रविवार, 23 मार्च 2025

 डा.लोहिया के जन्म दिन पर

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(23 मार्च 1910--12 अक्तूबर 1967)

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डा.राम मनोहर लोहिया अपना जन्म दिन नहीं मनाते थे।

क्योंकि 23 मार्च (1931) को ही भगत सिंह 

को फांसी पर लटकाया गया था।

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पर,एक पूर्व समाजवादी कार्यकर्ता और जागरूक पत्रकार होने के नाते इस अवसर पर मैं तो उन्हें याद कर ही सकता हूं।

क्योंकि डा.लोहिया ने मुझे सबसे अधिक प्रभावित किया है।

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लोहिया ने किया था

‘टाइम’पर मुकदमा

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अपने बारे में गलत खबर से खिन्न डा.लोहिया 

ने मशहूर अमरीकी पत्रिका ‘टाइम’ के खिलाफ 

मानहानि का मुकदमा दायर किया था।

लोहिया पर टाइम में छपी खबर से लोगों ने 

जाना कि एक बहुत बड़ी अंतरराष्ट्रीय पत्रिका भी किस 

तरह गैर जिम्मदाराना रिपोर्टिंग कर सकती है।

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 डा.लोहिया ने ‘टाइम’ सेे दस पैसे के हर्जाने की मांग की थी।

  याद रहे कि फूल पुर लोक सभा उप चुनाव के संबंध में ‘टाइम’ ने निराधार खबर छापी थी।

‘टाइम’ ने अन्य बातों के अलावा यह भी लिख दिया था 

कि ‘‘ डा.लोहिया नेहरू परिवार के आजीवन शत्रु हैं।’’

  भारत की राजनीति के बारे में ‘टाइम’ की छिछली जानकारी का ही यह नतीजा था।(कई दशक पहले इंडियन एक्सप्रेस के तब के संपादक ने मुझसे कहा था कि मैं अंग्रेजी पत्रकारों की अपेक्षा इस देश को अधिक जानता हूं क्योंकि मैं हिन्दी अखबार भी पढ़ता हूं।)  

दरअसल डा.लोहिया जवाहरलाल नेहरू की नीतियों का विरोध करते थे न कि वे उनके आजीवन शत्रु थे।

एक बार डा.लोहिया ने अपने मित्रों से कहा था कि यदि मैं बीमार पड़ूंगा तो मेरी सबसे अच्छी सेवा- शुश्रूषा जवाहर लाल नेहरू के घर में ही होगी। डा.लोहिया जब दिल्ली जेल में थे,प्रधान मंत्री नेहरू ने लोहिया के लिए आम भिजवाया था।इसको लेकर गृह मंत्री सरदार पटेल प्रधान मंत्री से नाराज हुए थे।

 सन 1964 में नेहरू के निधन के बाद डा.लोहिया ने कहा था,‘ ‘1947 से नेहरू को मेरा सलाम !’

पर छिछली रिपोर्टिंग करने वाली पत्रिका को इन तथ्यों से क्या मतलब !  

  खैर ‘आजीवन शत्रु’ वाली बात लोहिया को अधिक बुरी लगी थी।

दरअसल नेहरू के निधन के बाद फूल पुर में उप चुनाव हुआ।डा.लोहिया कांग्रेस की उम्मीदवार विजयलक्ष्मी पंडित के खिलाफ चुनाव प्रचार में गए थे।

 टाइम के 4 दिसंबर, 1964  के अंक में लिखा गया कि ‘डा.लोहिया नेहरू परिवार के आजीवन शत्रु हैं। इस कारण वे उप चुनाव में विजयलक्ष्मी पंडित के विरूद्व प्रचार करने गए थे।

इस बात को नजरअंदाज करते हुए कि 1962 में खुद लोहिया,नेहरू के खिलाफ वहां चुनाव लड़ चुके थे, पत्रिका ने यह भी लिख दिया कि ‘लोहिया ने मतदाताओं से कहा कि विजयलक्ष्मी पंडित की सुन्दरता के जाल में न फंसें।उनके अंदर केवल विष है।’

‘टाइम’ के अनुसार डा.लोहिया ने मतदाताओं से  कहा कि श्रीमती पंडित की युवावस्था जैसी सुन्दरता इसलिए कायम है क्योंकि उन्होंने यूरोप में प्लास्टिक शल्य चिकित्सा करायी है।

 डा.लोहिया ने दिल्ली के सीनियर सब जज की अदालत में टाइम  के संपादक,मुद्रक,प्रकाशक और नई दिल्ली स्थित संवाददाताओं के विरूद्व मानहानि का मुकदमा किया।  

  अदालत में प्रस्तुत अपने आवेदन पत्र में डा.लोहिया ने कहा कि टाइम में प्रकाशित उक्त सारी बातेें बिलकुल मन गढंत हैं और मुझे बदनाम करने के इरादे से इस तरह की कुरूचिपूर्ण बातें मुझ पर आरोपित की गई हंै।

डा.लोहिया ने  कहा कि टाइम ऐसे दकियानूसी कट्टरपंथी तत्वों का मुखपत्र है,जिन्हें हमारी समतावादी और लोकतांत्रिक नीतियां पसंद नहीं हैं।

  नई दिल्ली स्थित संवाददाताओं ने, जो उक्त समाचार भेजने के लिए जिम्मेदार हैं,मुझसे कभी भंेट तक नहीं की।

