बुधवार, 24 जून 2020


जमीन की उपलब्धता के बाद बिहार में उद्योग 
के विकास की उम्मीद-सुरेंद्र किशोर
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बिहार सरकार उद्योग के लिए राज्य में एक हजार एकड़ जमीन उपलब्ध कराने को तैयार है।
  मुख्य मंत्री नीतीश कुमार ने बुधवार को प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी से आग्रह किया कि यदि केंद्र सरकार उद्योग स्थापित करने में मदद करे तो जमीन की संमस्या नहीं रहेगी।
मुख्य मंत्री की इस पहले से बिहार के लिए एक ठोस संभावना बनती है।
इस बीच यह खबर आई है कि करीब एक हजार उद्योग चीन से निकल भारत में आ सकते हैं।
 यदि वैसा नहीं भी हो तो भी कंेद्र सरकार की मदद से बिहार में उद्योग बढ़ सकते हैं।
  कृषि पर आधारित उद्योग की यहां बड़ी संभावना है।
 इस पिछड़े राज्य में हाल के वर्षों में बिजली और सड़क की सुविधाएं काफी बढ़ी है।
कानून-व्यवस्था की स्थिति पहले से काफी बेहतर है।
पर उस दिशा में कुछ और काम करने की जरूरत होगी।
 उद्योगपतियों की राह सुगम बनाने के लिए नौकरशाही स्तर पर कुछ 
अधिक काम करने की जरूरत पड़ेगी।
 एक जानकार व्यक्ति के अनुसार बिहार में 2011 में बनी उद्योग नीति के कारण  करीब सौ उद्योग लगे थे।
किंतु 2016 की उद्योग नीति के कारण बाधाएं आ रही हैं।
  इस संबंध में असल समस्या कहां है ?
यह तो सरकार और उद्यमियों के बीच की बात है।
जो हो,मुख्य मंत्री की ताजा पहल से एक आशा बंधी है।
         --कब दूर होगी सड़कों पर
         ओवरटेक की समस्या--
   पटना  के पास गंगा नदी पर गांधी सेतु के समानांतर एक 
पुल प्रस्तावित है।
इसके निर्माण का काम जल्द ही शुरू होने वाला है।
मौजूदा गांधी सेतु के एक लेन के पुनर्निर्माण का काम लगभग पूरा हो रहा है।
  दूसरे लेन के पुनर्निर्माण का काम उसके बाद शुरू होने वाला है।
पर, कई लोगों की मांग है कि गांधी सेतु के पास प्रस्तावित समानांतर पुल का निर्माण हो जाने के बाद ही गांधी सेतु के दूसरे लेन के पुनर्निर्माण का काम शुरू किया जाना चाहिए।
अन्यथा  पुल जाम की समस्या निंरतर बनी रहेगी।
  सरसरी नजर से यह मांग  उचित लग रही है।
 इस मांग को पूरा करने में यदि कोई तकनीकी कठिनाई नहीं हो तो उस पर विचार किया जाना चाहिए।
पर दिक्कत यह है कि जिस निर्माण एजेंसी ने एक बार काम शुरू कर दिया है,
उसे फिर तीन-चार  साल के बाद बुलाना अव्यावहारिक लगता है।
इस बीच खर्च भी काफी बढ़ जाएगा।
हां,यदि दूसरे लेन पर काम शुरू कराना जरूरी हो तो पहले लेन में भारी व कारगर पुलिस तैनाती की जरूरत पड़ेगी।
ट्राफिक पुलिसकर्मी वाहनों को ओवरटेक करने से कड़ाई से रोकें।
साथ ही अधिक पुरानी व जर्जर  गाड़ियों को गंगा पुल से नहीं गुजरने दिया जाना चाहिए।तभी जाम की समस्या कम होगी।

 --नगर पंचायतों में भी बसते हैं किसान--
जानकार लोगों के अनुसार बिहार में ‘मुख्य मंत्री फसल सहायता योजना’ का लाभ नगर पंचायतों के निवासियों को नहीं मिल रहा है।
हालांकि नगर पंचायतों के किसानों को प्रधान मंत्री किसान सम्मान योजना की राशि मिल रही है।
नगर पंचायतों में रहने वाले लोगों के पास भी कृषि योग्य जमीन है।
वे खेती भी करते हैं।
वे उस जमीन को कृषि भूमि मानकर ही मालगुजारी भी देते हैं।
फिर उन्हें फसल
सहायता योजना का लाभ क्यों नहीं ?
याद रहे कि राज्य में 86 से नगर पंचायतें हैं। 
--भूली-बिसरी याद-- 
बिहार के प्रमुख सी.पी.आई.नेता दिवंगत राज कुमार पूर्वे ने अपनी संस्मरणात्मक पुस्तक ‘स्मृति शेष’ में 1962 के चीनी हमले का जिक्र किया है।
स्वतंत्रता सेनानी व सी.पी.आई.विधायक दल के नेता रहे राज कुमार पूर्वे के अनुसार, ‘‘चीन ने भारत पर 1962 में आक्रमण कर दिया।
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ने आक्रमण का विरोध किया।
पार्टी में बहस होने लगी।
कुछ नेताओं का कहना था कि चीनी हमला हमें पूंजीवादी सरकार से मुक्त कराने के लिए है।
दूसरों का कहना था कि माक्र्सवाद हमें यही सिखाता है कि क्रांति का आयात नहीं होता।
देश की जनता खुद अपने संघर्ष से पूंजीवादी व्यवस्था और सरकार से अपने देश को मुक्त करा सकती है।
पार्टी  के अंदर एक वर्ष से कुछ ज्यादा दिनों तक इस पर बहस चलती रही।
यानी लिबरेशन या एग्रेशन का ?
इसी कारण कम्युनिस्ट पार्टी, जो राष्ट्रीय धारा के साथ आगे बढ़ रही थी और विकास कर रही थी, पिछड़ गयी।
 देश पर चीनी आक्रमण से लोगों में रोष था।
यह स्वाभाविक था ,देशभक्त ,राष्ट्रभक्त की सच्ची भावना थी।
यह हमारे खिलाफ पड़ गया।
कई जगह पर हमारे राजनीतिक विरोधियों ने लोगों को 
संगठित कर हमारे आॅफिसों और नेताओं पर हमला भी किया।
हमें चीनी दलाल कहा गया।
आखिर में उस समय 101 सदस्यों की केंद्रीय कमेटी में से 
31 सदस्य पार्टी से 1964 में निकल गए।
उन्होंने अपनी पार्टी का नाम भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी/माक्र्सवादी /रखा।
सिर्फ भारत में ही नहीं,कम्युनिस्ट पार्टी के इस अंतर्राष्ट्रीय फूट ने पूरे विश्व में पार्टी के बढ़ाव को रोका और अनेक देशों की कम्युनिस्ट पार्टियों में फूट पड़ गयी।
    --और अंत में-- 
 आंतरिक, बाह्य या दोनों तरह के खतरों से निपटने के लिए स्वस्थ व ठोस आर्थिक व्यवस्था जरूरी है।
यह बात किसी व्यक्ति पर भी लागू होती है और किसी देश पर भी।
  फिजूलखर्ची और भ्रष्टाचार को कम करके काफी हद तक बेहतरी हासिल 
की जा सकती है।
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कानोंकान,प्रभात खबर,पटना-19 जून 20

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