इंटेलिजेंस ब्यूरो की ही तरह ‘स्पेशल ब्रांच’ को भी
कार्य कुशल बनाने की जरूरत
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सुरेंद्र किशोर
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केंद्रीय इंटेलिजेंस ब्यूरो और राज्य पुलिस के स्पेशल ब्रांच की सतर्कता और गुणवत्ता में भारी फर्क है।
देश-प्रदेश के समक्ष उपस्थित मौजूदा चुनौतियों को देखते हुए
राज्य पुलिस के ‘स्पेशल ब्रांच’ को भी आई.बी.की तरह ही दक्ष बनाने की आज सख्त जरूरत है।
दोनों संगठनों की कार्य क्षमता में फर्क का सबसे बड़ा कारण यह बताया जाता है कि इन संगठनों को उपलब्ध साधनों में भी काफी फर्क है।जबकि, काम लगभग एक जैसे करने होते हैं।
इस फर्क को शीघ्र कम करने की जरूरत है।
यह भी देखने की जरूरत है कि जितने साधन स्पेशल ब्रांच को उपलब्ध हैं,वह सही जगह ही खर्च हो।
आई.बी. का काॅडर प्रबंधन बेहतर है।
आई.बी.के लिए अलग से बहाली होती है।उन्हें समुचित प्रशिक्षण दिया जाता है।
कई कारणों से आई.बी.की विश्वसनीयता अधिक है।
इसीलिए कई बार बिहार में हुई किसी बड़ी घटना की खबर आई.बी.को पहले मिल जाती है और स्पेशल ब्रांच को बाद मंे।
कई बार तो स्पेशल ब्रांच को मिलती ही नहीं।
अस्सी और नब्बे के दशकों में एक संवाददाता के रूप में मेरा भी यही अनुभव रहा।
उन दिनों बिहार में आए दिन नर संहार हो रहे थे।
हाल ही में पटना के पास के फुलवारीशरीफ में जारी देश विरोधी गतिविधियों की जानकारी आई.बी.ने बिहार पुलिस को दी।
उसके बाद ही बिहार पुलिस कार्रवाई कर सकी।
हालांकि इस बात की सराहना होनी चाहिए कि बिहार पुलिस इस मामले में अब पेशेवर ढंग से काम कर रही है।
वह दिन कब आएगा जब बिहार पुलिस का स्पेशल ब्रांच कार्य कुशलता मंे आई.बी. की बराबरी कर पाएगा ?
इसके लिए यह जरूरी होगा कि बिहार सरकार स्पेशल ब्रांच को सचमुच ‘स्पेशल’ बनाने के लिए कुछ खास प्रयास करे।
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चैकसी की नियमित जांच जरूरी
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पिछले दिनों दिल्ली पुलिस के विशेष कोषांग ने दिल्ली के भीड़भाड़ वाले इलाकों में 30 डमी बम रख दिए थे।
उसे यह देखना था कि पुलिस
कितनी सतर्क रहती है।
इन में से सिर्फ 12 बमों का ही पता लग सका।
दिल्ली पुलिस,प्रायवेट सुरक्षा गार्ड और आम जन की नजरें सिर्फ 12 बमों पर ही पड़ीं।
यदि बम असली होते तो बाकी 18 जगहों में भी विस्फोट हो चुके होते।
दिल्ली का जब यह हाल है तो राज्यों की राजधानियों में सतर्कता का क्या हाल होगा ,उसका अनुमान आसानी से लगाया जा सकता है।
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पावती पर अब लघु हस्ताक्षर नहीं
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बिहार सरकार ने अपने अधिकारियों को यह आदेश दिया
है कि आम लोगों से मिले आवेदन पत्रों की पावती पर अब लघु हस्ताक्षर नहीं चलेगा।
इतना ही नहीं, पूरे हस्ताक्षर के साथ पावती देने से इनकार करने वाले सरकारी कर्मियों
के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी।
डाक से आए आवेदनों की पावती डाक से ही भेजी जाएगी।
बिहार सरकार यदि अपने इस आदेश को लागू कराने में सफल हो गई तो इससे पीड़ित लोगों को भारी राहत मिलेगी।
पर, समस्या सिर्फ पावती न मिलने की ही नहीं है।
मुख्य सवाल यह है कि सरकारी कार्यालयों में
उन लोगों के आवेदन पत्रों का क्या हश्र होता है जो संबंधित कर्मियों को खुश करने की स्थिति में नहीं होते ?
बिहार सरकार के समक्ष,देश की अन्य सरकारांे के समक्ष भी, हमेशा से ही यह बड़ी चुनौती रही है कि कैसे जनता को रिश्वतखोरी से राहत दिलाई जा सके।
इन दिनों भ्रष्ट अफसरों के खिलाफ जितने बड़े पैमाने पर बिहार में कार्रवाइयां हो रही हैं,उतने बड़े पैमाने पर पहले कभी नहीं हुई।इसके बावजूद बिहार के सरकारी कार्यालयों में रिश्वतखेारी रुकने का नाम ही नहीं ले रही है।क्या इसलिए कि रिश्वतखोर अब भी यह समझ रहे हैं कि ‘‘मारने वालों से अधिक ताकतवर अंततः बचाने वाला होता है ?’’
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समयबद्ध निपटारे का बंधन
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कल्पना कीजिए कि एक किसान दशकों से अपनी दस बीघे जमीन की मालगुजारी रसीद कटवाता रहा था।
अब कर्मचारी कहता है कि आपको आठ बीघे जमीन की ही रसीद कटेगी।जबकि दस बीघा जमीन हमेशा उसके शांतिपूर्ण कब्जे में रही है।
संबंधित आॅफिस में उसे यह बताया जाता है कि आठ बीघे को पहले जैसा दस बीघा बनाने के लिए अब आपको 50 हजार रुपए देने पड़ेंगे।
वह इतना पैसा देने की स्थिति में नहीं है।
यदि इस संबंध में किसान कोई आवेदन पत्र देकर सवाल पूछता है कि है तो अब
पूरे दस्तखत के साथ पावती रसीद तो उसे मिल सकेगी ।
किंतु उसे उसके सवाल का जवाब भी तीन महीने के भीतर मिल जाए कि उसका दो बीघा कम क्यों हो गया ?
यदि तीन महीने में जवाब नहीं मिलता है तो वह कहां दौड़ेगा ?
उसके लिए और ऐसे अन्य पीड़ितों के लिए अंचल कार्यालयों
में समय- समय पर जिले के उच्च अफसरों के शिविर लगे।
उसमें यह फैसला हो कि दो बीघा कम करने का दोषी कौन है ?
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और अंत में
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फुलवारीशरीफ में खतरनाक और देश विरोधी आतंकी संरचना यानी टेरर माड्यूल का हाल ही में पता चला है।
इस ‘टेरर माड्यूल’के बारे में विभिन्न राजनीतिक दलों की क्या राय हैं ?
उधर अधिकतर निरपेक्ष जनता की इस मोड्यूल पर क्या राय है ?
क्या अधिकतर जनता की राय और राजनीतिक दलों की राय के बीच कोई आपसी तालमेल है ?
यदि हां,तब तो ठीक है।
यदि नहीं तो कुछ दलों को अपने चुनावी भविष्य की चिंता अभी से कर लेनी चाहिए।
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18 जुलाई 22 के
दैनिक प्रभात खबर,
(पटना) में प्रकाशित
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