समाज के पिछड़े और कमजोर वर्ग के बाल-बच्चे तभी ठीक से पढ़-लिख पाएंगे जब बिहार के सरकारी शिक्षण संस्थानों में गुणवत्ता लायी जाए
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सुरेंद्र किशोर
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बिहार के शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव के.के.पाठक बिहार की शिक्षा-परीक्षा को सुधारने के लिए रात-दिन एक किए हुए हैं।
उनका शायद यही ‘कसूर’ है,इसीलिए कुछ लोग उनके खिलाफ अभियान चलाए हुए हैं।
संभव है कि अभियानी लोग सफल भी हो जाएं।क्योंकि चुनाव सामने है।
इस राज्य में अच्छे अफसरों के खिलाफ अभियान चलाने वाले लोग अक्सर सफल होते भी रहे हंै।
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इस पोस्ट के साथ शिक्षा की दुर्दशा से संबंधित हाल की खबरों की कटिंग दी गयी है।
खबरें छपती हैं।बीमारी का पता सबको है।
फिर भी प्राथमिक शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा के क्षेत्र में व्याप्त अराजकता को लेकर कोई अभियान नहीं चलता।
उसका कारण जग जाहिर है।
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सन 1963 से मैं इस बात का प्रत्यक्षदर्शी हूं कि किस तरह इस राज्य की शिक्षा को धीरे- धीरे बर्बाद किया गया।कई संबंधित पक्षों
ने मिलकर बर्बाद किया।
अब शिक्षा -परीक्षा के नाम पर यहां क्या बचा है,वह सब बच्चा -बच्चा जानता है।
आरक्षण का दायरा जितना बढ़ाना हो,बढ़ा लीजिए।
उसकी जरूरत भी है।
क्योंकि इस राज्य में जब -जब कांग्रेस को विधान सभा में खुद का पूर्ण बहुमत मिला,कभी किसी पिछड़े को मुख्य मंत्री नहीं बनाया।
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केंद्र सरकार ने आजादी के बाद से सन 1990 तक पिछड़ों के साथ कैसा सलूक किया,वह नीचे के आंकड़ों से जाहिर हैं।ं
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1990 में केंद्र सरकार के विभागों में पिछड़े कर्मियों की संख्या
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विभाग --- कुल क्लास वन अफसर ---- पिछड़ी
जाति
-----------------------------------राष्ट्रपति सचिवालय --- 48 ------- एक भी नहीं
प्रधान मंत्री कार्यालय-- 35 ------ 1
परमाणु ऊर्जा मंत्रालय-- 34 ------ एक भी नहीं
नागरिक आपूत्र्ति----- 61 ------- एक भी नहीं
संचार ------ 52 ------ एक भी नहीं
स्वास्थ्य -------- 240 ------- एक भी नहीं
श्रम मंत्रालय------ 74 --------एक भी नहीं
संसदीय कार्य---- 18 --- एक भी नहीं
पेट्रोलियम -रसायन-- 121 ---- एक भी नहीं
मंत्रिमंडल सचिवालय-- 20 ------ 1
कृषि-सिंचाई----- 261 ------- 13
रक्षा मंत्रालय ----- 1379 ------ 9
शिक्षा-समाज कल्याण-- 259 ----- 4
ऊर्जा ---------- 641 -------- 20
विदेश मंत्रालय ----- 649 -------- 1
वित्त मंत्रालय---- 1008 ---------1
गृह मंत्रालय---- 409 --------13
उद्योग मंत्रालय-- 169----------3
सूचना व प्रसारण-- 2506 ------124
विधि कार्य-- 143 -- 5
विधायी कार्य --- 112 ------ 2
कंपनी कार्य -- 247 ------6
योजना--- 1262 ----- 72
विज्ञान प्रौद्योगिकी ----101 --- 1
जहाज रानी- 103 -- 1
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----1990 के दैनिक ‘आर्यावत्र्त’ से साभार
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पर,आश्चर्य है कि के.क.े पाठक के खिलाफ अभियान चलाने में पिछड़े नेता भी सक्रिय हैं।
इसे ही कहते हैं अपने ही पैरों पर कल्हाड़ी मारना।
पैसे वाले व ‘समर्थ’ लोग तो अपने बाल-बच्चों को बिहार से बाहर भेज कर पढ़ा लेंगे।पढ़ा भी रहे हैं।
पर,अधिकतर पिछड़े परिवारों के बाल -बच्चों को अच्छी शिक्षा तभी मुअस्सर हो पाएगी जब बिहार के ही सरकारी शिक्षण संस्थानों में गुणवत्ता आए।
गणवत्ता तभी आएगी जब पाठक जैसे अफसर भ्रष्टों,काहिलों और अयोग्यों की दवाई कर पाएंगे।ऐसा नहीं है कि शिक्षा के क्षेत्र में यहां योग्य,कर्तव्यनिष्ठ और ईमानदार लोग नहीं हैं।
पर,वे अल्पमत में हैं ।इसलिए वे निर्णायक नहीं हैं।
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10 दिसंबर 23
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