वेबसाइट मनीकंट्रोल हिन्दी पर आज प्रकाशित
--------------------
आखिर कब राजमाता सिंधिया ने नाराज होकर गिरा
दी थी डी.पी.मिश्र की कांगे्रसी सरकार
--------------
सुरेंद्र किशोर
--------------
एक सभा में राज घराने के खिलाफ मुख्यमंत्री मिश्र की अमर्यादित
टिप्पणी से राजमाता सिंधिया सख्त नाराज हो गयी थीं
--------------
मध्य प्रदेश के स्पष्टवादी मुख्य मंत्री द्वारिका प्रसाद मिश्र ने पूर्व राज घरानों के खिलाफ सार्वजनिक रूप से अमर्यादित टिप्पणी की जिससे गुस्सा कर राजमाता सिंधिया ने 1967 में उनकी सरकार गिरवा दी।
ग्वालियर की राजमाता विजयाराजे सिंधिया को प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू ने राजनीति में लाया था।कांग्रेस के टिकट पर वह 1957 और 1962 में लोक सभा सदस्य बनीं।
सन 1967 में स्वतंत्र पार्टी के टिकट पर लोक सभा सदस्य चुनी गयीं।
बाद में वह जनसंघ में शामिल हो गयीं।
द्वारिका प्रसाद मिश्र से उनकी नहीं बनती थी।
राजमाता का कांग्रेस में लाया जाना संभवतः मिश्र को अच्छा नहीं लगा था।
मिश्र ने भी एक बार कहा था कि ‘‘यदि कांग्रेस ने राजमाता को वापस कांग्रेस में लाने की कोशिश की कि तो मैं कांग्रेस में रह कर
भी समूचे देश में ऐसा आंदोलन छेड़ूंगा कि राजाओं के समर्थकों की जड़ें हिल जाएंगी।’’
एक सभा में राज घरानों के खिलाफ मुख्य मंत्री मिश्र की अमर्यादित टिप्पणी से विजया राजे सिंधिया सख्त नाराज हो गयी थीं।
उधर डी.पी.मिश्र के बाद मुख्य मंत्री बने गोविंद नारायण सिंह मिश्र मंत्रिमंडल में शामिल नहीं किए जाने से नाराज थे।
गोविंद नारायण सिंह के पिता अवधेश प्रताप सिंह विंध्य प्रदेश के मुख्य मंत्री रह चुके थे।
गोविंद नारायण सिंह सहित तीन दर्जन कांग्रेसी विधायकों ने 1967 में डी.पी.मिश्र सरकार के खिलाफ विद्रोह कर दिया।
1967 के आम चुनाव के बाद तो राजनीति के ‘चाणक्य’माने जाने वाले मिश्र के नेतृत्व में मध्य प्रदेश में कांग्रेसी सरकार तो बन गयी थी,पर नये विवाद के कारण वह सिर्फ चार महीने ही चल सकी।यानी 8 मार्च, 1967 से 29 जुलाई 1967 तक ही।
एक ऐसे मुख्य मंत्री को राजमाता ने उलट दिया जिन्होंने एक ही साल पहले इंदिरा गांधी को प्रधान मंत्री बनाने में ‘चाणक्य’ की भूमिका निभाई थी।
हालांकि डी.पी.मिश्र उससे पहले के प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू के विरोधी हो गए थे।
मिश्र जी की शिकायत थी कि तिब्बत को हड़प लेने पर नेहरू ने चीन का विरोध नहीं किया।
एक बार तो मिश्र ने यह भी कह दिया था कि ‘‘मैं अगली बार जवाहरलाल नेहरू को प्रधान मंत्री नहीं बनने दूंगा।’’
हालांकि वे उस ‘पहाड’़ को नहीं हिला सके थे।
1967 के चुनाव के बाद उपजे तरह-तरह के असंतोष के कारण मध्य प्रदेश विधान सभा के कुल 167 कांग्रेसी विधायकों मेें से 36 विधायकों ने पार्टी छोड़ दी।हालांकि उस दल बदल के सिलसिले में भी कई नाटकीय घटनाएं भी र्हुइं थीं।
कहा जाता है कि यदि राजमाता के पास गैर राजनीतिक ताकत नहीं होती तो दलबदलू विधायकों का सत्ता पक्ष ने अपहरण कर लिया होता।
