शनिवार, 22 मार्च 2025

 डा.सच्चिदानंद सिन्हा की अनुपम 

देन पटना की सिन्हा लाइब्रेरी

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सुरेंद्र किशोर

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संविधान सभा के अंतरिम अध्यक्ष डा.सच्चिदानंद सिंहा (1871-1950) के बारे में कंचन किशोर ने दैनिक जागरण 

में विस्तार से लिखा है।

वह लेख इस पोस्ट के साथ यहां दिया जा रहा है।

 आज मैं सिन्हा साहब की अनुपम देन सिन्हा लाइब्रेरी (पटना)की चर्चा करूंगा।

  वैसे तो सत्तर-अस्सी के दशकों में मैं सिन्हा लाइब्रेरी का मेम्बर यानी कार्ड होल्डर था।

  पर, बाद में दशकों तक मेेरा वहां आना -जाना नहीं रहा।

पर,इधर भारत रत्न कर्पूरी ठाकुर पर पुस्तक लेखन के लिए सामग्री जुटाने के सिलसिले में वहां जाना होता है।

   हाल में मैंने वहां साठ-सत्तर के दशकों के दैनिक अखबारों की फाइलें देखी-पलटी -पढ़ी-नोट किया।

बहुमूल्य जानकारियां मिलीं।मेरा मन सिन्हा साहब के प्रति आदरपूर्ण एहसान से भर उठा।

वहां साठ के दशक से पहले के भी अखबार उपलब्ध हैं।

आज तो कई अखबारों के दफ्तरों में भी उनके अपने ही प्रकाशनों के पुराने अंक उपलब्ध नहीं हैं।सिन्हा लाइब्रेरी के विकास के लिए नीतीश सरकार ने हाल में बड़ा कदम उठाया है।

पुनर्निर्माण-आधुकीकरण की बड़ी योजना है।शायद सिंगापुर की कोई कंपनी प्रोजेक्ट रिपोर्ट तैयार कर रही है।यह सब जान कर यह भी लगा कि नीतीश कुमार ने राज्य के अनेक क्षेत्रों में काम किया है।

 सिन्हा लाइब्रेरी के पुस्तकाध्यक्ष का व्यवहार शालीन और सहयोगात्मक रहा।

हां,पुराने पड़ रहे अखबारों-पत्रिकाओं की माइक्रो फिल्मिंग जरूरी लगी।क्योंकि पुराने कमजोर अखबारी कागज के कारण अखबारों के पन्ने फटे मिले।

लगा कि कुछ पाठक -रिसर्चर उलटते समय सावधानी नहीं बरतते।

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कर्पूरी ठाकुर भी कभी सिन्हा लाइब्रेरी के नियमित पाठक थे।

उनके लाइब्रेरी कार्ड को फ्रेम करा कर उसे सिन्हा लाइब्रेरी के रिसर्च सेक्सन की दीवार पर टांग दिया गया है।

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मैं भी 1965 से ही अपने घर में निजी पुस्तकालय-संदर्भालय विकसित करता रहा हूं।

 करीब 25 साल पहले डा.नामवर सिंह और प्रभाष जोशी मेरे आवास पर आये थे।

उन्होंने मेरी लाइब्रेरी देखी।

जोशी जी ने कहा कि देश के किसी पत्रकार की इतनी संपन्न निजी लाइबे्ररी नहीं है।

डा.नामवर सिंह ने कहा कि ‘‘सुरेंद्र जी आपने हीरा संजोकर रखा है।’’

  पिछले 25 साल में तो मेरे इस पुस्तकालय-सह संदर्भालय का आकार करीब दुगुना हो चुका है।बढ़ता जा रहा है।

  अब मुझे एक सहायक की जरूरत महसूस होती है।पर सहायक रखने के लिए मेरे पास पैसे नहीं हैं।

  इसे अप डेट करते जाने में कितना अधिक समय,श्रम और धन लगता है,वह मैं ही जानता हूं।

 डा.सच्चिदानंद सिन्हा को पैसे की कमी नहीं थी।

पर पैसे तो बहुत लोगों के पास होते हैं,पर मन वैसा नहीं होता।

सिन्हा साहब के पास धन भी  था और मन भी।

इसीलिए ऐतिहासिक काम कर सके। अब मैं अपना कटु अनुभव आपसे शेयर करता हूं।

मैंने ‘आज’ दैनिक के पटना ब्यूरो प्रमुख पारसनाथ सिंह के साथ मिलकर 13 फरवरी 1977 को जयप्रकाश नारायण का लंबा इंटरव्यू किया था।

उन दिनों जेपी बहुत व्यस्त थे। लोक सभा चुनाव सिर पर था।

देश भर के लोग उनसे मिलना चाहते थे।

फिर भी दैनिक आज का नाम सुनकर हमें उन्होंने समय दे दिया।

मिलने पर वे आधे घंटे तक पारस बाबू से दैनिक आज और उसके संस्थापक राष्ट्ररत्न बाबू शिव प्रसाद गुप्त(1883-1944) की प्रशंसात्मक चर्चा करते रहे। 

 वह चर्चित इंटरव्यू 16 फरवरी 1977 के आज (वाराणसी-कानपुर संस्करण)में पहले पेज पर छपा।

‘आज’के उस इंटरव्यू  की चर्चा करते हुए तब बी बी सी ने अपने बुलेटिन में जेपी की न्यूजब्रेक वाली बातों को प्रसारित किया था।

  हाल में मैंने तय किया कि मैंने अपने पत्रकारीय जीवन में जितनी बड़ी हस्तियों के इंटरव्यू किये हैं, उन्हें एक पुस्तक में सेमटा जाये।

  बाकी कटिंग्स तो मेरे पास हंै,पर ‘आज’ की वह कटिंग नहीं है।

मैंने देश भर  में  खोजवाया।

दैनिक आज के वाराणसी और कानपुर आॅफिस में भी।कहींे ंनहीं मिला।

आज के वाराणसी आॅफिस की फाइल में से 16 फरवरी 1977 का अंक गायब है।कानपुर आॅफिस में तो आज की पुरानी फाइलें दीमकों की खुराक बन चुकी हैं।

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अब आप ही समझिए कि मेरे जैसे साधनहीन व्यक्ति की, अपने पुस्तकालय को बनाये रखने और इसे अपडेट करते जाने की जिद्द, कब तक जारी रहती है !

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22 मार्च 25       


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