रविवार, 2 मार्च 2025

    

अर्थाभाव में रांची के 90 वर्षीय पद्मश्री 

सम्मानित का समुचित इलाज नहीं

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गुमनाम नायकों को पद्म सम्मान 

देने की मोदी परंपरा सराहनीय

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सुरेंद्र किशोर

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परपरंा तो ठीक है,पर ऐसा न हो कि पद्म 

सम्मानित अर्थाभाव में भुखमरी या लाइलाज ?!! 

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तेलांगना के पद्म सम्मानित मजदूर का शरीर स्वस्थ था,इसलिए वह निर्माण कंपनी में मजदूरी करने लगा था।

पर,रांची के पद्म सम्मानित तो अशक्त हैं।रांची के पत्रकार कुंदन कुमार चैधरी ( दैनिक भास्कर)ने  90 वर्षीय पद्म समानित व्यक्ति की दयनीय स्थिति के बारे में खबर दी है।

आज छपी खबर के अनुसार ,सन 2016 में पद्म सम्मान से विभूषित 90 वर्षीय सिमोन उरांव पैरालिसिस से ग्रस्त हैं ।और, अर्थाभाव के कारण उनका समुचित इलाज नहीं हो पा रहा है।तीन साल से उनकी सुध कोई नहीं ले रहा है।

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कुछ समय पहले खबर छपी है सन 2022 में पद्म सम्मानित दर्शनम् मुगोलैया मजदूरी कर रहे हैं तो तेलांगना सरकार ने उन्हें तुरंत भारी आर्थिक सहयाता दे दी।

वहां पद्म सम्मानितों के लिए राज्य सरकार ने मासिक पेंशन का प्रावधान भी कर दिया।ओड़िशा तथा देश की कुछ अन्य राज्य सरकारों ने भी पद्म सम्मानितों के लिए पेंशन का प्रावधान किया है।

पर अपुष्ट सूत्रों से जानकारी मिली है कि ऐसी ही पेंशन के  प्रस्ताव को बिहार सरकार ने हाल में ठुकरा दिया है।

देश के चैथे सबसे बड़े नागरिक सम्मान यानी पद्मश्री से सम्मानित व्यक्ति मुगोलैया की वहां की राज्य सरकार ने सुध ली।

पर झारखंड की सरकार सिमोन के बारे में क्या कर रही है ?

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 याद रहे कि सन 2014 में सत्ता में आने के तत्काल बाद नरेंद्र मोदी सरकार ने यह तय किया कि अब हम पद्म पुरस्कारों से गुमनाम नायकांे को सम्मानित करेंगे।

यह अच्छी बात है।सन 2014 से पहले की केंद्र सरकार अपवादों को छोड़ कर आम तौर पर वैसी हस्तियों को सम्मानित करती थी जिन्हेें निजी जीवन में कोई आर्थिक संकट नहीं रहता था। 

 पर,जब मोदी राज में ‘पात्रता’ बदल गई तो कम से कम वैसे सम्मानित लोगों के लिए मानदेय का प्रावधान करना चाहिए था जो आयकर दाता नहीं हैं।

पर, वह भी नहीं हुआ।हां,कुछ राज्य सरकारें उन सम्मानितों के काम आ रही हैं।

पर,यह तो विभिन्न राज्य सरकारों के मन -मिजाज पर निर्भर करता है। 

    याद रहे कि पद्म सम्मानितों को केंद्र सरकार कोई आर्थिक मदद नहीं करती।इसका कोई प्रावधान ही नहीं।बल्कि पद्मश्री,पद्मभूषण या पद्म विभूषण शब्द को अपने नाम के साथ जोड़ने की भी सम्मानितों को अनुमति नहीं है।यहां तक कि लेटर हेड ,विजिटिंग कार्ड या आवास के नेम प्लेट पर भी लिखना मना है।

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कई साल पहले की बात है।

नई दिल्ली के एक मशहूर वामपंथी पत्रकार को पद्मश्री आॅफर किया गया था।

  उन्होंने उसे स्वीकार करने से इनकार कर दिया।

वे नई दिल्ली में पत्रकार कोटा वाले सरकारी मकान में अत्यल्प रेंट पर जरूर रहते थे।

सरकारी मकान में आप कब तक रहेंगे,उसको लेकर नियम है।

जब पत्रकार महोदय नियम विरुद्ध जाकर ‘ओवर स्टे’ करने लगे तो केंद्र सरकार ने निष्कासन का नोटिस दे दिया।

उस नोटिस के खिलाफ वे कोर्ट चले गए।

हालंाकि कोर्ट से उन्हें अंततः राहत नहीं मिली।

यानी, पत्रकार महोदय को लगा होगा कि पद्मश्री के साथ तो कोई आर्थिक लाभ है नहीं।

तो फिर इसे स्वीकार करके सरकार पक्षी होने का लांछन नाहक क्यों झेलना !

ऐसे ही उनका काफी नेम-फेम था।

पर सरकारी मकान में नियम विरूद्ध जाकर ओवर स्टे करना

तो उनके लिए फायदे का काम था। 

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2 मार्च 25


     

   


 


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