सोमवार, 11 जुलाई 2022

 कानोंकान

सुरेंद्र किशोर

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नेताओं की सिफारिश पर अफसरों की महत्वपूर्ण पदों पर तैनाती जनहित में नहीं

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बिहार के पिछले अनुभव बताते हैं कि नेताओं,विधायकों और मंत्रियों की सिफारिशों के आधार पर जिलों में छोटे-बड़े अफसरों की तैनाती उन राज्य सरकारों व आम लोगों के लिए हितकारी साबित नहीं हुई।

जाहिर है कि जिस नेता की सिफारिश पर कोई अफसर किसी महत्वपूर्ण पद पर तैनात होगा,वह सरकारी काम काज में उस नेता को तरजीह देगा।

 अपवादों को छोड़कर आम तौर पर किसी नेता का हित प्रतिस्पर्धी नेता के हित से टकराता रहता है।

कई बार तो नेता का हित आम जनता के हित से टकराने लगता है।

  वैसी स्थिति लोकतांत्रिक शासन के हक में कत्तई नहीं है।

क्या उससे सत्ताधारी दल को भी राजनीतिक लाभ होगा ?

क्या उससे राज्य सरकार की छवि जनता में बेहतर बनेगी ?

अंचल कार्यालयों और थानों के कार्यकलापों से किसी राज्य सरकार की छवि बनती या बिगड़ती है।

 बिहार में अंचल कार्यालयों और थानों की मौजूदा कार्य पद्धति में भारी से सुधार की जरूरत है।

इसके लिए जरूरी यह है कि सी.ओ. और थानेदारों की तैनाती में पेशेवर दक्ष और यथासंभव ईमानदार अफसरों को ही तरजीह मिले।

  कई बार जन प्रतिनिधियों को उन अफसरों की दक्षता-ईमानदारी का पता नहीं होता जिसकी वे सिफारिश कर रहे होते हैं।

  इसलिए किसी अफसर की दक्षता-ईमानदारी की जांच  निरपेक्ष,ईमानदार और पेशेवर सरकारी अफसरों की टीम से ही 

उनके सर्विस रिकाॅर्ड देखकर

कराई जानी चाहिए।

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        सिफारिश की परंपरा पुरानी

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  पिछले अनुभव बताते हैं कि  अपने मन लायक अफसर की तैनाती का लोभ विधायक से लेकर मंत्री तक संवरण नहीं कर पाते।

  1977 में बिहार सरकार के मुख्य सचिव रहे पी.एस.अप्पू ने अपना संस्मरण लिखा है।

 ईमानदार व कर्तव्यनिष्ठ अफसर रहे दिवंगत अप्पू ने लिखा कि ‘‘सन 1977 की बिहार सरकार के अधिकतर मंत्री अपनी जाति के अफसर को विभागीय सचिव बनाना चाहते थे। उनकी जाति के ईमानदार अफसर नहीं बल्कि सबसे बेईमान अफसर उन्हें चाहिए था।’’

   दूसरी ओर, सन 1977 की बिहार सरकार में दबंग मंत्री रहे एक नेता ने बाद में मुझे अपना अनुभव सुनाया था।

उन्होंने कहा कि ‘‘जब मैं मंत्री था और फाइल पर कोई नोट लिखता था तो बड़े अफसर कहते थे कि सर, आपकी टिप्पणयों में श्रीबाबू (बिहार के प्रथम मुख्य मंत्री) की नोटिंग का स्तर देखने को मिलता है।’’

किंतु जब मैं मंत्री नहीं रहा और उन्हीं अफसरों को फोन करता था तो वे कभी फोन पर नहीं आते थे।’’

   याद रहे कि अस्सी और नब्बे के दशकों में कई मामलों में स्थानीय विधायकों और मंत्रियों की पसंद के डी.एम. और एस.पी.उनके जिलों में जाते थे।

  पर,उसका नतीजा उन सरकारों के लिए अच्छा नहीं हुआ।

  ऐसी पोस्ंिटग व पक्षपातपूर्ण शासन के कारण भी जनरोष बढ़ा और वे सत्ताधारी पार्टियां चुनाव हारती चली गईं। 

