पुनरावलोकन
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जेपी की तस्वीर की बात कौन कहे,
विनोबा भावे के अनशन तक की खबर
नहीं छपने दी गई थी असली इमर्जेंसी मंे
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जबकि, विनोबा जी ने दमनकारी आपातकाल को
‘अनुशासन पर्व’ कह कर उसका समर्थन किया था।
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मीडिया की आवाज बंद कर देने के कुछ नमूने यहां प्रस्तुत हैं।
याद रहे ,ये कुछ ही नमूने हैं।
कुलदीप नैयर से लेकर गौर किशोर घोष तक देश के करीब
200 पत्रकार आपातकाल में गिरफ्तार कर लिए गए थे।
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इमरजेंसी --1975-77 --में इंदिरा गांधी गांधी सरकार के प्रेस
इंफाॅर्मेशन ब्यूरो से समय -समय पर मीडिया को कड़े आदेशात्मक
निदेश दिए जाते
रहते थे।
उन निदेशों के कुछ ही नमूने यहां दिए जा रहे हैं।
समाचार जगत उसी के अनुरूप काम करने को बाध्य था।
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25 और 26 जून 1975 के बीच की रात में देश में इमरजेंसी लगी।
जेपी सहित हजारांे नेताओं ,कार्यकत्र्ताओं को पकड़कर जेलों में बंद कर दिया गया।
पर, जेपी तक का चित्र अखबारों में नहीं छपने दिया गया।
तुर्कमान गेट की घटना की खबर नहीं छपी।
मई, 1976 में एक मशहूर भारतीय अभिनेत्री की लंदन में
गिरफ्तारी हुई।
वह डिपार्टमेंटल स्टोर से सामान चुराते पकड़ी गई थी।
उस खबर को यहां छपने से रोक दिया गया।
अभिनेत्री सत्ता की करीबी थी।
गो हत्या पर प्रतिबंध की मांग पर जोर डालने के लिए
विनोबा भावे 11 सितंबर, 1976 से आमरण अनशन करने वाले थे।
शासन के आदेश से इस संबंध में कोई खबर नहीं छपी।
पटना गोली कांड पर खबर नहीं छपने दी गई।
16 जुलाई, 1976 को पी.आई.बी.से अखबारों को यह निदेश मिला कि जयप्रकाश नारायण के कहीं आने -जाने का समाचार न छापा जाए।
बड़ौदा डायनामाइट केस में कोर्ट में जार्ज फर्नांडिस ने बयान दिया था।
उसे भी छपने से रोक दिया गया।
लेकिन उसी केस के मुखबिर का अदालती बयान अखबारों के
पहले पेज पर छपा।
इस तरह घोटा गया था मीडिया का गला।
जो कुछ लोग जब यह कहते हैं कि आज देश में इमर्जेंसी वाली स्थिति है तो उन्हें यह पढ़कर फिर अपनी टिप्पणी देनी चाहिए।
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26 जून 1975
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समाचार एजेंसियों के टेलीप्रिंटरों से सभी नेताओं की गिरफ्तारी के समाचार हटा दिए गए।
जेपी भी गिरफ्तार हुए थे,पर उनका फोटो तक किसी अखबार मंे नहीं छपने दिया गया।
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19 अगस्त 1975
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पी.आई.बी.का निदेश था कि गुजरात में राष्ट्रपति शासन हटाने और कांग्रेस सरकार के गठन से संबधित समाचार-टिप्पणी न छापें।
27 अगस्त 1975
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संसद के बारे में प्रधान मंत्री का वक्तव्य प्रकाशित नहीं किया जाए।
15 सितंबर 1975
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कुलदीप नैयर की याचिका पर दिल्ली हाईकोर्ट
का निर्णय नहीं छापें।
22 नवंबर
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जेल से रिहा जेपी की बंबई यात्रा संबंधी रिपोर्ट सेंसर अधिकारी की स्वीकृति के बाद ही छापें।
जेपी के किसी फोटोग्राफ का इस्तेमाल नहीं करें।
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नोट--इस पोस्ट की अधिकतर सूचनाएं मैंने वरिष्ठ पत्रकार बलबीर दत्त की चर्चित पुस्तक
‘‘इमरजेंसी का कहर और सेंसर का जहर’’
से ली है।
करीब पौने पांच सौ पेज की यह किताब प्रभात प्रकाशन ने छापी है।
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-- सुरेंद्र किशोर-15 जून 20
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जेपी की तस्वीर की बात कौन कहे,
विनोबा भावे के अनशन तक की खबर
नहीं छपने दी गई थी असली इमर्जेंसी मंे
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जबकि, विनोबा जी ने दमनकारी आपातकाल को
‘अनुशासन पर्व’ कह कर उसका समर्थन किया था।
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मीडिया की आवाज बंद कर देने के कुछ नमूने यहां प्रस्तुत हैं।
याद रहे ,ये कुछ ही नमूने हैं।
कुलदीप नैयर से लेकर गौर किशोर घोष तक देश के करीब
200 पत्रकार आपातकाल में गिरफ्तार कर लिए गए थे।
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इमरजेंसी --1975-77 --में इंदिरा गांधी गांधी सरकार के प्रेस
इंफाॅर्मेशन ब्यूरो से समय -समय पर मीडिया को कड़े आदेशात्मक
निदेश दिए जाते
रहते थे।
उन निदेशों के कुछ ही नमूने यहां दिए जा रहे हैं।
समाचार जगत उसी के अनुरूप काम करने को बाध्य था।
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25 और 26 जून 1975 के बीच की रात में देश में इमरजेंसी लगी।
जेपी सहित हजारांे नेताओं ,कार्यकत्र्ताओं को पकड़कर जेलों में बंद कर दिया गया।
पर, जेपी तक का चित्र अखबारों में नहीं छपने दिया गया।
तुर्कमान गेट की घटना की खबर नहीं छपी।
मई, 1976 में एक मशहूर भारतीय अभिनेत्री की लंदन में
गिरफ्तारी हुई।
वह डिपार्टमेंटल स्टोर से सामान चुराते पकड़ी गई थी।
उस खबर को यहां छपने से रोक दिया गया।
अभिनेत्री सत्ता की करीबी थी।
गो हत्या पर प्रतिबंध की मांग पर जोर डालने के लिए
विनोबा भावे 11 सितंबर, 1976 से आमरण अनशन करने वाले थे।
शासन के आदेश से इस संबंध में कोई खबर नहीं छपी।
पटना गोली कांड पर खबर नहीं छपने दी गई।
16 जुलाई, 1976 को पी.आई.बी.से अखबारों को यह निदेश मिला कि जयप्रकाश नारायण के कहीं आने -जाने का समाचार न छापा जाए।
बड़ौदा डायनामाइट केस में कोर्ट में जार्ज फर्नांडिस ने बयान दिया था।
उसे भी छपने से रोक दिया गया।
लेकिन उसी केस के मुखबिर का अदालती बयान अखबारों के
पहले पेज पर छपा।
इस तरह घोटा गया था मीडिया का गला।
जो कुछ लोग जब यह कहते हैं कि आज देश में इमर्जेंसी वाली स्थिति है तो उन्हें यह पढ़कर फिर अपनी टिप्पणी देनी चाहिए।
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26 जून 1975
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समाचार एजेंसियों के टेलीप्रिंटरों से सभी नेताओं की गिरफ्तारी के समाचार हटा दिए गए।
जेपी भी गिरफ्तार हुए थे,पर उनका फोटो तक किसी अखबार मंे नहीं छपने दिया गया।
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19 अगस्त 1975
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पी.आई.बी.का निदेश था कि गुजरात में राष्ट्रपति शासन हटाने और कांग्रेस सरकार के गठन से संबधित समाचार-टिप्पणी न छापें।
27 अगस्त 1975
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संसद के बारे में प्रधान मंत्री का वक्तव्य प्रकाशित नहीं किया जाए।
15 सितंबर 1975
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कुलदीप नैयर की याचिका पर दिल्ली हाईकोर्ट
का निर्णय नहीं छापें।
22 नवंबर
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जेल से रिहा जेपी की बंबई यात्रा संबंधी रिपोर्ट सेंसर अधिकारी की स्वीकृति के बाद ही छापें।
जेपी के किसी फोटोग्राफ का इस्तेमाल नहीं करें।
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नोट--इस पोस्ट की अधिकतर सूचनाएं मैंने वरिष्ठ पत्रकार बलबीर दत्त की चर्चित पुस्तक
‘‘इमरजेंसी का कहर और सेंसर का जहर’’
से ली है।
करीब पौने पांच सौ पेज की यह किताब प्रभात प्रकाशन ने छापी है।
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-- सुरेंद्र किशोर-15 जून 20
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