैं और मैं वेताल।

दरअसल जब शेषन ने कहा कि मतदाता पहचान पत्र बने बिना मैं लोक सभा या विधान सभा के चुनाव नहीं होने दूंगा,उस पर प्रधान मंत्री से लेकर लगभग सारे दल शेषन पर खासे नाराज हो गये।किंतु पूर्व विधायक अश्विनी शर्मा ने कहा कि ‘‘फर्जी वोटिंग कराने वाले ही पहचान पत्र का विरोध कर रहे हैं।क्योंकि चुनावों में 95 प्रतिशत मतदान केंद्रों पर बोगस मतदान होता है। सिर्फ 20-25 प्रतिशत मतदाता ही मतदान केंद्रों पर जाते हैं।’’

उन दिनों एक कहावत चली थी--‘‘राज नेता सिर्फ दो लोगों से डरते हैं--‘‘एक भगवान और दूसरे शेषन से।’’

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चुनावी कदाचार भारत को बोस्निया बना देगा

  ---टी.एन.शेषन

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शेषन को काबू में लाने के लिए केंद्र सरकार ने एक सदस्यीय चुनाव आयोग को तीन सदस्यीय बना दिया था।

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सिस्टम से उनकी लड़ाई के संदर्भ में शेषन ने कहा था कि कानून का शासन मेरा एकमात्र धर्म है।

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शेषन के खिलाफ और पक्ष में कई  बातें तब सुनी गई थीं।

1.-प्रधान  मंत्री राजीव गांधी की कार के साथ 10 मील तक पैदल दौड़े थे शेषन।तब वे कैबिनेट सचिव थे।

2.-एक दफा संवाददाताओं से बातचीत करते हुए शेषन ने कहा कि ‘‘मैं अमिताभ बच्चन की तरह चर्चित हूं।’’

3.-पूर्व चुनाव आयुक्त एस वाई कुरैशी ने कहा कि शेषन ने आयोग को सशक्त बनाया।(--प्रभात खबर, 12 नवंबर 2019)

4.-मुख्य चुनाव सुनील अरोड़ा ने कहा था कि टी.एन.शेषन हमारी प्रेरणा के स्रोत हैं।

5.-जब राज्य सभा में चुने जाने के लिए वित्त मंत्री मनमोहन सिह ने असम के दिसपुर विधान सभा क्षेत्र के मतदाता के रूप में अपना नाम दर्ज करवाया तो शंेषन ने उस पर जांच बैठा दी।कहा कि वे तो सामान्यतः दिल्ली में रहते हैं न कि असम में।

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19 अगस्त 25


 कहीं देर न हो जाये !!

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इस देश के लोकतंत्र,अखंडता और संविधान के पक्षधरों और 

इसके गैर पक्षधरों को जितनी जल्द पहचान लीजिएगा,उतना 

अधिक आप सुरक्षित रहिएगा।

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सुरेंद्र किशोर

इस देश के कौन- कौन राजनीतिक दल और नेता प्रतिबंधित पाॅपुलर फ्रंट आॅफ इंडिया और बांग्ला देशी-रोहिग्या घुसपैठियों के विरोधी है ?

किन -किन दलों ने इन दो तत्वों के खिलाफ बयान दिए हैं ?

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किन- किन दलों ने पी.एफ.आई. और घुसपैठ की 

समस्याओं पर चुप्पी साध रखी है ?

या,कौन -कौन दल इनका घुमा-फिरा कर समर्थन और बचाव करते रहते  हैं ?

या,उनसे सांठगांठ रखते हैं ?आपके लिए यह जान लेना कठिन नहीं है।

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चूंकि इस देश में आने वाला समय काफी कठिन संघर्षों वाला होने वाला है,इसलिए देश के हितचिंतकों और वोट बैंक के हित चिंतकों को अभी से पहचान लें।

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बांग्ला देशी-रोहिग्या घुसपैठ

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करोड़ों की संख्या में वे इस देश में आ चुके हैं।आज भी आ रहे हैं।

इससे इस देश में आबादी का अनुपात तेजी से बदल रहा है।

इस्लामिक प्रवचन कर्ता डा.जाकिर नाइक को आप यू. ट्यूब पर यह कहते सुन सकते हें कि भारत में हिन्दुओं की आबादी अब कुल आबादी का सिर्फ 60 प्रतिशत ही रह गई है।

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पी.एफ.आई.

