देश कहां जा रहा है ?!!
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गठबंधन ‘इंडिया’’ के बैठक स्थल पर 1610 रु.में
एक प्लेट नाश्ता,485 रुपए में एक कप चाय और
550 रु.में एक कप काॅफी मिलती है
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कुछ अन्य राजनीतिक दलों का भी यही हाल है।
आम लोगों से कितना कट चुके हैं हमारे नेतागण ?
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सुरेंद्र किशोर
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‘‘इंडिया’’से जुड़े नेता गण आज मुम्बई के ग्रैंड हयात सितारा होटल में बैठक कर रहे हैं।
गरीब देश के इन नेताओं में से अधिकतर अमीर नेता चार्टर्ड विमान से यात्रा किया करते हैं।
अब उस होटल के खर्चे की एक झलक देखिए।
गुगल में जाकर उसका मेनू खोजिए।
पता चलेगा कि वहां एक कप चाय की कीमत 485 रुपए है।
काॅफी की कीमत 550 रुपए और नाश्ता 1610 रुपए में मिलेगा।
होटल के अन्य खर्चों का अनुमान लगा लीजिए।
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अब इधर इस देश की हालत पर जरा गौर कीजिए।
आज के ही अंग्रेजी दैनिक ‘द हिन्दू’ में छपा है कि(यू.एन.रिपोर्ट के अनुसार) भारत के 74 प्रतिशत लोगांे को स्वस्थकर भोजन नसीब नहीं है।
अस्सी करोड़ लोगों को तो केंद्र सरकार लगभग मुफ्त अनाज दे रही है ताकि वे अपने पेट की, अपनी पीठ से दूरी बनाए रखें।
जो नेतागण मुम्बई में आज बैठक कर रहे हैं ,वे उन्हीं 74 प्रतिशत लोगों के असली प्रतिनिधि होने का दावा करते हैं।महंगी और गरीबी का रोना रोते हैं।
पिछले कुछ दशकों में देखते -देखते इस देश में नेताओं और आम लोगों के बीच का अंतर कितना अधिक बढ़ गया !!!
मैं तो सन 1966-67 से ही, पहले राजनीतिक कार्यकर्ता के रूप में और बाद में पत्रकार के रूप में सब कुछ देखता-समझता रहा हूं।
हाल के वर्षों में राजनीतिक खर्चों में हुई अपार बढ़ोत्तरी करने में सिर्फ उन्हीं नेताओं का हाथ नहीं है जो आज बैठक कर रहे हैं ।
बल्कि उनका भी थोड़ा-बहुत हाथ है जो आज केंद्र में सरकार चला रहे हैं।थोड़ा-बहुत इसलिए लिखा क्योंकि उन पर अब तक अरबों-करोड़ों रुपए के घोटाले का आरोप नहीं लगे हंै।
उम्मीद की गयी थी कि महाबली प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी राजनीतिक गतिविधियों पर हो रहे अपार खर्चे को अपने प्रभाव से घटाएंगे।पर, निराशा हुई।
वे तो सांसद फंड भी बंद नहीं कर सके जो देश के शासकीय भ्रष्टाचार का रावणी अमृत कुंड है।
याद रहे कि जनसंघ अध्यक्ष दीनदयाल उपाध्याय की जब हत्या हुई, तब वे टे्रन मंे अकेले ही यात्रा कर रहे थे।
संभवतः पार्टी पर अपने एक सहयात्री के भी खर्चे का बोझ नहीं डालना चाहते थे उपाध्याय जी।
यदि उनके साथ उस दिन कोई एक व्यक्ति भी रहा होता तो शायद उपाध्याय जी की हत्या नहीं होती।
पर,उस उपाध्याय के मूल्यों को भी अधिकतर भाजपाई भूल गए।
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ये अपार पैसे राजनीति करने वालों के पास आज आते कहां से हैं ?
