जनता से कटे कुछ नेतागण !
अब भी वक्त है !!
शैली बदलिए !!!
लोकतंत्र में प्रतिपक्ष भी सत्ताधारी
की तरह ही महत्वपूर्ण हैं।
...................................
1.-नोटबंदी सन 2016 के नवंबर में लागू की गई।
......................................
2.-पूर्व वित्त मंत्री पी.चिदंबरम ने कहा कि नोटबंदी
ने देश के 45 करोड़ लोगों की कमर तोड़ दी।
--प्रभात खबर-14 दिसंबर 2016
..........................................
दूसरी ओर, सत्ताधारी दल ने कहा कि कमर किन्हीं और की
टूटी है, गरीबों की नहीं।
..............................
3.-कुछ ही महीनों के बाद उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव हुए।
भाजपा को 403 में से 310 सीटें मिल गईं।
.....................
4.-चिदंबरम के अनुसार यदि गरीबों की कमर टूटी थी तो यू.पी.के
सिर्फ अमीरों ने भाजपा को 310 सीटें दिला दी ?
........................................
5.-दरअसल चिदंबरम व उनके दल के अनेक नेताओं ने जनता से कट
जाने के कारण
नोटबंदी को लेकर गलत धारणा फैलाने की कोशिश की।
यह भी संभव है कि जानबूझ कर उन लोगों ने ऐसा किया।
..........................................
6.-यह कोई इकलौता उदाहरण नहीं रहा।
........................................
7.-भारत सरकार ने जुलाई 2017 में जी.एस.टी.लागू की।
उस पर राहुल गांधी ने कहा कि यह ‘गब्बर सिंह टैक्स’ है।
यानी, यदि उनकी बातें सच होतीं तो व्यापारी वर्ग भाजपा से
सख्त नाराज हो जाते--जिस तरह शोले फिल्म के खूंखार डाकू
गब्बर को देखकर रामपुर
वासी कांप जाते थे।भगदड़ मच जाती थी।
..........................................
8.-पर, न तो ऐसा होना था और न हुआ।
व्यवसाय प्रधान राज्य गुजरात में कुछ ही माह बाद
विधान सभा के चुनाव हुए।
उस चुनाव के बाद भी भाजपा राज्य की सत्ता में बनी रही।
..................................................
9.-लगता है कि तीसरी बार भी प्रतिपक्ष का वैसा ही आकलन आ रहा है ।
यह सच है कि लाॅकडाउन के बाद देश के प्रवासी मजदूरों को अपार कठिनाइयों का सामना करना पड़ा है।
अब राजग विरोधी दलों के कुछ नेतागण मजदूरों की इस विपत्ति में अपने लिए चुनावी भविष्य देख रहे हैं।
लगता है कि पिछली दो बार गलत हो जाने के बावजूद उसी तरह का गलत अनुमान इस बार भी लगाया जा रहा है।यानी उनके अनुसार मजदूर राजग को अगले चुनाव में सबक सिखाएंगे।
........................
इस पर अभी क्या कहा जाए !
प्रतीक्षा कर लेने में क्या नुकसान है !!
चुनावों के नतीजे बता देंगे कि किसका अनुमान सही है।
ताजा सर्वेक्षण के नतीजे तो बता रहे हैं कि केंद्र सरकार ने कोरोना महामारी से उत्पन्न समस्याओं से जिस तरह निपटने का प्रयास किया,उससे देश के अधिकतर लोग संतुष्ट हैं।
......................................
10-बिहार के उप मुख्य मंत्री सुशील कुमार मोदी ने भी कल कहा कि समय से लाॅकडाउन के कारण देश के लाखों लोगों की जिंदगी बचाई जा सकी।
अमेरिका जैसे देश में एक लाख 7 हजार लोगों की कोरोना से जान गई ,वहीं भारत में अब तक 5829 मौतें हुईं।
............................
11.-और अंत में
...................
विभिन्न देशों में कोरोना महामारी से ग्रस्त लोगों की कुल संख्या बताने
और अन्य देशों के बीच श्रेणीकरण करने का तरीका सही नहीं है।
इस संख्या को इस तरह बताया जाना चाहिए कि प्रति एक लाख की जनसंख्या पर किस देश में कितने लोग कोरोना ग्रस्त हुए।
याद रहे कि अमेरिका की आबादी करीब 33 करोड़ है,तो वहीं भारत की एक अरब 31 करोड़।
..........................................