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इस हथियारबंद प्रतिबंधित इस्लामिक संगठन पी.एफ.आई. ने यह घोषणा कर रखी है कि हम हथियारों के बल पर सन 2047 तक भारत को इस्लामिक देश बना देंगे।यह संगठन हथियारबंद कातिलों के दस्ते तैयार कर रहा है।

बांग्ला देशी -रोहिंग्या घुसपैठियों की संख्या जितनी अधिक बढ़ेगी

पी.एफ.आई.का काम उतना ही आसान होगा।भारत सरकार का काम उतना ही कठिन होगा।

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यह आरोप लगाया जा रहा है कि मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण अभियान का विरोध इसीलिए हो रहा है ताकि घुसपैठियों के नाम इस देश की मतदाता  सूची से चुनाव आयोग निकाल बाहर न कर सके।

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पश्चिम बंगाल में यह समस्या और भी गंभीर है।

वहां तो ममता बनर्जी घुसपैठियों के पक्ष में चट्टान की तरह खड़ी हैं।

वहां भी मतदाता पुनरीक्षण का काम होने वाला है।

वहां राष्ट्रपति शासन लगाये बिना चुनाव आयोग यह काम कर पाएगा या नहीं,यह देखना महत्वपूर्ण होगा।

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17 अगस्त 25


 


रविवार, 10 अगस्त 2025

 हार का असली कारण पहचान तो ले कांग्रेस !

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अपने निधन के कुछ ही समय पहले मधु लिमये ने 

‘द हिन्दू’ में लेख लिख कर यह भोली उम्मीद पाली 

थी कि कांग्रेस ही देश को बचा सकती है।

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सुरेंद्र किशोर

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सत्ता पलट के तत्काल बाद बांग्ला देश में अगस्त , 2024 में हुई व्यापक सांप्रदायिक हिंसा और महिला उत्पीड़न 

का असर भारत के बहुसंख्यक मतदाताओं के वैसे हिस्से पर  

भी पड़ रहा है जो पहले भाजपा के वोटर नहीं थे।

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गत साल बांग्ला देश में जेहादियों के हाथों हिन्दू महिला-पुरुष की भीषण प्रताड़नाओं के दृश्य टी.वी.चैनलों पर देखने के बाद भारत के मतदाताओं के 

एक और हिस्से का मूड बदल गया लगता है।

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इसीलिए सन 2024 के लोक सभा चुनाव और बाद के कुछ विधान सभाओं के चुनावों के रिजल्ट में साफ फर्क दिखाई पड़ा--सिर्फ झारखंड को छोड़कर।यहां तक कि उप चुनावों पर भी बांग्ला देश का  असर रहा।

5 अगस्त, 2024 को बांग्ला देश में तख्ता पलट हुआ । वहां के जेहादी लोग  हिन्दुओं खास कर उनकी महिलाओं के खिलाफ बड़े पैमाने पर हिंसक व पशुवत हो उठे।

जैसा मध्य युग में जेहादियों ने भारत में अत्याचार किए और जो कुछ सन 1990 में कश्मीर में हुआ,वही सब कुछ बांग्ला देश में हुआ और रुक रुककर अब भी हो रहा है।अब तो भारत के कुछ हिस्सों से भी ऐसी बर्बरताएं हो रही हैं जहां आबादी का अनुपात बदल गया है।

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आप पूछेंगे कि धर्म के नाम पर ऐसा अत्याचार तो सदियों से हो रहा है।अब अंतर क्या आया  है ?

