वेबसाइट मनी कंट्रोल हिन्दी पर 15 मई 23 को प्रकाशित
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मोहम्मद अली जिन्ना ने संविधान सभाइयों से कहा
था कि वे देश की कानून-व्यवस्था को प्राथमिकता दंे
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सुरेंद्र किशोर
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नए देश पाकिस्तान की संविधान सभा के सदस्यों से
पाकिस्तान के निर्माता मोहम्मद अली जिन्ना ने
कहा था कि ‘‘किसी भी सरकार का पहला कत्र्तव्य कानून-व्यवस्था बनाये रखना है।
क्योंकि राज्य के द्वारा रियाया के जीवन ,संपत्ति और धार्मिक आस्था को पूरी तरह संरक्षित किया जाना जरूरी है।’’
उन्होंने यह भी कहा था कि भ्रष्टाचार व रिश्वतखोरी सबसे बड़े अभिशाप हंै जिन्हें अविभाजित भारत भुगतता रहा है।
दूसरे देशांे में भी ये बुराइयां हैं,पर हमारी हालत ज्यादा बदतर है।ये सचमुच जहर हैं। हमें इनसे कठोर हाथों से निपटना चाहिए।मैं यह उम्मीद करता हूं कि इस सभा के सदस्यों के लिए जितना जल्दी संभव हो सके,आप इस दिशा में समुचित कदम उठाएंगे।’’
यदि जिन्ना परलोक से आज के अस्तव्यस्त पाकिस्तान को देख रहे होंगे तो क्या सोच रहे होंगे ?
यही कि ‘‘हमारे देश के हुक्मरानों ने हमारी कल्पना के देश को बर्बाद कर रखा है।’’
आज वास्तव में पाकिस्तान के हालात बेकाबू हो रहे हैं।
जैसा इससे पहले कभी नहीं हुआ,वह सब आज हो रहा है।
पड़ोसी देश होने के कारण भारत का भी चिंतित होना स्वाभाविक है।पर,आज पाकिस्तान में जिन्ना को कोई याद नहीं कर रहा है।वहां अतिवादी हावी हो रहे हैं।
ऐसे में जिन्ना को याद करना मौजू होगा।
जिन्ना ने कालाबाजारियों के खिलाफ भी देशवासियों को चेताया था।
उन्होंने कहा था कि ‘‘यह दूसरा अभिशाप है।
मैं जानता हूं कि कालाबाजारिये बार -बार पकड़े जाते हैं। दंडित किए जाते हैं।न्यायिक सजाएं सुनाई जाती हैं।या कभी -कभी जुर्माने भी किए जाते हैं।इस राक्षस से अब आपको निबटना है।’’
मिस्टर जिन्ना ने भ्रष्टाचार के साथ -साथ भाई भतीजावाद से भी दूर रहने की सलाह दी थी।
इधर आजादी के तत्काल बाद भारत के प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू ने भी कहा था कि कालाबाजारियों को करीब के लैम्पपोस्ट से लटका दिया जाना चाहिए।
यानी, आजादी के बाद दोनों देशों के नेताओं ने जिन समस्याओं पर चिंता प्रकट की थी,दुर्भाग्य है कि वे समस्याएं आज तक हल नहीं हुईं।कमोबेश मौजूद हैं।
अफसोसनाक बात यह है कि आजादी के इतने साल बाद भी हिंदुस्तान व पाकिस्तान के काला बाजारिए व भ्रष्ट तत्व आज नेहरू और जिन्ना की इन बातों को मुंह चिढ़ा रहे हैं।
वैसे भारत की अपेक्षा पाकिस्तान के हालात बहुत अधिक खराब हो चुके हैं।खराब होते जा रहे हैं।
पाकिस्तान में तो राजनीतिक अनिश्चितता का दौर भी चल रहा है।उसे अराजकता भी कह सकते हैं।हालांकि भारत की हालत बेहतर है।हाल के वर्षों में तो भारत में हालात और अधिक बेहतर हो रहे हंै।
नेहरू के अलावा भी भारत के कई स्वतंत्रता सेनानियों की इस संबंध में चेतावनियांे व नसीहतों को तो हम कई बार पढ़ चुके हैं।पाकिस्तान की संविधान सभा में जिन्ना के भाषण को उधृत करके भाजपा नेता एल.के.आडवाणी कभी राजनीतिक मुसीबत में फंस चुके थे।
जसवंत सिंह ने अपनी चर्चित पुस्तक ‘जिन्ना भारत विभाजन के आईने में ’ में इसे प्रकाशित किया है।जिन्ना ने अपने देश के संविधान निर्माताओं से यह भी कहा था कि उन्हें संविधान बनाते समय किन -किन बातों का ध्यान रखना चाहिए। 11 अगस्त 1947 को मिस्टर जिन्ना ने कहा कि ‘आप आजाद हैं।आप पाकिस्तान देश में अपने मंदिरों में जाने के लिए आजाद हैं ।
आप अपनी मस्जिदों में या फिर अपने किसी अन्य धर्मस्थल में जाने के लिए आजाद हैं।आप किसी भी धर्म,जाति या नस्ल के हो सकते हैं ।उसका देश के काम काज से कोई लेना देना नहीं हैं।
जिन्ना ने यह भी कहा कि ‘ मैं सोचता हूं कि हम इसे आदर्श की तरह सामने रखें और आप पाएंगे कि कालांतर में हिंदू ,हिंदू नहीं रहेंगे और मुसलमान ,मुसलमान नहीं रहेंगे।यह बात मैं किसी धार्मिक बोध के संदर्भ में नहीं कह रहा हूं। क्योंकि वह हर आदमी की व्यक्तिगत आस्था है,बल्कि इस देश के नागरिकों के राजनीतिक बोध की दृष्टि से कह रहा हूं।’
आडवाणी ने अपनी पाकिस्तान यात्रा में संभवतः पाकिस्तानवासियों को यही याद दिलाई थी कि वे देखें कि कायदे आजम की इस इच्छा का कितना पालन हो रहा है !
वैसे कायदे आजम की यह इच्छा अत्यंत आदर्श भरी इच्छा ही थी।क्योंकि धर्म के आधार पर निर्मित किसी देश के हुक्मरानों से जिन्ना कुछ अधिक ही उम्मीद कर रहे
थे।
मोहम्मद अली जिन्ना का 11 सितंबर 1948 को निधन हो गया।इसलिए दुनिया यह नहीं देख सकी कि वे अपने देश के हुक्मरानों से अपनी इन इच्छाओं को लागू करा पाते है या नहीं।इधर गांधी भी 1948 में नहीं रहे।जवाहर लाल नेहरू भी कालाबाजारियों को नजदीक के लैम्प पोस्ट से नहीं लटकवा सके।
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15 मई 23
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