अभियान चले अति-भोजन के खिलाफ
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सुरेंद्र किशोर
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मैंने अनेक लोगों को अति भोजन और अनुचित भोजन करके असमय
बीमार होकर मरते देखा है।
इससे न सिर्फ सार्वजनिक स्वास्थ्य-व्यवस्था पर बोझ बढ़ता है बल्कि
जो परिवार असमय अपना प्रिय खो देता है,उसकी स्थिति भी खराब हो जाती है।
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हमारे ऋषि -मुनियों ने इस संबंध में सूत्र दे रखा है-
गांव में हमारे बड़े-बुजुर्ग इसे यदाकदा दुहराते थे।
पर,एकल परिवार के इस युग में बुजुर्ग तो पुराने रेडियो सेट की तरह एक कोने में रख दिए गए हैं।
नयी पीढ़ी खुद को बहुत ‘समझदार’ समझती है।उसे किसी की सलाह की कोई जरुरत नहीं।
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ऐसे में सरकारें ही यह काम करें।
सरकार ने स्वच्छता अभियान चलाया।
लोगों से यह भी अपील की कि वे खुले में शौच न जाएं।आदि आदि।
उसी तरह अति भोजन के खिलाफ वे अभियान चलाएं।
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हित् भुक्
मित भुक्
ऋत भूक्
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यानी, जो व्यक्ति शरीर के लिए हितकारी भोजन ले,
भूख से कम खाए और
मौसम के अनुसार ही भोजन करे ,
वह व्यक्ति ही नीरोग रह सकता है।
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इस देश के कई लोकप्रिय नेताओं ने मांस-मदिरा आदि(आदि को लेकर आप अपने अनुमान के घोड़े दौड़ा सकते हैं।) के चक्कर में खुद के स्वास्थ्य को बर्बाद कर लिया।
यह भी नहीं सोचा कि उसके न रहने पर उसके प्रशंसकों-समर्थकों की क्या हालत होगी।
20 अगस्त 23
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पुनश्चः,
मैंने कई मीडिया कर्मियों से कहा कि आप नब्बे साल से अधिक उम्र के लोगों का इंटरव्यू करिए।
उनसे पूछिए कि वे किस तरह का संयम रखते हैं।
यदि उनके भोजन आदि का प्रचार हो तो वह जनहित में होगा। क्योंकि उससे जो प्रेरणा लेना चाहेगा,वह लेकर खुद भी स्वस्थ और दीर्घायु रह सकेगा।
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पर,आज के युग में कौन किसकी सलाह मानता-सुनता है !!!
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