गुरुवार, 28 दिसंबर 2023

 भूली-बिसरी यादें

-----------

बिहार की चुनावी राजनीति मंे 

‘‘जोड़न’’ का महत्व

---------------

जोड़न से ही तो दही जमता है

----------------

सुरेंद्र किशोर

-------------

जो इतिहास से नहीं सीखता,वह 

इतिहास दुहराने को अभिशप्त होता है।

‘भारत उदय’ के फील गुड में प्रधान मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने

2004 में लोजपा और द्रमुक को अपने पास से भगा दिया था।

नतीजतन, केंद्र की सत्ता एक ऐसी सरकार के हाथों मेें चली गयी जिसने 

दस साल तक घोटालों -महा घोटालों की झरी लगा दी।

जेहादी-आतंकियों का भी मनोबल सातवें आसमान पर था।

(सीमावर्ती राज्य होने के कारण बिहार के बारे में भी कोई राजनीतिक या चुनावी फैसला फिलहाल आज की विशेष स्थिति में सोच-समझकर लेने की जरूरत है।) 

----------------

तमिलनाडु

------

सन 1999 लोस चनाव

-----------

भाजपा और द्रमुक मिलकर चुनाव लड़े

राजग को कुल 39 में से 26 सीटें मिलीं।

-------------

2004 लोस चुनाव

----------

भाजपा और अद्रमुक मिलकर लड़े।

राजग को कोई सीट नहीं मिली।

------------

भाजपा ने द्रमुक को क्यों छोड़ा ?

इसलिए कि जे.जयलालिता के नेतृत्व वाली 

अद्रमुक की राज्य सरकार ने सन 2002 में धर्मांतरण विरोधी कानून पास करा दिया।

(हालांकि बाद में उसे वापस भी कर लेना पड़ा था)

अतः भाजपा उस पर मोहित हो गयी।उसे साथी बना लिया।

--------------

बिहार

----

सन 1999 लोस चुनाव

----------

रामविलास पासवान तब राजग में थे।

राजग को बिहार में कुल 54 में से 41 सीटें मिलंीं। 

------------

रामविलास पासवान अटल सरकार में रेल मंत्री बने।

बाद में वाजपेयी ने पासवान को नाराज कर दिया।

वे राजग से अलग हो गये।

नतीजतन 2004 के लोक सभा चुनाव में राजग को बिहार में 40 में से सिर्फ 11 सीटें ही मिलीं।

-------------

कारण--अटल बिहारी वाजपेयी ने पासवान से पहले रेल मंत्रालय ले लिया और संचार दे दिया।

फिर उनसे संचार लेकर प्रमोद महाजन को दे दिया।

पासवान ने नाराज होकर वाजपेयी मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया।

हालांकि पासवान ने अनुकूल राजनीतिक अवसर देख कर ही अपने इस्तीफे की तारीख तय की थी।

--------------

पासवान को बिहार की राजनीति का ‘जोड़न’ कहा जाता था।

जोड़न के बिना दही नहीं जमता।

यह बिहार की राजनीति की विशेषता है।

सामाजिक समीकरण का ध्यान रखने की मजबूरी है।

अभी ‘जोड़न’ की भूमिका में कौन है ?

एक से अधिक हैं।

उम्मीद है कि प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी को बिहार के बाहर के किसी

जानकार व्यक्ति ने, जिसे बिहार की राजनीति की गहरी जानकारी हो,मौजूदा ‘जोड़न’के बारे में बता दिया होगा।

बिहार के किसी नेता से पूछिएगा तो वह अपनी सुविधानुसार कुछ भी बता दे सकता है।

-------------------

निष्कर्ष--

सन 2004 में यदि द्रमुक और लोजपा को अटल जी अपने साथ बनाए रखते तो कैसा रिजल्ट आता ?

आंकड़े खुद ही देख लीजिए।

याद रहे कि 2004 में भाजपा को लोक सभा की कुल 138 और कांग्रेेस को कुल 145 सीटें मिली थीं।

------------

लोजपा को भला कैसे साथ रखते ?

तब यह चर्चा थी कि अटल जी, प्रमोद महाजन को अपना उत्तराधिकारी बनाना चाहते थे।

उधर प्रमोद महाजन संचार मंत्रालय ही चाहते थे।

उधर धर्मांतरण विरोधी कानून का तमिलनाडु के जन मानस पर कितना असर पड़ेगा,इसका पूर्वानुमान अटल जी नहीं कर सके।

फील गुड हावी जो था !!

-------------

28 दिसंबर 23

   

  


कोई टिप्पणी नहीं: