रविवार, 27 अगस्त 2023

 बांग्ला देश युद्ध और चंद्रायण-3 अभियान 

के दौरान इंदिरा और मोदी का फर्क

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सुरेंद्र किशोर

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बांग्ला देश युद्ध के बाद तत्कालीन प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी ने क्या किया ?

चंद्रायण -3 के सफल अभियान के बाद प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने क्या किया ?

इन दोनों घटनाओं में फर्क आपको इंदिरा और मोदी का अंतर बता देंगे।

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नरेंद्र मोदी बेंगलुरू पहुंच कर इसरो के वैज्ञानिकों से कहा कि ‘‘मैं जल्द से जल्द आपके दर्शन कर आपको नमन करना चाहता था।’’

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दूसरी ओर, बांग्ला देश विजय के बाद तीन दिग्गजों में श्रेय लेने की होड़ मच गयी थी।

प्रधान मंत्री और रक्षा मंत्री उस विजय के लिए सेना प्रमुख मानेक शाॅ को तनिक भी श्रेय देने को तैयार नहीं हुए।

इंदिरा गांधी को उनकी पार्टी ने ‘दुर्गा’ की उपाधि दे दी।साथ ही, इंदिरा सरकार ने इंदिरा गांधी को भारत रत्न दे दिया।

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जनरल मानेक शाॅ को कुछ नहीं मिला तो वे नाराज हुए।बाद में उन्हें फिल्ड मार्शल बनाकर संतुष्ट करना पड़ा।

हां,रक्षा मंत्री जगजीवन राम तो असंतुष्ट ही रहे।

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पूरी कहानी

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 बांग्ला देश को लेकर भारत-पाक युद्ध में भारत की विजय का श्रेय देने के सवाल पर तब के तीन महा रथियों के बीच अच्छी -खासी खींचतान चली थी।

आंध्र प्रदेश से एक कांग्रेसी सासंद ने प्रधान मंत्री को ‘दुर्गा’ कहा था। अधिकतर सत्ताधारी नेता गण तो पूरा श्रेय तत्कालीन प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी को ही दे रहे थे।

 पर रक्षा मंत्री जगजीवन राम और सेना प्रमुख मानेक शाॅ इसे मानने को तैयार नहीं थे।

युद्ध में विजय के बाद जब इंदिरा गांधी को ‘भारत रत्न’ से अलंकृत  किया गया तो सेना में प्रतिक्रिया हुई।

उसे शांत करने के लिए सेना प्रमुख सैम मानिक शाॅ को ‘फील्ड मार्शल’ का ओहदा दिया गया।

  बंाग्ला देश युद्ध के बाद एक खेमे की ओर से यह सवाल भी उठाया गया  कि सन 1962 में  चीन से शर्मनाक पराजय के लिए इस देश के रक्षा मंत्री वी.के.कृष्ण मेनन जिम्मेदार थे,प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू नहीं, तो

 पाकिस्तान पर जीत के लिए प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी को श्रेय क्यों दिया जाना चाहिए ?

 उधर रक्षा मंत्री जगजीवन राम कुछ कारणवश मानिक शाॅ से नाराज रहा करते थे। 

 अब इस संबंध में तत्कालीन रक्षा मंत्री जग जीवन राम ने 1977 में कहा था कि 

 ‘‘1971 के युद्ध में भारत की विजय का बड़ा कारण यह था कि सेना के तीनों अंगों का सही और परस्पर पूरक सह कार्य और रक्षा सामग्री के उत्पादन से लेकर हर मोर्चे पर मेरा स्वयं जाकर सेना का हौसला बढ़ाना।

इसके अतिरिक्त निदेशन में सामंजस्य होना भी एक महत्व की बात थी।’’