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रक्षा निर्यात में वृद्धि

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वित्तीय वर्ष 2021-22 में भारत ने करीब 13 हजार करोड़ रुपए के गोल-बारुद विदेशों को निर्यात किए।

सन 2014 की अपेक्षा छह गुनी रक्षा -सामग्री का निर्यात 

हुआ है। 

इसमें करीब 70 प्रतिशत योगदान निजी क्षेत्रों का है।बाकी सार्वजनिक क्षेत्र का।

जानकार सूत्रों के अनुसार सन 2025 तक 36 हजार 500 करोड़ रुपए की रक्षा सामग्री के निर्यात का लक्ष्य रखा गया है।

हथियारों के उत्पादन व निर्यात के मामलों में मजबूत होते जाने से अंतरराष्ट्रीय जगत में भारत का महत्व इधर बढ़ा है।

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  आरक्षण के वर्गीकरण में देरी

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रोहिणी आयोग का कार्यकाल एक बार फिर बढ़ा दिया गया है।

उसका गठन 2017 में नरेंद्र मोदी सरकार ने किया  था।

इस बीच रोहिणी आयोग ने भी पाया कि कुल 2633 पिछड़ी जातियों में से करीब 1000 जातियों को तो आज तक आरक्षण का कोई लाभ मिला ही नहीं।

इसलिए 27 प्रतिशत आरक्षण को चार हिस्सों में बांट दिया जाना चाहिए।

  याद रहे कि मंडल आरक्षण का अधिक लाभ उन पिछड़ी जातियों के उम्मीदवारों का मिल जाता है जो अपेक्षाकृत अधिक समृद्ध हैं।

  इस सिफारिश के बाद रोहिणी आयोग के जिम्मे अब कौन सा काम बाकी है,यह पता नहीं चल सका है।

केंद्र सरकार ने चार हिस्सों में बांटने वाली सिफारिश पर अब तक कोई निर्णय नहीं किया है।

  2017 के आंकड़े के अनुसार केंद्र सरकार की नौकरियों में पिछड़ी जातियों का औसतन कुल 20.26 प्रतिशत प्रतिनिधित्व है।

जबकि 27 प्रतिशत सीटें आरक्षित हैं।

जानकार बताते हैं कि उप वर्गीकरण के बाद शायद सीटें भरने लगेंगी।

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भूली-बिसरी याद

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कई बार कुछ लोग यह पूछ देते हैं कि सन 1950 में केंद्र

सरकार के कौन -कौन मंत्री थे ?

पुरानी पीढ़ियों के कुछ लोग तो बता भी देते थे।

पर,आज की पीढ़ी ?

उनसे यह जानने की क्यों उम्मीद की जाए ?

किंतु सामान्य ज्ञान बढ़ाने के लिए यहां उनके नाम दिए जा रहे हैं।

वे थे-जवाहरलाल नेहरू(प्रधान मंत्री),सरदार वल्लभ भाई पटेल(उप प्रधान मंत्री),बी.आर.आम्बेडकर,रफी अहमद किदवई,सरदार बलदेव सिंह,अबुल कलाम आजाद,जाॅन मथाई,जगजीवन राम,राजकुमारी अमृत कौर,श्यामा प्रसाद मुखर्जी,खुर्शीद लाल,आर. आर. दिवाकर,मोहनलाल सक्सेना,एन.गोपाल स्वामी अयंगार,एन.वी.गाडगिल,के.सी.नियोगी,जयरामदास दौलतराम,के.संथानम,सत्यनारायण सिन्हा,

और बी.वी.केसकर(सभी मंत्री)।

याद रहे कि उससे पहले की अंतरिम केंद्र सरकार में डा.राजेंद्र प्रसाद और सी.राजगोपालाचारी भी कैबिनेट मंत्री रह चुके थे।

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और अंत में

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धरती के पास जितने साधन उपलब्ध हैं,उनसे वह करीब दो अरब लोगों की ही जरुरतों को पूरा कर सकती है।

किंतु दुनिया की आबादी बढ़कर करीब साढ़े सात अरब हो चुकी है। बढ़ती ही जा रही है।

अब कल्पना कर लीजिए कि हम अंततः 

अपने वंशजों के लिए क्या और कितना छोड़कर जाएंगे ?

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कानोंकान

प्रभात खबर

पटना

11 जुलाई 22


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