किसी भाषा से दुराव क्यों ?
.................................
शेखर गुप्त और ए.जे.फिलिप की यादें
..................................
सुरेंद्र किशोर
.....................
दैनिक ‘जनसत्ता’ की बैठक के लिए मैं दिल्ली गया हुआ था।
हमारे संपादक अच्युतानंद मिश्र ने कहा कि आपसे शेखर गुप्त मिलना चाहते हैं।
आप जाकर मिल लीजिए।
शेखर जी तब इंडियन एक्सपे्रस के संपादक थे।
मैं उनसे मिला।
उन्होंने अन्य बातों के अलावा मुझसे यह भी कहा कि मैं अन्य किसी अंग्रेजी पत्रकार की अपेक्षा इस देश को बेहतर जानता हूं क्योंकि मैं हिन्दी अखबार भी पढ़ता हूं।
उन्होंने कहा कि आप हमारे एक्सप्रेस के लिए भी लिखिए।
मैंने कहा कि मैं अंग्रेजी जानता जरूर हूं किंतु मुझे लिखने का अभ्यास नहीं है।
उन्होंने कहा कि मैं अनुवाद करवा लंूगा।
आप हिन्दी में ही लिखें।
मैंने पहले तो हिन्दी में ही लिखा।
पर,बाद में अंग्रेजी में लिखकर भेजने लगा।
एक्सप्रेस में मेरी कई रपटें छपी थीं।
...............................
एक अन्य सम्मानित अंग्रेजी पत्रकार की हिन्दी के बारे में राय आपको उनकी इस चिट्ठी से मिल जाएगी जिसकी स्कैन काॅपी इस पोस्ट के साथ दी जा रही है।
वे हैं द हिन्दुस्तान टाइम्स(पटना) के पूर्व सहायक
संपादक ए.जे.फिलिप।
बाद में तो वे बड़े -बडे़ अखबारों में बड़े पदों पर भी रहे।
पटना के ‘हिन्दुस्तान टाइम्स’ में वे एक बहुत रोचक व पठनीय साप्ताहिक काॅलम लिखते थे।
मैं उस काॅलम को जरूर पढ़ता था।
उन दिनों मैं दैनिक ‘आज’ के पटना संस्करण में मुख्य संवाददाता के रूप में काम कर रहा था।
1980 की बात है।
मैंने फिलिप साहब को यह सलाह दी कि आप अपने काॅलम में रेणु जी पर कभी लिखिए।
उन्होंने न सिर्फ लिखा,बल्कि मुझे हिन्दी में इस संबंध में पत्र भी लिखा।
..................................
फिलिप साहब के भी व्यवहार में न तो अंग्रेजी भाषा में पत्रकारिता करने का कोई अतिरिक्त गुमान था और न ही यह बात थी कि किसी
‘‘वर्नेक्युलर जनर्लिस्ट’’ की सलाह को सम्मान देने की भला क्या जरूरत है !
फिलिप साहब का वह पत्र मुग्ध कर देने वाला था।
इसीलिए तो पिछले 42 साल से मेरे पास हैै।
.................................
3 जुलाई 22
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें