चैधरी चरण सिंह के जन्म दिन पर
(23 दिसंबर 1902-29 मई 1987)
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आज के राजनीतिक माहौल में
यह संस्मरण सर्वाधिक मौजूं
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सुरेंद्र किशोर
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संजय गांधी पर से केस उठा लेने से
इनकार कर देने के कारण ही इंदिरा
गांधी ने गिरा दी थी चरण सिंह की सरकार
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कई दल मिल कर जब सरकार बनाते हैं तो क्या होता है ?
कभी -कभी वैसा ही होता है जैसा चैधरी चरण सिंह की सरकार के साथ 1979 में हुआ था।
ऐसा आगे भी हो ही सकता है।
आज तो (दिसंबर 2023 में) बहुत ही अधिक गंभीर मुकदमे, बहुत सारे इंडी नेताओं को, बहुत ही अधिक परेशान कर रहे हैं।
कुछ जेलों में हैं।
कुछ अन्य जेलों के रास्ते में हैं।
दलों की एकता की जल्दीबाजी के पीछे सबसे बड़ा तत्व यही है।
आजकल देश का राजनीतिक माहौल 1979 से अधिक गंम्भीर है।
(कल्पना कीजिए कि केंद्र में इंडी गठबंधन की सरकार 2024 में बन जाए।
यदि चरण सिंह जैसा जिद्दी नेता प्रधान मंत्री
बन गया तो वह इंडी गठबंधन के नेताओं के खिलाफ चल रहे मुकदमों को उठाने से साफ इनकार कर दे सकता है।
नतीजतन उस सरकार को गिराना पड़ेगा।
इसीलिए इंडी गठबंधन का प्रधान मंत्री चुनाव के बाद ही चुना जाएगा,इसी की संभावना अधिक है।
तब एक और ‘‘एम.एम.एस.’’खोज लेना कोई मुश्किल काम नंहीं होगा।)
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हालांकि मिली जुली सरकारों के आने -जाने से बार-बार गैर जरूरी चुनावों की नौबत आ जाती है।
चुनावों में अरबों रुपए खर्च होते हैं।
कुछ सरकारी और अधिक गैर सरकारी।
यह सब धन आखिर जनता के टैक्स से ही तो अंततः आता है।
या फिर धनियों से वसूली के जरिए।
अंततः बोझ जनता पर।
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अब प्रकरण चैधरी जी का।
कांग्रेस ने बाहर से बिना शत्र्त समर्थन दिया और 28 जुलाई 1979 को चैधरी साहब प्रधान मंत्री बन गए।
पर कुछ ही समय बाद ऐसी परिस्थिति बनी कि उन्होंने 20 अगस्त को प्रधान मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया।
उस समय की चर्चित साप्ताहिक पत्रिका ‘‘रविवार’’ के उदयन शर्मा को चरण सिंह ने बताया था कि उन्होंने इस्तीफा क्यों दिया।
चैधरी चरण सिंह के शब्दों में
‘‘मुझे इंदिरा गांधी के बारे में गलतफहमी कभी नहीं थी।
पर हमने सोचा कि एक महत्वपूर्ण सवाल पर जिससे राष्ट्रीय एकता जुड़ी थी,जब उन्होंने बिना शत्र्त समर्थन देने को कहा ,तो हमने उसे स्वीकार किया कि इससे देश में नया वातावरण बन सके और राष्ट्र निर्माण और राष्ट्रीय अनुशासन की तरफ हम फिर बढ़ सकेंगे।’’
‘..........पर इंदिरा गांधी ने अपने नजदीकी लोगों से इस बात के संदेश भेजना शुरू किया कि जब तक संजय (गांधी )के मुकदमे उठा नहीं लिए जाते , वे 20 तारीख को विश्वास मत पर मेरी सरकार का साथ नहीं दे सकतीं।
और गैर असूली और दबाव की राजनीति के तहत उन्होंने (इंदिरा जी ने)बिहार और हरियाणा में जनता पार्टी की सरकारों का साथ दिया।
उस जनता पार्टी का जिसमें जनसंघ का वर्चस्व है।(इस प्रकरण से कांग्रेस के इस दावे का खंडन होता है कि उसने कभी जनसंघ की मदद नहीं की।)
यदि कांग्रेस ने उन राज्यों में जनता पार्टी की सरकारों को सत्ता में बने रहने में मदद नहीं की होती तो वहां गैर संघी, धर्म निरपेक्ष व किसानोन्मुख सरकारें बन जातीं।’’
चरण सिंह ने कहा कि ‘‘यह देश हमारे मंत्रिमंडल को कभी माफ नहीं करता,अगर हम कुर्सी पर चिपके रहने के लिए उन लोगों पर से मुकदमे उठा लेते जो इमरजेंसी के अत्याचारों के लिए जिम्मेदार थे।
मैं ब्लैकमेल की राजनीति स्वीकार कर एक दिन भी सत्ता में नहीं रह सकता।’’
‘‘खास कर 19 अगस्त की रात साढ़े नौ बजे मुझसे कहा गया कि 19 जुलाई को ‘किस्सा कुर्सी का’ केस में जो सरकारी अधिसूचना जारी की गयी थी,उसे आपकी सरकार वापस ले ले।
इस पृष्ठभूमि में मैंने निर्णय किया कि अब नये चुनाव के लिए
जनता के पास जाना ही उचित होगा।’’
(--रविवार-26 अगस्त, 1979)
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