कर्पूरी ठाकुर बनाम अरविंद केजरीवाल
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किसे किस रूप में याद करेगा इतिहास ?!
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सुरेंद्र किशोर
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इन दिनों दिल्ली के मुख्य मंत्री अरविंद केजरीवाल के ‘‘45 करोड़ी शीश महल’’ की जोरदार चर्चा है।
(वैसे इस मामले में केजरीवाल इस गरीब देश में अकेले नहीं हैं।
पर, उन्होंने हद जरूर कर दी है।
जिस देश के अनेक सरकारी अस्पतालों में डिटाॅल और रूई तक उपलब्ध नहीं हैं।
जहां के अनेक सरकारी स्कूलों में बच्चों के लिए शिक्षक,भवन, बेंच और ब्लैक बोर्ड नहीं है,वहां के अनेक सत्तधारी नेतागण मध्य युगीन ऐयाश राजाओं व बादशाहों की तरह व्यवहार करें तो यह लोकतंत्र कब तक चल पाएगा ?)
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इस पृष्ठभूमि में मुझे अविभाजित बिहार के मुख्य मंत्री कर्पूरी ठाकुर की याद आ गई।
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कर्पूरी जी जिस झोपड़ी में पैदा हुए,अपने बाल-बच्चों के लिए वही झोपड़ी छोड़ गए।
समस्तीपुर जिले के पितौझिया गांव
कर्पूरी जी के न रहने के बाद हेमवतीनन्दन बहुगुणा गए थे।
उस झोपड़ी को देखा तो बहुगुणा जी की आंखों में आंसू आ गए थे।
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अब कर्पूरी ठाकुर के कुत्र्ता फंड की कहानी भी पढ़ लीजिए
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सन 1977 में मुख्य मंत्री बनने के बाद की यह कहानी है।
उससे पहले वे सन 1967 में उप मुख्य मंत्री और सन 1970 में मुख्य मंत्री रह चुके थे।
कर्पूरी जी 1952 से लगातार किसी न किसी सदन के सदस्य रहे।
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जयप्रकाश नारायण के पटना स्थित आवास पर जेपी का जन्म दिन मनाया जा रहा था।
उस अवसर पर देश भर के जनता पार्टी के बड़े -बड़े नेतागण जुटे थे।
मुख्य मंत्री कर्पूरी ठाकुर भी वहां पहुंचे।
उनका कुत्र्ता थोड़ा फटा हुआ था।
चप्पल की स्थिति भी ठीक नहीं थी।
दाढ़ी बढ़ी हुई थी।
और बाल बिखरे हुए थे ।
क्योंकि कंघी शायद ही वे फेरते थे।
धोती थोड़ा ऊपर करके कर्पूरी जी पहनते थे।
यानी, देहाती दुनिया के सच्चे प्रतिनिधि।
कर्पूरी जी की ‘फटेहाली देख कर’ एक नेता ने कहा कि
‘‘भई किसी मुख्य मंत्री के गुजारे के लिए उसे न्यूनत्तम कितनी तनख्वाह मिलनी चाहिए ?वह तनख्वाह कर्पूरी जी को मिल रही है या नहीं ?’’
इस टिप्पणी के बाद जनता पार्टी के तत्कालीन अध्यक्ष चंद्रशेखर उठ खडे़ हुए।
वे बड़े नाटकीय ढंग से अपने कुत्र्ते के अगले हिस्से के दो छोरों को दोनों हाथों ंसे पकड़कर खड़े हो गये।
वे वहां उपस्थित नेताओं के सामने बारी -बारी से जा -जाकर वे कहने लगे,
‘‘आपलोग कर्पूरी जी के कुत्र्ता फंड में चंदा दीजिए।’’
चंदा मिलने लगा।
कुछ सौ रुपये तुरंत एकत्र हो गये।
उन रुपयों को चंद्रशेखर जी ने कर्पूरी जी के पास जाकर उन्हें समर्पित कर दिया और उनसे आग्रह किया कि आप इन पैसों से कुत्र्ता ही बनवाइएगा।
कोई और काम मत कीजिएगा।
कर्पूरी जी ने मुस्कराते हुए उसे स्वीकार कर लिया और कहा कि ‘‘इसे मैं मुख्य मंत्री रिलीफ फंड में जमा करा दूंगा।’’
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27 अप्रैल 23.
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