हर रंग की साम्प्रदायिकता का विरोध जरुरी
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जेहादी पी.एफ..आई. पर चुप्पी और हिन्दू अतिवाद के
खिलाफ हंगामा करके कोई दल मोदी को कमजोर नहीं कर सकता
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गोधरा टे्रन कार सेवक दहन कांड पर चुप्पी और प्रतिक्रिया में हुए दंगे पर हंगामा करने से ही मोदी राजनीति के महाबली बने थे
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सुरेंद्र किशोर
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नरेंद्र मोदी विरोधी राजनीतिक दल आज भी अपनी वही गलतियां लगातार दुहरा रहे हैं जिन गलतियों के कारण नरेंद्र मोदी आज सत्ता में हैं।ताजा सर्वेक्षण बता रहे हंै कि आगे भी वही रहेंगे।
जो दल वास्तव में मोदी को कमजोर करना चाहते हैं वे दोनों संप्रदायों के बीच के अतिवादी तत्वों का समान रूप से विरोध करंे।
प्रतिबंधित जेहादी संगठन पाॅपुलर
फं्रट आॅफ इंडिया के बारे में आज के दैनिक जागरण में एक सनसनीखेज खबर छपी है।
उस खबर का शीर्षक है--
‘‘युवाओं को बरगला सेना बना रहा था पी एफ आई,
एन.आई की जांच से खुलासा,देश विरोधी षड्यंत्र के लिए सीमा पार की साजिश,
विदेशों से आ रहा था धन’’
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ध्यान रहे कि पाॅपुलर फं्रट आॅफ ने यह लक्ष्य तय किया है कि वह
हथियारों के बल पर सन 2047 तक भारत को इस्लामिक देश बना देगा।इस काम के लिए वह हथ्यिार बांट भी रहा है।
प्रतिबंध के बावजूद उसकी भूमिगत गतिविधियां जारी हैं।
अनेक शांतिपिय लोग डरे हुए हैं।
गृह युद्ध की आशंका है।
कई लोग पूछते हैं कि गृह युद्ध की स्थिति में जेहादियों की सशस्त्र सेना से हमें कौन बचाएगा ?
इस बीच एक अच्छा संकेत है।
पी.एफ.आई.मुसलमान आबादी के बीच से कम से कम 10 प्रतिशत समर्थन मंाग रहा है।
पर, उतना भी उसे अभी नहीं मिल रहा।
पर,हथियारबंद थोड़े भी क्या कर सकते हैं,यह इतिहास बताता है।
ओवैसी को छोड़कर कोई दूसरा मुस्लिम संगठन पी.एफ.आई. के खिलाफ खुलकर नहीं बोल रहा है।
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दैनिक जागरण की इस सनसनीखेज खबर पर किसी राजनीतिक दल ने पी.एफ.आई.की सार्वजनिक रूप से आलोचना अब तक नहीं की है।
पी.एफ.आई.पर भाजपा का रुख तो लोगों को मालूम है किंतु अन्य दलों का रुख क्या है ?
इस सवाल का समय रहते जवाब सभी दलों की ओर से मिल जाए तो अगले लोक सभा चुनाव के लिए मन बनाने में लोगों को और भी सुविधा हो जाएगी।
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हाल में कर्नाटका में विधान सभा का चुनाव हुआ।
पी.एफ.आई.के राजनीतिक संगठन एस.डी.पी.आई. ने पहले ही सार्वजनिक रूप से यह घोषणा कर दी थी कि उसका कांग्रेस से तालमेल है।(गूगल पर देख लीजिएगा।)
सन 2018 के विधान सभा चुनाव में भी दोनों दलों का आपसी तालमेल था।
पी.एफ.आई. की महिला शाखा के सम्मेलन में शामिल होने के लिए पूर्व उप राष्ट्रपति हामिद अंसारी 2017 में केरल गये थे।
पी.एफ.आई.जिन अतिवादी संगठनों को मिलाकर बना है ,उसमें सिमी भी शामिल है।
सिमी पर जब प्रतिबंध लगा तो कई तथाकथित सेक्युलर दलों ने प्रतिबंध का विरोध किया था।
उ.प्र.कांग्रेस अध्यक्ष सलमान खुर्शीद तो सुप्रीम कोर्ट में सिमी के वकील थे।
इस तरह के एकतरफा व्यवहार के अनेक उदाहरण हैं।
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जेहादी संगठनों के साथ देश के अधिकतर तथाकथित सेक्युलर दलों की प्रत्यक्ष-परोक्ष एकजुटता से नरेंद्र मोदी की राजनीतिक ताकत बढ़ी है।
मोदी की दूसरी ताकत है कई दलों में फैले परिवारवाद और भीषण भ्रष्टाचार।
2014 में कांग्रेस की हार पर ए.के एंटोनी ने सोनिया गांधी को यह रिपोर्ट दी थी कि हम इसलिए हारे क्योंकि मतदाताओं को लगा कि हम अल्पसंख्यकों यानी मुसलमानों की तरफ कुछ अधिक ही झुके हुए हैं।
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सेक्युलर दलों के लिए अब भी समय है।
वे राजनीतिक दल दोनों संप्रदायों के बीच के अतिवादियों का समान रूप से विरोध करंे।
यदि अब भी जेहादियों के पक्ष में कांग्रेस तथा अन्य दल खड़े दिखेंगे तो वे अपनी ही गलती से एक बार फिर नरेंद्र मोदी को तीसरी बार भी प्रधान मंत्री बनने का रास्ता साफ कर देंगे।
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7 अगस्त 23
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