कानोंकान
सुरेंद्र किशोर
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विस्फोट की घटना ने बता दी बेहतर पुलिस प्रशिक्षण की जरूरत
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पटना सिविल कोर्ट में गत शुक्रवार को बम विस्फोट हो गया।
विस्फोट किसी अपराधी ने नहीं किया।
अभियोजन आॅफिस के टेबल से गिर कर बम ब्लास्ट कर गया।विस्फोट से पुलिसकमर्मी सहित कई लोग
घायल हो गए।
पुलिस जिन्दा बम लेकर कोर्ट चली गई थी।
यानी पुलिस को इस बात का प्रशिक्षण नहीं मिला था कि कोर्ट ले जाने से पहले उस बम को डिफ्यूज कर या करा लेना चाहिए था।
यह बुनियादी सावधानी वह पुलिसकर्मी क्यों नहीं बरत सका जो बम लेकर कोर्ट गया था ?
इसका एक ही जवाब है कि कई स्तरों पर असवाधानी बरती जाती है।
यदाकदा यह खबर भी आती रहती है कि गार्ड आॅफ आॅनर देते समय राइफल से फायर ही नहीं हो पाता।
यदि ऐसी गलती एक बार हो गई तो क्षम्य है।
किंतु फायर न हो पाने की गलती बार-बार क्यों होती है ?
ऐसी गलतियों के बारे में संबंधित अधिकारियों को गंभीर रूप से सोचना-विचारना चाहिए।
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कार्रवाई में सावधानी जरूरी
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केंद्र सरकार ने राज्यों से कहा है कि वे अनुसूचित जाति और जनजाति के खिलाफ अपराध के मामलों में एफ.आई.आर.दर्ज करने में देरी नहीं करे।
केंद्र सरकार की यह पहल अच्छी है।
किंतु इसमें एक सावधानी की जरूरत है।
क्योंकि एस.सी.-एस.टी.(अत्याचार निवारण)कानून के दुरुपयोग की खबरें आती रहती हैं।
मायावती जी जब उत्तर प्रदेश की मुख्य मंत्री थीं, तो उन्होंने दुरुपयोग रोकने के कुछ उपाय किए थे।
उस संबंध में राज्य मुख्यालय से एक निदेश राज्य के सारे आरक्षी अधीक्षकों को भेजा गया गया था।
उस निदेश की काॅपी अन्य राज्यों के पास भी होने चाहिए।
वह ऐसा निदेश था जिससे न तो उस कानून के दुरुपयोग की भरसक आशंका थी और न किसी अत्याचार के बच जाने की गुंजाइश थी।
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जिनके घर शीशे के हांे
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इन दिनों एक खास बात कुछ अधिक ही देखी जा रही है।
प्रतिपक्षी दलों के जिन नेताओं के खिलाफ भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लंबित हैं,वे सत्ताधारी दल के समक्ष डट कर खड़ा नहीं हो पा रहे हंै।
ऐसी बात पहले भी छिटपुट होती थी।
किंतु अब कुछ अधिक ही हो रही है।क्योंकि राजनीति में भ्रष्टाचार बढ़ता जा रहा है।
हाल के उप चुनावों में एक चर्चित दल ने अपने उम्मीदवार खड़ा करने में एक खास बात का ध्यान रखा ।
वह यह कि उसने अपने उम्मीदवारों का फैसला इस तरह किया ताकि उससे सत्ताधारी दल को चुनावी लाभ मिल सके।
लाभ मिला भी।
नुकसान उस विवादास्पद दल को और उसके नेतृत्व को हुआ।
ठीक ही कहा गया है कि जिनके घर शीशे के हों,वे दूसरों के घरों पर पत्थर नहीं मारते।
इस कहानी का सबक यह है कि यदि राजनीति में किसी नेता को अपनी साख बढ़ानी या जमानी है तो उसे भरसक भ्रष्टाचार से दूर रहना चाहिए।
अन्यथा दबे-दबे रहना पड़ेगा।
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प्रोन्नति से पदावनति तक
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राजनीति में भी कभी प्रोन्नति होती है तो कभी उसी व्यक्ति की पदावनति हो जाती है।
हाल में पूर्व मुख्य मंत्री देवेंद्र फडणवीस के साथ भी यही हुआ।
बिहार में तो बहुत पहले यह सब हो चुका है।
दारोगा प्रसाद राय सन 1970 में बिहार के मुख्य मंत्री थे।
सन 1973 में अब्दुल गफूर मंत्रिमंडल गठित हुआ तो दारोगा बाबू उस सरकार में वित्त मंत्री बनाए गए।
केदार पांडेय सन 1972 में बिहार के मुख्यमंत्री थे।
किंतु पांडेय जी भी गफूर मंत्रिमंडल में स्वास्थ्य मंत्री बने थे।
दारोगा बाबू से किसी ने इस पर सवाल किया था।उसके जवाब में उन्होंने कहा कि मान लीजिए कि मुझे जनता के काम के लिए दिल्ली जाना है।
उस दिन दिल्ली के लिए पटना से जहाज उपलब्ध नहीं है।
तो मैं ट्रेन से ही क्यों नहीं दिल्ली चला जाऊंगा ?
हाल में महाराष्ट्र में एक पूर्व मुख्य मंत्री देवेंद्र फडणवीस ने शिंदे मंत्रिमंडल में उप मुख्य मंत्री पद स्वीकार कर लिया,तो इस मामले पर देश में चर्चा शुरू हो गई।
पर,ऐसा तो महाराष्ट्र में भी पहले हो चुका है।
पर,सबसे बड़ा उदाहरण तो चक्रवर्ती राज गोपालाचारी का है।
वह पहले देश के गवर्नर जनरल थे।
बाद में वे मद्रास प्रदेश के मुख्य मंत्री बने थे।
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विधायिकाओं में हंगामा चिंताजनक
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कुछ खास सदस्यगण ही संसद या विधान सभा की कार्यवाही को बाधित करने के लिए आए दिन बाध्य कर देते हैं।
यदि किसी सदस्य के कारण एक साल में दस दिन सदन की कार्यवाही स्थगित हुई हो तो उस सदस्य के कुल कार्यकाल में से एक महीना घटा देना चाहिए।
इसके लिए कोई कानून बने।
एक महीना पहले उन्हें सदन की सदस्यता से रिटायर कर दिया जाए।
इस कानून का लाभ हर दल को किसी न किसी राज्य में होगा।क्योंकि अधिकतर दल कहीं न कहीं सत्ता में हैं।हंगामे तो प्रतिपक्षी दल ही करते हैं।
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और अंत में
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यह खबर गत जून महीने की है।
बिहार विधान सभा की कार्यवाही चल रही थी।
एक दिन कुल 5 घंटे की कार्यवाही में चार घंटे 9 मिनट तक हंगामा होता रहा।
विधान परिषद में भी वही दृश्य था।
सभापति ने कहा कि विपक्ष का रवैया सदन का अपमान माना जाएगा।
हालांकि ऐसे दृश्य संसद से लेकर देश की विधान सभाओं तक में आए दिन देखे जाते हंै।
इसका कोई अंत नजर नहीं आता।
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कानोंकान
प्रभात खबर
पटना
4 जुलाई 22
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