याद कीजिए लोहिया-प्रायेजित रामायण मेला
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सुरेंद्र किशोर
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जितने लोग ‘‘बागेश्वर बाबा’ को देखने-सुनने गए थे,जरूरी नहीं कि वे सब के सब भाजपा के ही वोटर हैं।
भक्त और वोटर में फर्क करना चाहिए।
किंतु यदि कुछ राजनीतिक दलों ने धीरेंद्र शास्त्री को अपमानित करना जारी रखा,तो कुछ ‘भक्त’ प्रतिक्रियास्वरूप भाजपा के वोटर भी बन जा सकते हैं।
कर्नाटका चुनाव के लिए मतदान से पहले एक कांग्रेस नेता ने कहा था कि हम पी.एफ.आई.और बजरंग दल दोनों पर प्रतिबंध लगाएंगे।
हालांकि पी.एफ.आई.पर प्रतिबंध पहले ही लग चुका है।
यानी कांग्रेसी होशियार निकले।
उन्होंने एक तरह से संतुलन बनाया,नकली ही सही।
पर, बिहार के जो नेता कभी भूल कर भी पी.एफ.आई.शब्द का उच्चारण तक नहीं करते वे भी ‘बाबा’ पर अभूतपूर्व ढंग से आक्रामक हैं।इतने आक्रामक क्यों हैं,यह बात छिपी हुई नहीं है।
धीरेंद्र बाबा के लिए जुटी भीड़ भी अभूतपूर्व रही है और किसी अन्य बाबा पर इतना अधिक आक्रमण इससे पहले कभी नहीं हुआ।
अरे भाई, जिस उद्देश्य से आप आक्रामक हंै,उस उद्देश्य की पूत्र्ति स्वयंमेव होने ही वाली है।
कर्नाटका की तरह बिहार में भी अगले चुनाव में अल्पसंख्यक वोट एक ही दल यानी सिर्फ महा गठबंधन को ही मिलने की पूरी उम्मीद है।
फिर अकारण बागेश्वर बाबा के कुछ भक्तों को भाजपा खेमे में क्यों ढकेल रहे हो ?
क्योंकि लोगबाग देख रहे हैं कि आप सिर्फ बहुसंख्यक साप्रदायिकता के खिलाफ बोलते हैं,अल्पसंख्यक साम्प्रदायिकता के खिलाफ कततई नहीं।
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आजादी के बाद जब डा.राममनोहर लोहिया देश को गरमाने
के लिए निकले तो उन्हें एक बात देखकर अजीब लगा।
वह यह कि रामलीला में तो बड़ी संख्या में लोग जुटते हैं किंतु हमारी सभाओं में कम ही लोग आते हैं।
संभवतः उसी के बाद उन्हंे ‘रामायण मेला’ लगवाने का आइडिया आया।लगवाया भी।
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सत्तर के दशक में बिहार माकपा के एक प्रमुख नेता तकी रहीम से मैं यदाकदा मिलता रहता था।
उन्होंने एक संस्मरण सुनाया।
उन्होंने कहा कि मैं पटना के पास के एक राजपूत बहुल गांव में पार्टी के प्रचार के लिए गया था।
मैंने राजपूतों की बैठकी में कहा कि कम्युनिस्ट और क्षत्रिय एक ही समान हैं।
क्षत्रिय जो वचन देता है,उस पर कायम रहता है।
वचन को पूरा करने के लिए वह कभी -कभी बल प्रयोग भी करता है।
सोवियत संघ के कम्युनिस्टों ने वहां की जनता को वचन दिया कि हम साम्यवाद लाएंगे।
कम्युनिस्टों ने उसके लिए बल प्रयोग भी किया।’’
तकी साहब बोले कि अपनी शौर्य गाथा सुनकर उस गांव के कुछ राजपूत हमारे दल के प्रभाव में आ गए।
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17 मई 23
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