अंतर यह हुआ कि बांग्ला देश में सन 2024 में हिन्दुओं के साथ हुए अमानवीय कुकृत्यों को भारत के लोगों ने खासकर हिन्दुओं ने अपने टी.वी.चैनलों पर अपनी आंखों से देखा।

  नब्बे के दशक में जो कुछ कश्मीर में हुआ था,उसके दृश्य तो लोगों ने टी.वी.चैनलों पर सजीव नहीं देखे थे। मध्य युग में हुए जेहादी अत्याचारों की कहानियों से संबंधित इतिहास को कांग्रेस सरकार ने इस तरह पेश किया ताकि मुगल शासक 

अधिक क्रूर न लगें।

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यहां तक कि नवंबर, 2024 में बिहार में  जिन चार विधान सभा सीटों पर उप चुनाव हुए,उन सभी चार सीटों पर राजग की जीत हुई।

 चार में से तीन सीटों पर सन 2020 में राजद-माले उम्मीदवार विजयी हुए थे।

बिहार में राजद-माले से कोई सीट छीन लेना कोई मामूली बात नहीं मानी जाती ।

नवंबर, 2024 में जिन कुछ अन्य राज्यों में विधान सभाओं के उप चुनाव हुए,उनमें भी अपेक्षाकृत काफी अधिक सीटें राजग को मिलीं,यहां तक कि यू.पी.में भी राजग ने कमाल किया जबकि 2024 के लोक सभा चुनाव में यू.पी.में राजग की बुरी तरह हार हुई थी।

इस फर्क को समझिए।

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ए.के.एंटोनी की सलाह को 

नजरअंदाज करने का नुकसान 

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सन 2014 के लोक सभा चुनाव में भारी पराजय के बाद सोनिया गांधी ने एंटोनी से कहा था कि आप चुनाव में कांग्रेस की हार के कारणों  पर रपट बनाइए।

  एंटोनी ने रपट बनाई।

 सोनिया जी को दे दिया।

उसमें अन्य कारणों के साथ- साथ यह भी लिखा गया था कि ‘‘मतदाताओं को, हमारी पार्टी अल्पसंख्यक (मुसलमानों)की तरफ झुकी हुई लगी जिसका हमें नुकसान हुआ।’’

पर कांग्रेस हाईकमान ने एंटोनी की इस बात को नजरअंदाज कर दिया।

   न सिर्फ नजरअंदाज कर दिया,बल्कि इस बीच काग्रेस अल्पसंख्यकों के बीच के अतिवादियों के साथ पहले से अधिक घुलमिल गई है।इसका सबसे बड़ा प्रमाण यह है कि कांग्रेस कभी पी.एफ.आई.और एस.डी.पी.आई.की हिंसक गतिविधियों की निंदा नहीं करती।पी.एफ.आई. का घोषित लक्ष्य है--हथियारों के बल पर सन 2047 तक भारत को इस्लामिक देश बना देना है। 

    पूर्व उप राष्ट्रपति हामिद अंसारी पी.एफ.आई.की महिला शाखा के समारोह में शामिल होने के लिए 23 सितंबर, 2017 में कोझीकोड गए थे ।

  पी.एफ.आई.के राजनीतिक संगठन एस.डी.पी.आई.का पिछले के पिछले कर्नाटका विधान सभा चुनाव में कांग्रेस से तालमेल हुआ था ।


दूसरी ओर, राहुल गांधी लोक सभा में कहते हैं--जो लोग खुद को हिन्दू कहते हैं ,वे लोग चैबीसों घंटे हिंसा हिंसा हिंसा।नफरत नफरत नफरत करते हैं।

अब आप ही बताइए कि यह भाषण सुनकर कोई बहुसंख्यक समाज क्या सोचेगा ??