इसके विपरीत बांग्ला देश युद्ध के समय भारतीय सेनाध्यक्ष   मानिक  शाॅ ने सन 1974 में लंदन में साफ- साफ कह दिया था कि ‘‘अगर मैं उस युद्ध में पाकिस्तान का सेनाध्यक्ष होता तो विजय पाकिस्तान की ही होती।’’

  मानिक  शाॅ की इस गर्वोक्ति पर  जगजीवन राम की टिप्पणी महत्वपूर्ण थी।

उन्होंने कहा कि ‘‘मैं शाॅ को नकली फील्ड मार्शल मानता हूं।वह इस योग्य नहीं थे।’’

जगजीवन राम को युद्ध के लिए अपनी तैयारी पर पूरा विश्वास था।उन्होंने कहा कि ‘‘उस युद्ध को तो जीता ही जाना था भले ही जनरल कोई और होता। क्योंकि हमने तैयारी ही इतनी अधिक कर ली थी।’’

  उनकी यह भी राय थी कि यदि किन्हीं प्रकार के दबाव में आकर किसी को फील्ड मार्शल बना दिया जाए ,तोभी वह नकली फील्ड मार्शल ही होगा।

मानेक शाॅ पैरवी और खुशामद से फील्ड मार्शल बने थे।

जगजीवन बाबू की स्पष्ट राय थी कि उस समय जो भी सेनाध्यक्ष होता, वही युद्ध जीतता भले ही वह इस योग्य नहीं होता।

   उन्होंने यह भी कहा कि प्रजातांत्रिक प्रणाली में जिस ढंग से निर्णय किये जाते हैं,उसके अंतर्गत विजय का श्रेय किसी व्यक्ति विशेष को नहीं दिया जा सकता।

   लगता है कि जगजीवन बाबू इस बात से सहमत नहीं थे कि बंाग्ला देश युद्ध में विजय का सारा श्रेय इंदिरा गांधी को दिया जाए।

  मानेक शाॅ के बारे में बात होने पर जगजीवन राम तीखे हो जाते थे।

 उन्होंने  कहा था कि वे तीनों सेना प्रमुखों में से खुद को सर्वोच्च दिखाने की कोशिश करते 

थे,लेकिन हो नहीं सके।

  नीति निर्धारण समिति की बैठकों मंे कई बार मानेक शाॅ अन्य दोनों सेनाध्यक्षों की बातों का विरोध करते थे ।

 उनके बीच खुद को सर्वोच्च दिखाने की कोशिश करते थे।पर,हम इस मान्यता के नहीं रहे कि तीनों सेनाओं का एक अध्यक्ष हो।

  यह पूछे जाने पर कि क्या कभी आपसे उनका नीतिगत मतभेद रहा ,उन्होंने कहा कि ऐसा साहस वह नहीं कर सकते थे।

वैसे उनकी ख्वाहिश मनमानी करने की भी रहती थी,पर वे कर नहीं सकते थे। 

मानेक शाॅ की राय भी कुछ नेताओं के बारे में बहुत खराब थी।

मानेक शाॅ ने एक बार कहा था कि ‘‘मुझे शक है कि उस नेता को मोर्टार और मोटर के बीच के फर्क का पता तक नहीं होगा जिसे देश का रक्षा मंत्री बना दिया जाता है।’’

  मानिक शाॅ बांग्ला देश युद्ध में विजय का श्रेय भी  प्रधान मंत्री या रक्षा मंत्री देने के बदले खुद ही लेना चाहते थे। 

 मानिक शाॅ ने बाद मेें कहा कि भारतीय फौज की जीत का खांका मैंने खींचा था।

याद रहे कि मानिक शाॅ पांच युद्धों में हिस्सा ले चुके थे।मानिक शाॅ ने बंगला देश संकट के शुरूआती दौर में आयोजित उच्चस्तरीय बैठक में  प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी से साफ -साफ कह दिया था कि हमारी सेना अभी युद्ध के लिए तैयार नहीं है।प्रधान मंत्री को यह बुरा लगा था।

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27 अगस्त 23

    


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