कर्पूरी एक व्यक्ति नहीं,आंदोलन थे
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सन 1988 में कर्पूरी ठाकुर के निधन के बाद मैंने पटना में जो दृश्य देखा,उसका मेरे ऊपर भारी असर पड़ा।
उनकी शव यात्रा में मैंने हजारों लोगों को रोते देखा।
नर कंकाल सी एक अनजानी औरत जार-जार रोये जा रही थी।
एक आदमी के कंधे पर बैठा एक बच्चा हाथ जोड़कर कर्पूरी जी के शव को प्रणाम कर रहा था।
यकीन कीजिए,पूरी शव यात्रा में वह हाथ जोड़े रहा।
दूसरे सारे लोग रोते भी जा रहे थे और ,नारे भी लगाते जा रहे थे।
दरअसल कर्पूरी जी महज व्यक्ति नहीं,आंदोलन थे।
परिवर्तन की आशा थे।
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---दिवंगत हेमवती नन्दन बहुगणा,
उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्य मंत्री
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ऐसे नेताओं के लिए भारत की धरती अब
बांझ हो चुकी है।--सु.कि.
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