यह आत्मश्लाघा है
या प्रेरक प्रसंग ?!
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सुरेंद्र किशोर
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कई दशक पहले की बात है।
उत्तर बिहार के एक छात्र ने तय किया कि वह ट्रेन में बिना टिकट यात्रा नहीं करेगा।
हालांकि तब छात्रों से आम तौर पर टिकट चेकर, टिकट या पास नहीं मांगते थे।
हां,मजिस्ट्रेट चेकिंग की बात और थी।
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वह छात्र मंथली पास लेकर चलता था।
किसी कारणवश अगली अवधि के लिए पास नहीं बनवा पाने की स्थिति में वह टिकट खरीद कर ही यात्रा करता था।
अन्य ‘बहादुर छात्र’ लोग उसे ‘बेवकूफ’ कहते थे।
एकाधिक बार ऐसा हुआ कि उसे टिकट कटाने का समय नहीं मिला।
वह बिना टिकट गंतव्य स्टेशन तक पहुंच जाता था।
न जाने पर क्लास छूटने का डर रहता था।
वहां के स्टेशन की टिकट खिड़की पर जाकर उसने हर बार पिछले स्टेशन तक का टिकट खरीदा।
उसे फाड़कर फंेक दिया।
उद्देश्य था कि रेलवे को पैसे मिल जाएं।
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इस प्रसंग के बारे में आप क्या कहंेगे ?
प्रेरक प्रसंग या उस छात्र की आत्म प्रशंसा यानी आत्मश्लाघा ?
वैसे उस छात्र के ,जो अब अधेड़ हो चुका है, जीवन में ऐसे अनेक प्रसंग आए जो प्रेरक प्रसंग की श्रेणी में आएंगे।
हालांकि ईष्र्यालु लोग उसे तुरंत झूठ या आत्मश्लाघा का दर्जा दे देंगे।
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जार्ज बर्नार्ड शाॅ ने कहा था कि सारी आत्म कथाएं झूठी होती हैं।
शाॅ की इस टिप्पणी के बावजूद अपनी पसंद की हस्तियों की जीवनियां लोगबाग पढ़ते ही हैं।
उनमें प्रेरक बातें होती हैं तो उनसे प्रेरणा भी लेते हैं।
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7 दिसंबर 23
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