सोमवार, 15 जून 2020

  सुशांत सिंह राजपूत की आत्म हत्या
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 सुशांत की आत्म हत्या के बाद मेरी अपनी एक 
व्यथा याद आ गई।
कई साल पहले की बात है।
मुझे कुछ समय के लिए यह लगा था कि आत्म 
हत्या के अलावा मेरे 
पास कोई अन्य उपाय नहीं बचा है।
किंतु, फिर मैंने पुनर्विचार किया।
सोचा कि मैं तो इस तरह अपनी पीड़ा से मुक्त हो जाउंगा,
पर उनका क्या होगा जो मुझ पर निर्भर हैं।
या फिर मेरी ओर उम्मीद भरी नजरों से देखते हैं।
मेरी पत्नी,मेरे बच्चे और कुछ अन्य !
  पर संयोग देखिए ! 
कुछ ही समय के बाद मेरी पीड़ा
 को दूर करने वाला मनुष्य के रूप में एक देवदूत मुझे 
मिल गया।
उसने मेरी समस्या दूर कर दी।
यदि मैं अपना संस्मरण लिख सका तो उस 
देवदूत का नाम भी लिख दूंगा।
उस व्यक्ति को भी अब तक नहीं मालूम कि उसने मेरी कितनी 
बड़ी मदद कर दी थी।
  खैर, सुशांत ने अपने निर्णय पर मेरी ही तरह पुनर्विचार किया 
होता तो शायद उसे भी कोई देवदूत मिल जाता जो उसकी समस्या हल  देता।
मुझे  फिल्में देखने का अब समय नहीं मिलता।
इसलिए सुशांत के महत्व को मैं पहले से नहीं जानता था।
पर, आज के अखबारों
 मंे सुशांत सिंह राजपूत पर भारी कवरेज को देखकर 
उसके महत्व का पता चला।
  मुझ पर आंसू बहाने वाले तो मुख्यतः मेरे परिवार के लोग होते,
पर सुशांत के परिवार के अलावा उसके इतने सारे फैन भी हैं।
   काश ! आखिरी कदम उठाने से पहले उसने पुनर्विचार 
कर लिया होता।
उन लोगों का उसे ध्यान रखना था जिन्होंने उसमें 
अपार भावनात्मक निवेश कर रखा है !
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-- सुरेंद्र किशोर --15 जून 20

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