सोमवार, 1 जून 2020

1975 के जून में हुई थी देश को झकझोरने वाली कई घटनाएं




सुरेंद्र किशोर
सन् 1975 के जून में देश को झकझोरने वाली एक साथ एक से अधिक घटनाएं हुईं। उतनी बड़ी राजनीतिक घटनाएं कभी किसी एक महीने में इस देश में शायद ही उससे पहले हुई। 

सबसे प्रमुख राजनीतिक घटना 25 और 26 जून के बीच की रात में हुई । उस रात देश में आपातकाल लागू कर दिया गया। एक लाख से अधिक राजनीतिक नेताओं और कार्यकर्ताओं तथा अन्य लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया। उस महीने की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का लोकसभा का चुनाव अदालत ने खारिज कर दिया। किसी प्रधानमंत्री का चुनाव पहली बार खारिज हुआ।आपातकाल उस अदालती निर्णय का परिणाम बताया गया।

उसी महीने गुजरात विधानसभा के चुनाव में कांग्रेस पार्टी हार गयी। 12 जून को एक साथ तीन खबरें आईं। तीनों खबरें प्रधानमंत्री के लिए बुरी थीं। राजदूत डी.पी. धर का निधन, गुजरात में कांग्रेस की हार और इलाहाबाद हाईकोर्ट का प्रतिकूल निर्णय। दिवंगत धर इंदिरा जी के विश्वासपात्र  थे।

चुनाव कराने की मांग पर जोर डालने के लिए उससे पहले 1975 के अप्रैल में मोरारजी देसाई ने नई दिल्ली में अनशन किया था। उनकी मांग प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने मान ली और चुनाव करा दिया गया। याद रहे कि गुजरात में एक साल से चुनाव टाला जा रहा था। वहां राष्ट्रपति शासन था। 9 फरवरी, 1974 तक चिमन भाई पटेल मुख्य थे। चुनाव के बाद जनता मोर्चा के नेता बाबू भाई पटेल मुख्यमंत्री बने।

12 जून 1975 को इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायाधीश जगमोहन लाल सिन्हा ने जब इंदिरा गांधी का चुनाव खारिज कर दिया तो एक बड़े वकील ने टिप्पणी की कि इंदिरा गांधी पर ट्रैफिक रूल्स के उलंघन जैसा कसूर था।

इस निर्णय पर देश में राजनीतिक तहलका मच गया।

याद रहे कि 1971 में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने रायबरेली लोकसभा क्षेत्र में सोशलिस्ट नेता राज नारायण को हराया था। हाईकोर्ट ने चुनाव रद करने के दो कारण बताए थे। एक तो इंदिरा जी की चुनावी सभा के मंच का निर्माण सरकारी साधनों से किया गया था। दूसरा कारण गजटेड अफसर यशपाल कपूर को लेकर बना। अदालत के अनुसार इंदिरा गांधी ने चुनाव में यशपाल कपूर की मदद ली थी। यह साबित हो गया था।

उस निर्णय के बाद प्रधानमंत्री के पक्ष में देश में जहां—तहां नारे लगने लगे, नुक्कड़ सभाएं होने लगीं। उधर जय प्रकाश नारायण तथा प्रतिपक्षी दलों ने इंदिरा गांधी के इस्तीफे की मांग शुरू कर दी। 25 जून को दिल्ली के रामलीला मैदान में इस सवाल पर जयप्रकाश नारायण की बड़ी सभा हुई। इस बीच इंदिरा गांधी ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की। सबसे बड़ी अदालत ने हाईकोर्ट के निर्णय को स्टे कर दिया, पर इंदिरा जी को लोकसभा के किसी मत विभाजन में भाग लेने से रोक दिया। यह प्रधानमंत्री के लिए यह अपमानजनक स्थिति थी।

उन्होंने 25 और 26 जून के बीच की रात में देश में आपातकाल घोषित कर देने की राष्ट्रपति से सिफारिश कर दी और राष्ट्रपति ने इस संबंध में अधिसूचना जारी कर दी। साथ ही जयप्रकाश नारायण सहित देश के करीब एक लाख से अधिक नेताओं और कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार कर लिया। एक साथ इतनी बड़ी संख्या में राजनीतिक कर्मियों की गिरफ्तारी की वह आजाद भारत की पहली घटना थी।

आपातकाल लगाने के बाद प्रधानमंत्री ने राष्ट्र के नाम संदेश में प्रतिपक्षी दलों के बारे में कहा कि ‘......बहुत दिनों से इन घटनाओं को हम अत्यधिक धैर्य से देखते रहे। अब हमें इनके नये कार्यक्रमों का पता चला है जिनसे सारे देश में सामान्य कार्य में बाधा डालने के उद्देय से कानून व व्यवस्था को चुनौती दी गयी है। क्या कोई भी सरकार जो सरकार है, देश के स्थायित्व को ऐसे खतरे में पड़ने दे सकती है? कुछ लोग हमारे सशस्त्र सैनिकों व पुलिस को विद्रोह के लिए उकसाने लगे हैं।’

आपातकाल के साथ प्रेस पर कठोर सेंसरशीप लगा दी गयी। प्रतिपक्ष की राजनीतिक गतिविधियां पूरी तरह ठप हो गयीं। आजाद भारत के लिए यह एक अजूबी घटना थी। किसी नेता के अनशन के दबाव पर किसी विधानसभा का चुनाव हो, वैसी अनूठी घटना भी जून 1975 में गुजरात में  हुई थी।

कोई टिप्पणी नहीं: