ख्चाहिशों का मोहल्ला बहुत बड़ा होता है।
बेहतर है, हम जरूरतों की गली में मुड़ जाएं
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समय से पहले और तकदीर से ज्यादा कभी
किसी को कुछ नहीं मिलता
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पिछले कुछ दशकों में मैंने अनेक पदाकांक्षी राजनीतिक कर्मियों को पदतृष्णा की पूर्ति के अभाव में कलटते-कलपते और पद-दाताओं को गरियाते देखा-सुना है।
उनमें से कई गुजर गए।
कई अन्य अब भी मृगतृष्णा के पीछे हैं।
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दरअसल आप कितने महत्वपूर्ण हैं,यह तो आप जानते हैं।
किंतु अधिक महत्वपूर्ण बात यह है कि ‘‘पद-दाताओं’ की नजर में कुल मिलाकर आपकी कितनी उपयोगिता है।
उसके ‘स्केल’ पर आप का स्थान कितना ऊंचा या नीचा है।
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कुछ न पाने का अफसोस क्यों ?
राजनीति के अलावा भी बहुत से क्षेत्र हंै जहां जाकर आप अपनी प्रतिभा दिखा सकते हैं,जन सेवा कर सकते हैं।
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मेरी बातें उन पर लागू नहीं होतीं जो अपने अपार पैसों के
बल पर जीवन में कुछ भी हासिल कर लते हैं।
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सुरेंद्र किशोर
21 जुलाई 22
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