तेलांगना में अल्पसंख्यक मतों का कमाल
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अब के.सी.आर.क्या करेंगे ?!!
क्या वही करंेगे जो देवगौडा कर रहे ?
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सुरेंद्र किशोर
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अल्पसंख्यक मतदाताओं ने जो काम हाल के कर्नाटका विधान सभा चुनाव में किया,वही काम तेलांगना विधान सभा चुनाव में भी कर दिया।
इसीलिए कांग्रेस तेलांगना में सत्ता में आ रही है।
अल्पसंख्यकों ने कर्नाटका में जे डी एस को छोड़ा और तेलांगना में सत्ताधारी बी.आर.एस. को।
गत जुलाई में उर्दू दैनिक इंकलाब ने राहुल गांधी के एक भाषण को उधृत करते हुए लिखा कि --‘‘कांग्रेस मुसलमानों की पार्टी है।’’
बाद में कांग्रेस की प्रियंका चतुर्वेदी ने कहा कि समाचार गलत है।उम्मीद है कि इंकलाब इसका खंडन करेगा।
पता नहीं खंडन आया या नहीं।
वैसे प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह भी कह चुके थे कि सरकार के बजट पर पहला हक मुसलमानों का है।
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2014 के लोक सभा चुनाव में कांग्रेस की हार के कारणों की जांच के बाद ए.क. एंटोनी ने कहा था कि ‘‘जनता को लगा कि कांग्रेस अल्पसंख्यकों की ओर झुकी हुई है।हमारी हार का यह एक कारण था।’’
हाल में एक खबर आई कि देश के अल्पसंख्यकों ने यह तय किया है कि अब हम मतदान करने में मामले में कांग्रेस को तरजीह देंगे।
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इससे पहले अल्पसंख्यक उस दल को वोट देते रहे जो जहां भाजपा के खिलाफ सबसे मजबूत पड़ता है।
पर,अब खबर है कि अल्पसंख्यकों की यह रणनीति बनी है कि अखिल भारतीय स्तर पर कांग्रेस को मजबूत करने की जरूरत है।
याद रहे कि पिछले विधान सभा चुनाव में केरल में अल्पसंख्यकों ने सी.पी.एम.को तरजीह दिया।
सन 2022 के यू.पी.विधान सभा चुनाव में सपा को अल्पसंख्यकों ने एकमुश्त वोट दिया।
पश्चिम बंगाल में 2021 के विधान सभा चुनाव में अल्पसंख्यकों ने कांग्रेस और सी.पी.एम.को छोड़ कर ममता बनर्जी को वोट दिया था।
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अलपसंख्यकों के ताजा रुख से यह साफ है कि जिन चुनाव क्षेत्रों में अल्पसंख्यक वोट निर्णायक होंगे,यानी कम से कम 10 -25 प्रतिशत तक होंगे,वहां कांग्रेस का चुनावी भविष्य उज्जवल रह सकता है।
लोक सभा के बाकी चुनाव क्षेत्रों में ???
थोड़ा कहना, अधिक समझना !!
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शेष भारत के ‘‘देवगौड़ाओं’’ और ‘‘के.सी.आरों’’ के लिए अभी से सबक सीख लेने का समय है।
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मुस्लिम वोट का प्रतिशत
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तेलांगना-13 प्रतिशत
कर्नाटका--13 प्रतिशत
केरल-27 प्रतिशत
पश्चिम बंगाल-27 प्रतिशत
यू.पी.- 19 प्रतिशत
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अखिल भारतीय--14 प्रतिशत
बिहार--17 प्रतिशत
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3 दिसंबर 23
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