 ये संवाददाता स्थानीय भाषा भी नहीं जानते।

इसलिए मेरे भाषण की उन्हें सीधी जानकारी भी नहीं हो सकती थी।

शत्रुता के आरोप का खंडन करते हुए डा.लोहिया ने कहा कि

कांग्रेसी शासन अथवा दिवंगत प्रधान मंत्री की जब भी मैंने आलोचना की है तो नीति और सिद्धांत के प्रश्नों पर ही।

किसी निजी द्वेष पर नहीं।

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   समान नागरिक संहिता के 

  पक्षधर थे डा.लोहिया 

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उत्तराखंड सरकार ने गत साल समान नागरिक कानून बना दिया।

डा.राममनोहर लोहिया जीवित होते तो इस पर वे बहुत खुश होते।

भले आज के कथित लोहियावादी इस खबर से दुखी होंगे।

पर,समान नागरिक संहिता के पक्ष में बयान देने के कारण डा.लोहिया सन 1967 का अपना लोक सभा चुनाव हारते -हारते जीते थे।

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तब डा. लोहिया ने चुनाव प्रचार के बीच पत्रकारों के सवाल के  जवाब में यह कह दिया था कि 

‘‘इस देश में सामान्य नागरिक संहिता लागू होनी ही चाहिए।’’

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डा.लोहिया का यह बयान उर्दू अखबारों में कुछ अधिक ही प्रमुखता से छपा था।

उस पर डा.लोहिया के दल के नेतागण चिंतित हो गये।उनमें से एक ने लोहिया से कहा --

‘‘डाक्टर साहब,(उन्हें इसी नाम से पुकारा जाता था)यह आपने क्या कह दिया !

अब तो आप चुनाव हार जाएंगे।’’  

 डा.लोहिया ने कहा था कि 

‘‘हम सिर्फ चुनाव जीतने के लिए नहीं, बल्कि देश को बनाने के लिए राजनीति करते हैं।’’

याद रहे कि वे खुद लोक सभा का चुनाव लड़ रहे थे।

डा. लोहिया जीत तो गए,किंतु  सिर्फ करीब 400 मतों से।

यदि तब कांग्रेस विरोधी हवा नहीं होती तो वे शायद नहीं जीत पाते।

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सुदूर बसे कार्यकर्ताओं से भी जीवंत संबंध

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सन 1967 में डा.राम मनोहर लोहिया को मैंने एक चिट्ठी

लिखी थी।

तब मैं सारण जिला क्रांतिकारी विद्यार्थी संघ का सचिव था।

 संसोपा से जुड़े युवा नेता नरेंद्र कुमार सिंह ने, जो बाद में बिहार सरकार में मंत्री भी बने थे, इस संगठन का निर्माण राज्य स्तर पर किया था।

और, मुझे सारण जिला शाखा का सचिव बना दिया।

 मेरे मन में सवाल उठा कि जब समाजवादी युवजन सभा मौजूद है ही तो इस विद्यार्थी संगठन की क्या जरूरत है ?

(याद रहे कि कुछ महीने बाद जब समाजवादी युवजन सभा का राज्य स्तरीय संगठनात्मक चुनाव हुआ तो मैं संयुक्त सचिव चुना गया था।जो दो अन्य संयुक्त सचिव चुने गये थे,उन में एक लालू प्रसाद यादव थे और एक अन्य थीं शांति देवी (बेगूसराय)।शिवानन्द तिवारी सचिव चुने गये थे।

मुझे लगा कि पार्टी से पूछे बिना ही उत्साह में नरेंद्र जी ने यह विद्यार्थी संगठन बना दिया है।

लोहिया को मैंने लिखा था कि क्या आपकी इसमें सहमति है ?

उसका जवाब उन्होंने अपने निजी सचिव अध्यात्म त्रिपाठी से दिलवाया और उस चिट्ठी पर अपने हाथ से मेरे लिए लोहिया ने लिख दिया--‘‘खुश रहो।’’

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त्रिपाठी जी ने मुझे लिखा,‘‘आपका पत्र राम मनोहर लोहिया को मिला,धन्यवाद।

  यह जानकर प्रसन्नता हुई कि आपलोगों ने समाजवादी युवजन सभा के साथ-साथ क्रांतिकारी विद्यार्थी संघ का भी गठन किया है।(पत्र की फोटो काॅपी इस पोस्ट के साथ दी जा रही है।

यह पत्र हैदराबाद से कई खंडों में प्रकाशित पुस्तक ‘लोकसभा में लोहिया’ में छप चुका है।)

त्रिपाठी जी ने यह भी लिखा--‘‘समाजवादी युवजन सभा का संगठन अभी तक बहुत कमजोर रहा है,चाहे इसका कारण जो भी रहा हो।अधिक से अधिक युवजन इस संगठन में आएं,ऐसी कोशिश आप लोग कीजिए।

  युवजन ही अन्याय के मुकाबले में खड़े हो सकते हैं।रचना के काम भी कर सकते हैं।आपलोग साप्ताहिक या पाक्षिक विचार बैठक नियमित रूप से करें और उसमें देश-विदेश की स्थितियों पर विचार-विमर्श करें।

 ‘जन’ मासिक के जितने भी ज्यादा पाठक होंगे, उतनी ही ठोसता संगठन में आएगी।

  समय- समय पर आप लिखते रहिएगा।’’   

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23 मार्च 25



      

    

   


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