खबर है कि केरल के अधिकतर मुस्लिम वोट पी.एफ.आई.के प्रभाव में है।संकेत है कि वहां कांग्रेस अगला विधान सभा चुनाव आसानी से जीत कर सरकार बना सकती है।

कांग्रेस पूरी तरह मुस्लिम वोट पर निर्भर हो गयी है।देश भर में इसकी प्रतिक्रिया तो स्वाभाविक है, केरल में चाहे जो हो। 

सोशल मीडिया के विस्फोट के इस दौर में गांव- गांव तक लोगों को मालूम होता रहता है कि कौन दल क्या कर रहा है और कौन दल क्या नहीं कर रहा है।कौन दल देश और उनके हक में है और कौन दल हक में नहीं है।

इसलिए चुनाव आयोग पर हमला करने मात्र से कांग्रेस का कोई भला होने वाला नहीं है।

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10 अगस्त 25

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पुनश्चः

अपने निधन के कुछ ही समय पहले मधु लिमये ने ‘‘द हिन्दू’’ में लेख लिखकर कहा था कि सुधरी हुई कांग्रेस ही इस देश को बचा सकती है।

 उनका आशय यह था कि कांग्रेस देश भर में फैली है और सेक्युलर छवि वाली है।सांप्रदायिक एकता कायम रख पाएगी। कांग्रेस से ऐसी भोली उम्मीद मधु लिमये ने की थी।

पर परलोक में संभवतः वे पछता रहे होंगे कि 

 उन्होंने गलत उम्मीद की थी।



सोमवार, 4 अगस्त 2025

 मणिशंकर कांग्रेस के शुभ चिंतक हैं या कांग्रेस 

विरोधी राजनीतिक दलों के छिपे दोस्त ?!

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सुरेंद्र किशोर

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  एक 

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  अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सम्मेलन स्थल पर किसी पत्रकार ने मणि शंकर अय्यर से नरेंद्र  मोदी की बात छेड़ दी।

 अययर ने कहा कि नरेंद्र मोदी 21 वीं सदी में किसी भी कीमत पर प्रधान मंत्री नहीं बन सकते।

हां,वे चाय का वितरण करना चाहें तो ए.आईसी.सी.परिसर में मैं उसका इंतजाम करा दूंगा।

 ---17 जनवरी 2014


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दो 

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सन 2015 में पाकिस्तान जाकर वहां के एक टी.वी.चैनल पर बोलते हुए मणिशंकर अय्यर ने पाकिस्तानियों से अपील की कि 

‘‘पहले आपलोग मोदी को हटाइए।’’

उस पर सन 2017 में प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने आरोप लगाया कि मणि शंकर अय्यर ने मेरे लिए पाकिस्तानियों को ‘सुपारी’ दी थी।

मुझे हटाने के लिए वे कह आए।हटाने से उनका मतलब क्या था ?

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तीन

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सन 1990 में मंडल आरक्षण आया था।

राजीव गांधी ने अपने मित्र मणिशंकर अय्यर से कहा कि कार्य समिति में पेश करने के लिए एक प्रस्ताव तैयार कर दीजिए।

तब के ‘इंडिया टूडे’ के अनुसार राजीव जी के लिए तैयार नेहरूवादी मणिशंकर के प्रस्ताव में आरक्षण का पूर्ण विरोध था।

बैठक में सीताराम केसरी तथा कुछ अन्य बड़े नेताओं के विरोध के बाद उस प्रस्ताव में बीच -बीच का रास्ता निकाला गया।

फिर भी उस पर पिछड़ों को लगा कि कांग्रेस अब भी नेहरू जी की राह पर है जो आरक्षण के कट्टर विरोधी थे।

नतीजतन अधिकतर पिछड़े कांग्रेस से निराश हो गये और क्षेत्रीय दल मजबूत हो गये।उसके बाद कभी कांग्रेस को लोक सभा में अपना बहुमत नहीं मिला।

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चार

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मणिशंकर अय्यर ने कहा कि भगवान राम के महल में 10 हजार कमरे थे।

आप कैसे पुख्ता तौर पर कह सकते हैं कि राम उसमें से किस कमरे में पैदा हुए थे ?

----8 जनवरी 2019

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   पांच

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‘‘प्रधान मंत्री राजीव गांधी पहले व्यक्ति थे जिन्होंने बाबरी मस्जिद स्थित राम जन्मभूमि का ताला सन 1985 में खोलवा दिया था।

इसलिए राम मंदिर निर्माण का श्रेय किसी और को नहीं लेना चाहिए।’’

--  कमलनाथ, पूर्व मुख्य मंत्री, मध्य प्रदेश,

--टाइम्स नाऊ डिजिटल,

   6 अगस्त, 20

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‘‘ताला खोलवाने में राजीव गांधी का कोई हाथ नहीं था।

राजीव गांधी को  तो ताला खोले जाने की जानकारी भी नहीं थी।

दरअसल ताला खोल देने के एक स्थानीय अदालत के निर्णय

के आधे घंटे के भीतर ही छल कपट के तहत हाथ की सफाई दिखाते हुए कुछ लोगों ने ताला खोल दिया।’’

    ----- मणि शंकर अय्यर,

             द हिन्दू-6 अगस्त 20

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छह

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गुजरात विधान सभा चुनाव से ठीक पहले मणिशंकर अय्यर  ने नरेंद्र मोदी को ‘‘नीच आदमी’’ कह दिया।

इन दो शब्दों को भंजा कर भाजपा ने गुजरात में अपनी बिगड़ी चुनावी स्थिति सुधार ली।

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सात

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10 दिसंबर, 2013 को मणिशंकर अय्यर ने कह दिया था कि सन 2014 का लोक सभा चुनाव कांग्रेस हार सकती है।

मनमोहन सिंह को 2009 में दुबारा प्रधान मंत्री नहीं बनाना चाहिए था।

हालांकि मणिशंकर ने प्रथम परिवार के खिलाफ एक शब्द भी  नहीं कहा जबकि मनमोहन सिंह अपने पूरे कार्यकाल में प्रथम परिवार की आज्ञा का ही पालन करते रहे।

जब शीर्ष नेता ही कह दे कि हम हार सकते हैं तो उसका तो और भी विपरीत असर उसके चुनावी भविष्य पर पड़ेगा।पड़ा भी। 

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आठ

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 मणि शंकर अय्यर और सलमान खुर्शीद ने अगस्त 2024 में ही यह कह दिया था कि जो कुछ बांग्ला देश में हुआ,वैसा भारत में भी हो सकता है।

   हाल में नागपुर में जो कुछ हुआ,वह बांग्लादेश की घटनाओं की ही झलक प्रस्तुत कर रहा था।

नागपुर में गृह युद्ध का माहौल बनाया गया था न कि किसी लोकतांत्रिक विरोध का।

नागपुर की ताजा घटना से बांग्लादेश का संबंध भी जुड़ा बताया जा रहा है।

बाकी बातें सलमान और अय्यर जांच एजेंसियों को बता सकते

हैं कि उनको कैसे पहले ही पता चल गया था ??

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अब मणि शंकर अय्सर का ताजा बयान पढ़िए

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‘‘मणिशंकर अय्यर ने पहलगाम आतंकी हमले पर मोदी सरकार को कठघरे में खड़ा करते हुए कहा कि जिन 33 देशों में हमारे प्रतिनिधि मंडल भेजे गये थे,उन देशों में से किसी देश ने नहीं कहा कि पाकिस्तान जिम्मेदार है।

संयुक्त राष्ट्र और अमेरिका ने भी पाकिस्तान को लेकर कुछ नहीं कहा।

हम ही है कि चिल्ला -चिल्ला कर कहते हैं कि पाकिस्तान जिम्मेदार है।

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 4 अगस्त 25



 



       


रविवार, 3 अगस्त 2025

 अपनी आंखों की सेहत के लिए स्क्रीन 

पर कम से कम समय दीजिए

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कतिपय सावधानियों के कारण 

मुझे अब तक मोतियाबिंद तक का भी 

आॅपरेशन नहीं कराना पड़ा है।इसलिए मुझे यह 

उपदेश देने का पूरा अधिकार है।

मेरी उम्र का आपको अंदाज होगा ही ।

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सुरेंद्र किशोर

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मूल सिद्धांत--कम से कम स्क्रीन टाइम !