समान्यतः उन्हीें लोगों के यहां से आते हैं जो लोग इस देश को दोनों हाथों से लूट रहे हैं और जो इस देश को गरीब बनाए रखने के लिए जिम्मेदार हैं।
अपवादों की बात और है।
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डा.राम मनोहर लोहिया के सादा जीवन और उच्च विचार से प्रभावित होकर छात्र जीवन में ही मैं उनकी पार्टी से जुड़ा था।
डा.लोहिया ने न तो घर बसाया,न मकान बनाया और न ही निजी कार खरीदी।इसके बावजूद देश, राजनीति व समाज पर अपना प्रभाव छोड़ने में उनका अर्थाभाव बाधक नहीं बना।
याद रहे कि आज कई लोग अपनी कमी छिपाने के लिए कहा करते हैं कि पैसे के बिना राजनीति आज नहीं होगी।
अधिक दिन नहीं हुए जब माले के महेंद्र प्रसाद सिंह और माकपा के वासुदेव सिंह जैसे नेता अपार पैसे के बिना भी चुनाव जीतते थे।वैसे आज भी देश में कई लोग होंगे।
याद रहे कि पचास के दशक में पार्टी के महा सचिव के रूप में लोहिया ने अपने दल के विधायकों को लिखा था कि आप अपना जीवन स्तर नहीं बढ़ाएं ताकि जनता का आपसे लगाव बना रहे।आज तो अनेक नेतागण बड़ी -बड़ी ए.सी.गाड़ियों के काफिले के साथ जनता के पास जाते हैं तो आम लोगों में से कुछ को उबकाई आने लगती है।
जो नेता लोग यह कहते हैं तामझाम के साथ जनता के बीच जाने पर ही नेता का प्रभाव बढ़ता है, वे धोखा देते हैं।हां,तामझाम का प्रभाव स्थानीय दलालों व लगुए-भगुए पर जरूर पड़़ता है।
1967 में जब बिहार में संसोपा यानी लोहिया की पार्टी सत्ता में थी तब एक बार लोहिया दिल्ली से ट्रेन से दिल्ली से भागलपुर आए ।
भागलपुर से स्टेट ट्रांसपोर्ट की बस से दुमका गये।
चाहते तो वे अपने किसी मंत्री से कार का प्रबंध करवा कर उससे दुमका जाते।
दिल्ली में भी डा.लोहिया यदाकदा पैदल ही चलते थे जैसा कि मुझे वरिष्ठत्तम पत्रकार मन मोहन शर्मा ने बताया था।
जब तक लोहिया जी जीवित थे,तब तक मैं भी पार्टी में पूरे मन से रहा।कर्पूरी जी के रहते आधे मन से रहा।पर,अंततः मन उचट गया तो राजनीति का अलविदा करके पत्रकारिता में आ गया।
लोहिया-कर्पूरी का नाम जपने वाले नेता लोग आज क्या कर रहे हैं ?
कर्पूरी जी को तो आम चुनाव में प्रचार के लिए भी कभी एक हेलीकाॅप्टर तक उपलब्ध नहीं हो सका,चार्टर्ड विमान की बात कौन कहे।इसके बावजूद वे दो बार मुख्य मंत्री और एक बार उप मुख्य मंत्री बने।
मुझे तो आज के अधिकतर नेताओं के कारण अगली पीढ़ियों के भविष्य पर भी प्रश्न-चिन्ह लगा प्रतीत होता है।
क्योंकि वे वोट के लिए यानी तात्कालिक उपलब्धि के लिए देश की अनेक मूल व गंभीर समस्याओं की या तो उपेक्षा कर रहे हैं या उन समस्याओं को और अधिक गंभीर बनाने में मददगार बन रहे हैं।
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31 अगस्त 23
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पुनश्चः-इस देश के नेतागण अपना राजनीतिक व व्यक्तिगत खर्च जरूर बढ़ाएं ,पर वह देश के आम लोगों की बढ़ती आय के अनुपात में ही हो।
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