सुरेंद्र किशोर-4 जून 20
अब भी वक्त है !!
शैली बदलिए !!!
लोकतंत्र में प्रतिपक्ष भी सत्ताधारी
की तरह ही महत्वपूर्ण हैं।
...................................
1.-नोटबंदी सन 2016 के नवंबर में लागू की गई।
......................................
2.-पूर्व वित्त मंत्री पी.चिदंबरम ने कहा कि नोटबंदी
ने देश के 45 करोड़ लोगों की कमर तोड़ दी।
--प्रभात खबर-14 दिसंबर 2016
..........................................
दूसरी ओर, सत्ताधारी दल ने कहा कि कमर किन्हीं और की
टूटी है, गरीबों की नहीं।
..............................
3.-कुछ ही महीनों के बाद उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव हुए।
भाजपा को 403 में से 310 सीटें मिल गईं।
.....................
4.-चिदंबरम के अनुसार यदि गरीबों की कमर टूटी थी तो यू.पी.के
सिर्फ अमीरों ने भाजपा को 310 सीटें दिला दी ?
........................................
5.-दरअसल चिदंबरम व उनके दल के अनेक नेताओं ने जनता से कट
जाने के कारण
नोटबंदी को लेकर गलत धारणा फैलाने की कोशिश की।
यह भी संभव है कि जानबूझ कर उन लोगों ने ऐसा किया।
..........................................
6.-यह कोई इकलौता उदाहरण नहीं रहा।
........................................
7.-भारत सरकार ने जुलाई 2017 में जी.एस.टी.लागू की।
उस पर राहुल गांधी ने कहा कि यह ‘गब्बर सिंह टैक्स’ है।
यानी, यदि उनकी बातें सच होतीं तो व्यापारी वर्ग भाजपा से
सख्त नाराज हो जाते--जिस तरह शोले फिल्म के खूंखार डाकू
गब्बर को देखकर रामपुर
वासी कांप जाते थे।भगदड़ मच जाती थी।
..........................................
8.-पर, न तो ऐसा होना था और न हुआ।
व्यवसाय प्रधान राज्य गुजरात में कुछ ही माह बाद
विधान सभा के चुनाव हुए।
उस चुनाव के बाद भी भाजपा राज्य की सत्ता में बनी रही।
..................................................
9.-लगता है कि तीसरी बार भी प्रतिपक्ष का वैसा ही आकलन आ रहा है ।
यह सच है कि लाॅकडाउन के बाद देश के प्रवासी मजदूरों को अपार कठिनाइयों का सामना करना पड़ा है।
अब राजग विरोधी दलों के कुछ नेतागण मजदूरों की इस विपत्ति में अपने लिए चुनावी भविष्य देख रहे हैं।
लगता है कि पिछली दो बार गलत हो जाने के बावजूद उसी तरह का गलत अनुमान इस बार भी लगाया जा रहा है।यानी उनके अनुसार मजदूर राजग को अगले चुनाव में सबक सिखाएंगे।
........................
इस पर अभी क्या कहा जाए !
प्रतीक्षा कर लेने में क्या नुकसान है !!
चुनावों के नतीजे बता देंगे कि किसका अनुमान सही है।
ताजा सर्वेक्षण के नतीजे तो बता रहे हैं कि केंद्र सरकार ने कोरोना महामारी से उत्पन्न समस्याओं से जिस तरह निपटने का प्रयास किया,उससे देश के अधिकतर लोग संतुष्ट हैं।
......................................
10-बिहार के उप मुख्य मंत्री सुशील कुमार मोदी ने भी कल कहा कि समय से लाॅकडाउन के कारण देश के लाखों लोगों की जिंदगी बचाई जा सकी।
अमेरिका जैसे देश में एक लाख 7 हजार लोगों की कोरोना से जान गई ,वहीं भारत में अब तक 5829 मौतें हुईं।
............................
11.-और अंत में
...................
विभिन्न देशों में कोरोना महामारी से ग्रस्त लोगों की कुल संख्या बताने
और अन्य देशों के बीच श्रेणीकरण करने का तरीका सही नहीं है।
इस संख्या को इस तरह बताया जाना चाहिए कि प्रति एक लाख की जनसंख्या पर किस देश में कितने लोग कोरोना ग्रस्त हुए।
याद रहे कि अमेरिका की आबादी करीब 33 करोड़ है,तो वहीं भारत की एक अरब 31 करोड़।
..........................................
सुरेंद्र किशोर-4 जून 20
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें