मंगलवार, 2 जून 2020

दुर्घटनाएं रोकनी हांे तो अल्पवयस्कों को नदियों में अकेले न जाने दें गार्जियन -सुरेंद्र किशोर


यदि कोई अभिभावक अपनी अल्पवयस्क संतान को अपना वाहन
सड़कों पर चलाने के लिए दे देता है।
यदि संतान कोई दुर्घटना कर देती है ।
ता,े अभिभावक को तीन साल की सजा होगी।
सजा के इस प्रावधान के लिए मोटर व्हेकिल एक्ट में 
गत साल संशोधन किया गया।
  यह एक अच्छी खबर है।
 इसके साथ ही एक और कानून की जरूरत है।
स्नान करते समय एक साथ एक से अधिक अल्पवयस्क बच्चांे के नदी या तालाब में डूब जाने की खबरें आती रहती हैं।
आम तौर पर उन मृतकों के साथ उनके परिवार का कोई वरिष्ठ सदस्य उस समय नहीं होता है।
   ऐसे अभिभावकों के लिए भी सजा के प्रावधान की जरूरत है ।आखिर वे  अपनी वैसी संतान को नदियों में नहाने के लिए क्यों छोड़ देते हैं जिन्हें तैरने तक नहीं आता ?
हालांकि कई बार दुर्घटनाएं उनके साथ भी हो जाती हंै जिन्हें तैरने आता है।
  मान लिया कि कहीं ऐसी घटना हो गई ।
अब वहीं अनुपस्थित अभिभावकगण, जिन्होंने उन बच्चों को कुछ ही समय पहले तक भी कुछ भी करने के लिए छोड़ दिया था,घटना के बाद लाठी-डंडे के साथ पास की व्यस्त सड़क पर उतर जाते हैं।
वाहनों में तोड़फोड़ और हिंसा करने लगते हैं।
रोड जाम कर देते हैं।
राहगीरों की पिटाई करने लगते हैं।
सरकार से मुआवजा मांगने लगते हैं।
 ऐसा जागरूकता की कमी के कारण होता है।
वैसे लोगों में कानून का भय नहीं होता।
  यदि उन अभिभावकों के लिए भी कुछ सजा का प्रावधान हो
जाए तो शायद कुछ फर्क आएगा।  
   --ब्रिटेन में शरण लेने की कोशिश में माल्या--
 प्रत्यर्पण रोकने में जब लंदन कोर्ट ने मदद नहीं की तो विजय माल्या
अब ब्रिटेन में शरण लेने की कोशिश में हैं।
जानकार सूत्रों के अनुसार यदि शरण नहीं मिली तो वह ट्रिब्यूनल में
अपील कर सकते हैं।
उस प्रक्रिया में करीब 18 माह लग सकते हैं।
इससे पहले वे पिछले कुछ साल से लंदन की अदालतों में अपने भारत प्रत्यर्पण को रोकने की कोशिश करते रहे।
पर उन अदालतों ने उन्हें कोई मदद नहीं की।
इधर भारत सरकार उनकी किसी भी कीमत पर स्वदेश
 वापसी कराने 
पर अमादा है।
 उन पर भारतीय बैंकों का करीब 9 हजार करोड़ रुपए बाकी हैं।
 वे इस देश से भाग कर लंदन जा चुके हैं।
 ब्रिटिश सरकार ने किसी विदेशी को शरण देने की जो शत्र्त
रखी है,उनके दायरे में आर्थिक अपराधी नहीं आता।
हां,जाति या धर्म के आधार पर अपने देश में जिसका उत्पीड़न हो रहा हो,उसे वहां शरण दी जा सकती है।
शरण की कुछ अन्य शत्र्तें हैं जो संभवतः माल्या पूरी नहीं करते।
--माॅल से अलग होंगे रेस्त्रां !--
समस्या नई है तो समाधान भी नए ढंग से ही करना होगा।
करीब 20 साल पहले रेस्त्रां ने सड़कों से उठकर माॅल में अपनी जगह बनानी शुरू की।अब तो वैसे रेस्त्रां की संख्या काफी बढ़ चुकी है।
अच्छा-खासा धंधा भी हुआ।
पर कोरोना महामारी ने वहां भी बदलाव की नौबत ला दी है।
दरअसल लगता है कि लाॅकडाउन में माॅल सबसे बाद खुलेंगे।
अभी तो माॅल के साथ के रेस्त्रां भी बंद ही हैं।
  यदि रेस्त्रां एक बार फिर माॅल से निकल कर सड़कों के किनारे आ जाएं तो कैसा रहेगा ?
रेस्त्रां वाले समझ रहे हैं कि उससे वे फायदे में रहेंगे।
--पुण्य तिथि पर चरण सिंह की याद--
चैधरी चरण सिंह कहा करते थे कि यदि उद्योग को बढ़ावा देना हो तो पहले कृषि को बढ़ावा दो।
क्योंकि देश की देश की अधिकतर आबादी यानी कृषकों की आय जब तक नहीं बढ़ेगी, तब तक करखनिया माल खरीदेगा कौन ?
नहीं खरीदेगा तो कारखाने चलेंगे कैसे ?
  चरण सिंह इस बात के लिए कांग्रेस सरकार की आलोचना किया करते थे कि आजादी के बाद सरकार ने खेती की उपेक्षा की और उद्योगों को बढ़ावा दिया।
यह नीति देश के लिए अहितकारी साबित हुई।
यह अच्छी बात है कि कोरोना महामारी की पृष्ठभूमि में केंद्र सरकार ने 
कृषि क्षेत्र के लिए एक समग्र नीति पेश की है।
यदि चरण सिंह आज हमारे बीच होते तो संभवतः उन्हें अच्छा लगता।
पूर्व प्रधान मंत्री चरण सिंह खुद को किसान नेता कहलाना पसंद करते थे,न कि जाट नेता।
वे चाहते थे कि किसानों के परिवारों के सदस्यों को सरकारी नौकरियों में आरक्षण मिले। 
वे अपने मतदाताओं से सार्वजनिक तौर पर यह अपील करते थे कि
यदि जाट होने के कारण मुझे वोट दे रहे हो तो मत देना।
  चरण सिंह ने 1954 में प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू को पत्र लिख कर एक सलाह दी थी।
उन्होंने लिखा था कि गजटेड नौकरियां पाने वालों के लिए अंतरजातीय शादियां जरूरी कर दी जानी चाहिए।
वे सहकारी खेती के खिलाफ थे।
      -- और अंत में--
कोरोना महामारी ने हमारे देश में सेवा क्षेत्र और ढांचागत विकास
की कमजोरियों को एक बार फिर उजागर कर दिया है।
उम्मीद है कि इस विपदा से निकलने के बाद हमारे छोटे-बड़े 
हुक्मरान बुनियादी क्षेत्रों के विकास पर अधिक ध्यान देंगे।
दे भी रहे हैं।
वैसे तो कोरोना जैसे राक्षस से मुकाबले में दुनिया के विकसित
देश भी हांफ रहे हैं।
पर हमें तो अभी अनेक बुनियादी काम भी करने हैं।
यानी,कड़ाई से टैक्स वसूलिए और 
उन पैसों से गुणवत्तापूर्ण बुनियादी ढांचा तैयार कीजिए।   
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कानोंकान-प्रभात खबर,पटना -29 मई 2020


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