भूली-बिसरी याद
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25 जून 1975 को आपातकाल की घोषणा के बाद संजय गांधी के ही कहने पर केंद्र सरकार अनेक फैसले कर रही थी।
शाह आयोग की रपट में उसका विवरण आया है।
रपट के पेज नं.-21 पर लिखा है,
‘‘....जब श्री रे (सिद्धार्थ शंकर राय)कमरे के दरवाजे से बाहर जा रहे थे तो वे (केंद्रीय गृह राज्य मंत्री )ओम मेहता से यह सुनकर आश्चर्य चकित हो गए कि अगले दिन (यानी 26 जून 1975 को)उच्च न्यायालयों को बन्द करने के आदेश दे दिए गए है।
सभी समाचार पत्रों को बिजली सप्लाई बन्द करने के भी आदेश दिए गए हैं।’’
श्री राय इस बात के विरोधी थे।
वे इस फैसले को प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी से मिलकर रद करवाना चाहते थे।
दरअसल यह फैसला संजय गांधी का था जो किसी पद पर नहीं थे।
इस बीच संजय गांधी ने अत्यंत बदतमीजी और गुस्ताखी से कहा कि आप (यानी श्री राय)नहीं जानते कि देश पर शासन कैसे किया जाता है।
अंततः सिद्धार्थ शंकर राय प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी से मिले और उन्होंने दोनों आदेशों को रद करवाया।दरअसल आपातकाल लगाने की सलाह श्री राय की ही थी।
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आपातकाल में एक विधेयक तैयार किया गया था।
उसमें इस बात का प्रावधान था कि राष्ट्रपति,प्रधान मंत्री और लोक सभा के स्पीकर के खिलाफ आजीवन कोई मुकदमा दायर नहीं हो सकता।
पर, किसी ने राजनीतिक कार्यपालिका को समझाया कि ऐसा अनर्थ मत कीजिए।उसके बाद वह उस विधेयक पर काम आगे नहीं बढ़ा।
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22 जुलाई 22
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