क्योंकि मुझे अपनी आखें बहुत प्यारी हैं।

मैं कम्प्यूटर स्क्रीन पर तभी जाता हूं जब उस पर गए बिना मेरा काम नहीं चलता।

काम --यानी, रोजी-रोटी के लिए लेखन करने का काम।

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यदि कोई ऐसी सामग्री जो मेरे लेखन में मदद करेगी और वह स्क्रीन पर ही है यानी आॅनलाइन ही है तो मैं पहले उसका प्रिंट आउट निकालता हूं।

आप जानते ही हैं कि प्रिंट आउट निकालना कितना महंगा पड़ता है।पर आंखें तो अनमोल हैं।

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इन दिनों मुझे बड़ी मात्रा में दिन भर देश भर से कुछ न कुछ पठन सामग्री आती रहती है।उनके मैं सिर्फ हेडिंग पढ़ता हूं और उन्हें डिलीट कर देता हूं।यदि मेरे लेखन में काम आने लायक कोई चीज हो तो फिर उसका प्रिंट आउट ।

इसलिए जो लोग मुझे भेजते हैं ,वे यह न समझें कि मैं उसे पढ़ ही लूंगा।

क्योंकि मुझे अपनी आंखें प्यारी हैं।

अधिक स्क्रीन टाइम, यानी आंखों के कमजोर होते जाने के अधिक चांस !!!

अब आप ही फैसला करें ।मैं अपनी आंखें के साथ कैसा सलूक करूं ??

आप मुझे यह शुभ कामना दें कि आगे भी मुझे मोतियांिबंद तक का भी आॅपरेशन करना न पड़े।  

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2 अगस्त 25


बुधवार, 30 जुलाई 2025

 


हां, मैंने अपना विचार बदला है-

सिर्फ देश-काल-पात्र की जरूरतों को

 ध्यान में रखकर।

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सुरेंद्र किशोर

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जो लोग आज मुझसे अलग विचार रखते और व्यक्त करते हैं,उन्हें मैं तो कभी नहीं टोकता,अशिष्ट भाषा में उन्हें अपमानित करने का तो मेरा स्वभाव भी नहीं।

क्योंकि मैं उनका गार्जियन नहीं हूं।

पर, मुझे टोकने वाले बहुत से लोग इन दिनों पैदा हो गये हैं।

पता नहीं,यह अधिकार उन्हें कहां से मिल जाता है !

सही तो यह होता कि सभी पक्षों के विचार जनता में जाते।

जनता को जो फैसला करना होता, वह करती।

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डा.राम मनोहर लोहिया और जयप्रकाश नारायण ने भी कभी अपने विचार बदले थे।

उन्होंने भी किसी भौतिक लाभ के लिए नहीं बल्कि देशहित मंे बदले थे।मैंने भी किसी भौतिक लाभ के लिए नहीं बल्कि देशहित में बदले हैं।

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इन दिनों भारत में भी इस्लामिक जेहाद की आंधी चल रही है।कुछ दिनों में यह आंधी, तूफान बन सकती है।

जेहादी संगठन पी.एफ.आई.(उसका राजनीतिक संगठन है  -एस डी पी आई ) सन 2047 तक भारत को इस्लामिक देश बना देने के लिए कातिलों के दस्ते तैयार कर रहा है।इस के खिलाफ  किसी तथाकथित सेक्युलर दल का 

 कोई बयान कहीं कभी देखा आपने ?

हां,जब कोई गो -तस्कर भीड़ का शिकार होता है तो सारे सेक्युलर चिल्लाने लगते हैं। यह रिश्ता क्या कहलाता है ?

इस देश में इस इस्लामिक आंधी को जो रोक सकता है या रोकने की ईमानदार कोशिश कर रहा है,मैं उनके साथ हूं।हालांकि मैं न तो शरीयत के साथ हूं और न ही हिन्दू राष्ट्र के।

मैं भारतीय संविधान के साथ हूं।

जांे उस आंधी को देखने के बावजूद वोट बैंक के नाराज होने के डर से चुप हंै,मैं उनके साथ नहीं हूं।

कौन कहां -कहां है ,यह विस्तार से बताने की जरूरत नहीं है।लोगबाग समझ ही रहे हैं।

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इस बीच मुझे पद्मश्री सम्मान मिल गया।मैंने न तो यह सम्मान किसी से मांगा था और न इसकी कोई आकांक्षा की थी।

मुझे इस देश में लोगबाग, कई पद्म सम्मानित लोगों की अपेक्षा अधिक जानते रहे हैं।

यानी, पद्मश्री से न तो मैं ऊपर उठा हूं और न नीचे गया हूं।इसके साथ कोई भौतिक लाभ भी तो नहीं।

सवाल उठेगा कि आपने स्वीकार क्यों किया ?

मैंने अपने परिवार खासकर पत्नी के ‘‘आत्म गौरव’’ के लिए इसे स्वीकार कर किया।उधर जिसने मुझे पद्म सम्मान दिया,उसकी कोई शर्त भी नहीं थी।

मैं कभी भाजपा या संघ की बैठक में जाता भी नहीं ,न कभी गया।

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मैंने कुछ साल पहले अपनी पत्नी से कहा था कि तुम्हें (मिडिल स्कूल के )हेड मास्टर पद पर प्रोन्नति की जो चिट्ठी मिली है,उसे अस्वीकार कर दो।वह मान गई।

ऐसा कोई दूसरा उदाहरण हो तो बताइएगा।

  उसके कहने पर मैंने एक बहुत बड़े  अफसर को फोन किया कि आप ऐसा करवा दीजिए।(वे इस बात की गवाही देने के लिए हमारे बीच अब भी मौजूद है।ं)उन्होंने यह इंतजाम कर दिया कि मेरी पत्नी सहायक शिक्षिका ही रहीं।

पूछिएगा कि मैंने वैसा क्यों किया ?

इसलिए किया कि हेड मास्टर को मिड डे मिल हैंडिल करना होता है।अभी व्यवस्था ऐसी हो गई है कि जो हेड मास्टर उसमें कुछ गडबड़ नहीं करेगा,तो उल्टे उसे सस्पेंड कर दिया जाएगा।क्योंकि ऊपर वाले को रेगुलर नजराना चाहिए। 

 दूसरी ओर , मेरे घर में आज तक दो नंबर का पैसा नहीं आया है।आगे भी न आए,उसका मैंने इंतजाम किया।

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 लालू प्रसाद और नीतीश कुमार युवजन सभा के दिनों से ही मेरे मित्र रहे हैं।

मैं और लालू प्रसाद एक ही साथ सन 1968 में  बिहार समाजवादी युवजन सभा के संयुक्त सचिव चुने गये थे।तीसरी संयुक्त सचिव थीं बेगूसराय की शांति देवी।सचिव शिवानन्द तिवारी चुने गये थे।

इन दोनों शीर्ष सत्ताधारी नेताओं को मेरी ‘‘गरीबी’’ कम करके खुशी होती।

मेरी बात पर भरोसा न हो तो  लालू और नीतीश (दोनों ही उम्र में मुझसे छोटे हैं।)के कान में बतियाने वाले जो भी व्यक्ति हों,वे उनसे मेरा नाम लेकर पूछ सकते हैं कि उन्हें खुशी होती  या नहीं ?

इसके विस्तार में जाना अशिष्टता होगी।बड़ बोलापन होगा।

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मुझे लगता है कि अब मेरा स्टैंड स्प्ष्ट हो चुका होगा।

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पुनश्चः 

डा. लोहिया ने देश की सत्ता पर से कांग्रेस का एकाधिकार तोड़ने के लिए जनसंघ और कम्युनिस्ट सहित लगभग सभी प्रतिपक्षी दलों को 1967 में एक मंच पर लाया।

नतीजतन 1967 में बिहार-उत्तर प्रदेश की गैर कांग्रेसी सरकारों में जनसंघ और सी.पी.आई.के मंत्री एक साथ बैठकर सरकार चला रहे थे।

1972-74 में जब इंदिरा गांधी ने एकाधिकारवादी शासन शुरू किया तो जेपी ने उनके खिलाफ सभी प्रतिपक्षी दलों को एक करने की कोशिश की।जेपी ने कम्युनिस्टों को भी आमंत्रित किया था।पर वे नहीं आये। ए.के.राय- जैसे स्वतंत्र कम्युनिस्ट जेपी से जरूर जुड़े।

 जनसंध और संघ के लोग तो जेपी आंदोलन में शामिल थे ही।

याद रहे कि न तो जेपी को खुद सत्ता में जाना था और न ही लोहिया को।

इसीलिए वे वोट बैंक के लोभ से ऊपर उठकर खुले दिमाग से देशहित में सोच सकते थे।

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देश, काल, पात्र की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए चीन और रूस की सत्ताधारी कम्युनिस्ट पार्टियों ने अपनी कार्य नीतियां बदलीं।इसीलिए वे अब भी ‘‘जीवित’’ हैं।सत्ता में बने हुए हैं

और अपने ढंग से देश की सेवा कर रहे हैं।चीन सरकार का उइगर जेहादियों के खिलाफ जितना कड़ा रुख है,उतना कड़ा रुख भारत के जेहादियों के खिलाफ भाजपा सरकार  का नहीं है।जेहादी लगभग पूरी दुनिया में आज उन्मादी बने हुए हैं।

पर, उससे उलट भारत के कुछ कम्युनिस्ट सन 1917 में जी रहे हैं तो कुछ अन्य सन 1949 में।

  इसीलिए उनका सफाया होता जा रहा है।अगले विधान सभा चुनाव में केरल की सत्ता से भी माकपा साफ हो जाएगी,ऐसा लगता है।गत लोक सभा चुनाव में माकपा को केरल में सिर्फ 1 सीट ही मिली है। काल बाह्य विचारों को बंदरमूठ की तरह पकड़े रहने का यह नतीजा है कि सबसे अधिक त्यागी-तपस्वी काॅडर वाले भारतीय कम्युनिस्ट दल अब अप्रासंगिक होते जा रहे हैं।यह स्थिति गरीबों में यह चिंता पैदा करती है।

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कम से कम मेरे वंशज यह तो नहीं कहेंगे कि जब छांगुर जैसा दुर्दांत जेहादी देश में तांडव मचा रहा था, तब भी मेरा पूर्वज मौन था।उसने एक पोस्ट भी नहीं लिखा।

लोगबाग आज जयचंद का नाम अधिक क्यों लेते हैं ?

हालंाकि वह मान सिंह से कम दोषी था।

मान सिंह तो अकबर के साथ मिल कर महाराणा के खिलाफ युद्ध लड़ रहा था।

पर जयचंद तो आखिरी गोरी-चैहान युद्ध में सिर्फ तटस्थ रह गया था।

आम धारणा है कि यदि जयचंद, चैहान से मिल कर लड़ा होता तो पृथ्वीराज चैहान नहीं हारता।इस देश का इतिहास नहीं बदलता।

इसीलिए जयचंद पर गुस्सा अधिक है।यह बात कम ही लोग जानते हैं कि गोरी की सेना ने चैहान के बाद जयचंद को भी मार डाला था।

आप आज के दौर में नजर दोैडाइए--मुझे उपदेश देने वाले यही चाहते हैं कि छांगुर की दरिंदगी पर मैं आज के सेक्युलर दलों तथा अन्य अनेक लोगों की तरह ही मौन रह जाऊं।

यह मुझसे नहीं होगा,चाहे आप मुझे जितनी गालियां दे लो।

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और अंत में

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क्या नीतीश सरकार और लालू सरकार ने मुझे किसी सरकारी कमेटी का एक मेम्बर तक बनने लायक भी कभी नहीं समझा था ?

या ,कोई और बात थी ?

जरा सोचिएगा ,यह आरोप लगाने से पहले कि मैंने मलाई के लिए इन दिनों अपने विचार बदल लिये हैं।

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24 जुलाई 25

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