कितने दूरदर्शी थे आजादी के तत्काल
बाद वाले हमारे हुक्मरान ?
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सुरेंद्र किशोर
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पीपल
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पर्यावरण विशेषज्ञ बताते हैं कि जहां हर पांच सौ मीटर की दूरी पर पीपल का एक वृक्ष हो, आॅक्सीजन की वहां कोई कमी नहीं रहेगी।
स्कंद पुराण में एक श्लोक है जिसका अर्थ है--
‘‘एक पीपल, एक नीम, एक वट वृक्ष ,दस इमली, तीन खैर, तीन बेल, तीन आंवला और पांच आम का वृक्ष लगाने वालों को नरक का मुंह नहीं देखना पड़ता है।’’
ध्यान दीजिए, यहां भी पहला नाम पीपल का ही है।
यदि आजादी के तत्काल बाद से ही केंद्र व राज्य सरकारें पीपल का पौधरोपण करवातीं तो हमारे यहां पर्यावरण असंतुलन की समस्या ही नहीं रहती।
कुछ ही साल पहले बिहार सरकार ने अपने साधनों से पीपल के पौधे लगवाने शुरू किए हैं।
यहां भी सरकारी स्तर से पहले यह काम नहीं होता था।
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इसी गुण के कारण परंपरागत विवेक वाले इस देश के लोग पीपल की पूजा करते रहे।
आजादी के तत्काल बाद वाली सरकारों ने संभवतः यह सोचा होगा कि सरकारी खर्चे पर जगह -जगह पीपल वृक्ष यानी पूजा स्थल बनाना धर्म निरपेक्षता के खिलाफ काम होगा।
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गंगा नदी
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गंगा नदी में ऐसे औषधीय और बैक्टेरिया रोधी गुण हैं जो दुनिया की किसी अन्य नदी के जल में नहीं है।
इसीलिए लोग गंगा को मां कहते हैं।
सन 1955-56 में मैं गांव से अपने परिजन के साथ दिघवारा के पास गंगा स्नान करने जाता था।
नदी में घुटना भर पानी में भी मेरे पैर की अंगुलियां साफ-साफ नजर आती थी।
यानी,तब तक पानी इतना स्वच्छ और निर्मल था।
विदेशी शासकों ने भी गंगा को प्रदूषित नहीं किया था।
कहीं मैंने पढ़ा था कि बादशाह अकबर गंगा नदी का पानी ही मंगवाकर रोज पीता था।
पर,आजादी के बाद की सरकार ने तरह -तरह के ‘उपायों’ से गंगा नदी को इतना प्रदूषित कर दिया है कि अब तो कई जगह उसे छूने से भी रोग पनपने का खतरा है।
गंगा को स्वच्छ करने वाले अब तक के सारे सरकारी उपाय भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ चुके हैं।
यदि आजादी के तत्काल बाद की सरकार गंगा की स्वच्छता-निर्मलता-अविरलता बनाए रखने की कोशिश करती तो उसकी धर्म निरपेक्षा छवि को शायद नुकसान पहुंचता।
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गाय
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देसी गाय के दूध में औषधीय गुण है जो हाइब्रिड गायों में नहीं है।
गाय की इसीलिए पूजा होती है।
बचपन में मैंने देखा है कि जब मेरे घर की गाय मरती थी तो
मेरी मां उसी तरह रोती थी तानो परिवार का कोई सदस्य मर गया हो।
पर,ऐसी स्थिति पैदा कर दी गयी कि देसी गाय की संख्या कम होने लगी।
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जैविक खाद
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मैं बचपन में गोबर खाद से उपजाए गए गेहूं के छोटे -छोटे दानों से बनी रोटी खाता था।
उस रोटी में जो मिठास थी,वह बाद की ‘हरित क्रांति’ वाले गेहूं में तो कत्तई नहीं।
उधर रासायनिक खाद और कीटनाशक दवाओं से मिट्टी भी खराब हो रही है।
साथ ही, उसके जरिए उपजे अनाज और आलू वगैरह में आर्सेनिक पाया जाने लगा है।
पंजाब में रासायनिक खाद और कीटनाशक दवाओं का सर्वाधिक इस्तेमाल होता है।
वहां की मिट्टी खराब हो रही है।भूजल आर्सेनिक युक्त हो रहा है।
काफी पहले मैंने इंडियन एक्सप्रेस में पढ़ा था कि रासायनिक खाद-दवां के दुष्प्रभाव से अनेक लोग गांव छोड़ रहे है।अखबार के संवाददाता ने पंजाब के कुछ गांवों का भ्रमण कर रिर्पोटिंग की थी।
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भटिंडा-बिकानेर ट्रेन को बोलचाल में ‘कैंसर मेल’ कहा जाने लगा है।उस ट्रेन में 40 प्रतिशत कैंसर मरीज होते हैं।
बिकानेर में आचार्य तुलसी के नाम पर एक कैसर अस्पताल है जिसमें मुफ्त चिकित्सा होती है।
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पूरे देश में अब जैविक खेती की होड़ शुरू हुई है।
पर,मांग के अनुपात में आपूर्ति बहुत कम है।
साथ ही, जैविक उत्पाद काफी महंगा है।
सरकारों को चाहिए कि वे उस पर सब्सिडी दें।
जिसने दर्द दिया,वही तो दवा देगा !!
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23 अगस्त 23
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