तब की एक पत्रिका के अनुसार, ‘‘ द्वारिका प्रसाद मिश्र के मुख्य मंत्री बनने पर साठ के दशक में भोपाल के समाचार पत्रोें के दफ्तरों में राज्य के विभिन्न कोनों से अनेक पत्र आये थे जिन में ‘‘लौह पुरूष’’ श्री मिश्र को अवतार और देवता मान कर उनके दर्शन की लालसा व्यक्त की गयी थी।
लेकिन वास्तविकता जैसे -जैसे सामने आती गयी ,जनता का मोह टूटता गया।
बाद के दिनों में लोगों के सामने सिर्फ मिश्र मंत्रिमंडल की तानाशाही और नौकरशाही रही।अंततः असंतोष का विस्फोट हुआ।’’
डी.पी.मिश्र के अपदस्थ होने के बाद प्रदेश में गोविंद नारायण सिंह के नेतृत्व में 30 जुलाई 1967 को 31 सदस्यीय मंत्रिमंडल गठित हुआ।उस प्रथम गैर कांग्रेसी मंत्रिमंडल में उन 36 दलबदलू कांग्रेसी विधायकों में से 19 दल बदलू शामिल किए गए।जनसंघ घटक से 7 मंत्री बने।
राजमाता की पार्टी जन क्रांति दल से पांच मंत्री बने।
जनसंघ घटक के वीरेंद्र कुमार सकलेचा उप मुख्य मंत्री बनाए गए।
हालांकि गोविंद नारायण सिंह की सरकार अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सकी।
कहा गया कि राजमाता की ओर से शासन में लगातार हस्तक्षेप को अंततः गोविंद नारायण सिंह सहन नहीं कर सके।
वे सन 1969 के मार्च में पद से हट गए।
फिर कांग्रेस में शामिल हो गए।
राजीव गांधी के शासन काल में उन्हें बिहार का राज्यपाल बनाया गया था।पर उनका बिहार के मुख्य मंत्री भागवत झा आजाद से लगातार टकराव चलता रहा।
उन दिनों एक दलबदलू का तर्क था कि विंस्टन चर्चिल ने भी मतभेदों के कारण सन 1904 में दल बदल किया था।पहले वे कंजर्वेटिव पार्टी से चुने गए ।फिर लिबरल पार्टी में शामिल हो गए थे।
सन 1967 के आम चुनाव के समय देश में कांग्रेस विरोधी हवा थी।
सात राज्यों में कांग्रेस हार गयी।
लोक सभा में भी उसका बहुमत पहले की अपेक्षा कम हो गया।
कुछ समय बाद उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में भी दल बदल के कारण कांग्रेस सरकारें गिर गयीं।
उत्तर प्रदेश में किसान नेता चरण सिंह ने अपने समर्थकों के साथ कांग्रेस छोड़ कर चंद्रभानु गुप्त की कांग्रेसी सरकार गिराई।चरण सिंह खुद मुख्य मंत्री बने।
विजया राजे सिंधिया के पति जीवाजी राव सिंधिया मध्य भारत के राज प्रमुख थे।
पर, जब राज्यों का पुनर्गठन हुआ तो मध्य भारत, मध्य प्रदेश का हिस्सा बन गया।
मध्य प्रदेश की राजनीति में सिंधिया राज घराना आज भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।
मध्य प्रदेश में 1967 में मिश्र सरकार के अपदस्थ होने के बाद श्यामा प्रसाद शुक्ल और अर्जुन सिंह दिल्ली गए।
हाईकमान के सदस्यों से अलग -अलग मिले।
दोनों मिश्र मंत्रिमंडल के सदस्य थे।अर्जुन सिंह ने हाईकमान से कहा कि डी.पी.मिश्र अब भी मध्य प्रदेश के बेताज बादशाह हैं।
उन्हें ही आगे भी मौका मिलना चाहिए।पर श्यामा चरण शुक्ल नए नेतृत्व के पक्ष में थे।सन 1969 में श्यामा चरण शुक्ल मुख्य मंत्री बनाए गए।
---------------------
11 दिसंबर 23
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें