अपने निंदकों-आलोचकों से
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सुरेंद्र किशोर
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मेरे किसी लेख या फेसबुक पोस्ट में कोई तथ्यात्मक गलती हो और उसकी ओर कोई व्यक्ति इंगित करते हुए मुझे लिखता है तो मैं उसका विनम्रतापूर्व स्वागत करता हूं।मेरा उससे ज्ञानवर्धन ही होता है।कोई सज्जन अपने बेहतर ज्ञान व तर्कों के जरिए मेरी बातों को काट दे तो मुझे तो और भी खुशी होगी।
लेकिन मेरे तथ्यों पर न जाकर मेरे खिलाफ यदि कोई नाहक जहर उगलता है,व्यक्तिगत टिप्पणी करता है या मानहानि कारक शब्दों का इस्तेमाल करता है तो मैं उस टिप्पणी को अपने फेसबुक वाॅल से सिर्फ डिलीट कर देता हूं।फिर उसे भूल जाता हूं।
ऐसा करके मैं उसी व्यक्ति का बचाव करता हूं।
कल्पना कीजिए कि इस बीच मेरी हत्या हो जाए।फिर जांच एजेंसी खोजेगी कि मुझसे कौन -कौन लोग दुश्मनी या व्यक्तिगत खुन्नस पालते थे।
उसके बाद आप नाहक परेशानी में पड़ सकते हैं जबकि हत्या में आपका हाथ नहीं रहा होगा।
आजकल पुलिस-एजेंसियां सोशल मीडिया पर कुछ अधिक ही नजर रखती हैं।
जहां तक मेरे लेखन का सवाल है,उससे कुछ लोग इन दिनों चिढ़े रहते हैं।
लेकिन मैं उनकी परवाह नहीं करता।
क्योंकि उनमें इतना बौद्धिक या नैतिक दम नहीं है कि वे मेरे तथ्यों को काट सकें।
वे सिर्फ मेरी तथाकथित मंशा पर सवाल उठा सकते हैं।उसके लिए किसी तर्क बुद्धि या सबूत की तो तत्काल जरूरत है नहीं।हां,मानहानि का केस होने पर जरूरत पड़ेगी।पर केस करने का मेरे पास समय नहीं।
मैं अपना आदर्श डा.राममनोहर लोहिया और लोकनायक जय प्रकाश नारायण को मानता हूं।
दोनों में से कोई भी अपने लिए सत्ता के पीछे नहीं रहे।
(क्या मैं सत्ता के पीछे रहा ?क्या मुझे सत्ता की कोई छोटी-मोटी कुर्सी नहीं मिल सकती थी ?
क्या मैं आज भी दो रोटी जुटाने के लिए स्वतंत्र लेखन पर निर्भर नहीं हंू ?कितना जानते हैं आप मेरे बारे में ?)
जेपी-लोहिया ने सिर्फ देश के भले को ध्यान में ही रखकर समय- समय पर राजनीतिक या गैर राजनीतिक पहलकदमी की।
1974-77 के बिहार आंदोलन व सन 1977 के चुनाव में जब जेपी ने समाजवादियों तथा अन्य के साथ-साथ संघ-जनसंघ-विद्यार्थी परिषद का भी साथ स्वीकार किया तो कई लोगों ने उनकी आलोचना की।
पर,जेपी ने देशहित में उस पहल को ठीक समझा था।ठीक पहल थी भी।
डा.लोहिया ने तो विशेष प्रयास करके विशेष परिस्थिति मेें सन 1967 में बिहार और उत्तर प्रदेश जैसे प्रमुख राज्यों के गैर कांग्रेसी मंत्रिमंडलों में एक साथ जनसंघ और सी.पी.आई.के सदस्यों को भी शामिल कराया था।
जेपी-लोहिया ने अपने समय में वही किया जिसे उन दोनों ने समय -समय पर देश के व्यापक हित में सही समझा।उन्होंने न तो किसी व्यक्तिगत हित को आड़े आने दिया न ही किसी विचार धारा की जकड़बंदी या बंदरमूठ को।
मैं उन दो महान नेताओं की उस लाइन पर चलते हुए वैसा ही लेखन करता रहा हूं जिसे मैं आज देशहित में प्रासंगिक व जरूरी समझता हूं।
मेरा आदर्श न तो आज की कोई सरकार है और न ही कोई नेता। हां,मैं सिर्फ तुलना कर सकता हूं --पहले या आज की सरकारों के बीच।
यदि कोई विचारधारा भी देशहित के काम न आ पा रही है,कालबाह्य हो चुकी हो तो उसे भी मानते रहने की मैं कोई जरूरत नहीं समझता।
चीन और रूस भी जनहित में अपनी पुरानी विचारधारा की जकड़न से मुक्त हो चुके हंै।
आज इस देश-प्रदेश में दूसरे क्या लिख रहे हैं,किस उद््देश्य से लिख रहे हैं,कहां से होकर लिख रहे हैं,उन पर न तो मैं ध्यान देता हूं और न ही उन पर टिप्पणी करता हूं।
उसके लिए मेरे पास समय भी नहीं है। मैं क्यों नाहक किसी का अभिभावक बनने की कोशिश करूं ?!
किसी लेखक,राजनीतिक कर्मी या पत्रकार को मैं कोई दिशा -निदेश दूं कि आप ऐसा लिखें और ऐसा न लिखे,ऐसा करने का मैं सोच भी नहीं सकता।
यह काम कुछ दूसरे लोगों का है जो यह चाहते हैं कि जैसा वे सोचते हैं,वैसा ही सारे लोग सोचंे।अन्यथा व्यक्तिगत लांछन लगा कर उन्हें बदनाम कर दिया जाएगा।
पता नहीं,उनके पास इतना खाली समय क्यों है ?
या,यही उनका धंधा ही है !?
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19 मार्च 2025
मेरे फेसबुक वाॅल से
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