मंगलवार, 9 मई 2023

 कानोंकान

सुरेंद्र किशोर

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सर्वदलीय बैठक के सर्वसम्मत निर्णय के बावजूद बाद में उसी फैसले का विरोध !

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गत साल 2 जून को बिहार सरकार ने तय किया कि राज्य में जाति आधारित गणना कराई जाएगी।

उससे एक दिन पहले सर्वदलीय बैठक में ऐसा करने का निर्णय हुआ था।

पर,इस 4 मई को ऐसी गणना पर पटना हाईकोर्ट ने अस्थायी रोक

लगा दी तो कुछ राजनीतिक नेताओं के स्वर बदल गए।

कुछ नेताओं के परोक्ष कटाक्षों और परस्पर विरोधी बयानों से यह लगता है कि कुछ दलों व नेताओं के लिए सर्वदलीय फैसलों का भी कोई मतलब नहीं है।

  ऐसे ही राजनीतिक प्रकरणांे से राजनीति की साख घटती है।

वैसे पटना हाईकोर्ट ने एक बुनियादी सवाल उठाया है।

वह यह कि राज्य सरकार को ऐसा करने का अधिकार नहीं है।

यानी, यह अधिकार सिर्फ केंद्र सरकार का है।

यानी यह मामला अब सुप्रीम कोर्ट तक जाएगा।सुप्रीम कोर्ट अब जो फैसला करे।

  उससे पहले केंद्र सरकार यह कह चुकी है कि हम जाति आधारित गणना नहीं कराएंगे।

यदि राज्य सरकार चाहे तो करा सकती है।दरअसल आरक्षण का मामला जब अदालतों में जाता है तो कई बार अदालतें पूछती है कि किन आंकड़ों के आधार पर यह इतना आरक्षण हुआ है।कुछ सरकारें भी चाहती हैं कि पूरे समाज के समरूप विकास के लिए पहले इस बात का पता लगा लिया जाए कि कौन सा समूह अब भी पिछड़ा हुआ है।गणनाओं के आंकड़े विशेष मदद का आधार बताएंगे।फिर पिछड़ गए लोगों का विकास करके पूरे समाज का समरूप विकास किया जा सकेगा। 

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अजब-गजब राजनीति 

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 पहले राजी और बाद में बेराजी हो जाने की कुछ दलों की पुरानी आदत रही है।

ऐसा ही एक प्रकरण सन 1999 में देश के सामने आया था।

 आतंकवादियों ने इंडियन एयरलाइंस के विमान का अपहरण कर लिया।उसे वे कंधार ले गए जिसमें 152 यात्री थे।

आतंकी मसूद अजहर तथा कुछ अन्य को जेल से छोड़ने की मांग करने लगे। 27 दिसंबर, 1999 को प्रधान मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने सर्वदलीय बैठक बुलाई।

बैठक में यह सहमति बनी कि बंधक यात्रियों को ‘‘किसी भी कीमत पर’’ सरकार छुडव़ाए।

केंद्रीय मंत्री जसवंत सिंह मसूद अजहर तथा अन्य को लेकर कंधार गए।बंधकों को छुड़वाया।पर,इधर प्रतिपक्षी दलों के नेतागण सरकार की इस बात को लेकर बाद में आलोचना करने लगे कि मसूद अजहर को लेकर मंत्री कंधार क्यों गए ?

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घर से मतदान

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कर्नाटका विधान सभा चुनाव में एक बड़ी बात हो रही है।

80 साल से अधिक उम्र के मतदातागण पोस्टल बैलेट के जरिए अपने घरों से ही मतदान कर रहे हैं।यह सुविधा किसी भी उम्र के दिव्यांगों को भी मिल रही है।

ऐसी सुविधा का लाभ बाद के चुनावों में देश भर के मतदाता उठाएंगे।

इससे बड़ी बात यह भी होगी कि मतदान का प्रतिशत थोड़ा बढ़ जाएगा।

यदि यह सुविधा अन्य आयु वर्ग के लोगों को भी मिलने लगे तो मतदान का प्रतिशत और भी बढ़ेगा।

 हां,इस संबंध में यहां एक सलाह दी जा 

सकती है।

दरअसल नगरों के उच्च वर्ग और उच्च मध्यम वर्ग के अनेक मतदातागण मतदान के दिन अपने घरों में आराम करते हैं।वे मतदान केंद्रों पर नहीं जाते।यदि उनसे कुछ शुल्क लेकर उनके लिए भी ऐसी सुविधा का प्रावधान हो जाए तो मतदान का प्रतिशत और बढे़गा। 

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भूली -बिसरी यादें

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पूर्व प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी ने 2 सितंबर 1977 को सुमित्रानंदन पंत को लिखा कि ‘‘श्री पी.डी.टंडन से यह सुनकर आश्चर्य हुआ कि आपने मुझे लिखा और मैंने उस पत्र का उत्तर नहीं दिया।

मेरी कोशिश हमेशा रही है कि प्रत्येक पत्र जो मुझ तक पहुंचे ,उसका जवाब स्वयं दूं।

फिर आप जैसे प्रसिद्ध उच्च कोटि के कवि की कैसे उपेक्षा करती ?

हार के बाद बहुत सारे पत्र और तार आये।

 उसी समय घर बदलना था और दफ्तर वाले सब चल दिये।

तो हो सकता है कि डाक में कुछ गड़बड़ी हो और आपका पत्र मेरे पास पहुंच न पाया हो।

   आपका स्नेह और सद्भावना भरा पत्र मेरे लिए विशेष ही मूल्यवान 

था।

आपका पत्र आप जैसे श्रेष्ठ कवियों के साथ काव्य शास्त्र विनोद में बीते हुए समय की भी याद दिलाता।

दुर्भाग्य की बात है ,पत्र खो गया।

शुभ कामनाओं के साथ इंदिरा गांधी।’’

इस पत्र को यहां पेश करने का उद्देश्य यह है कि लोग जानें कि एक शीर्ष साहित्यकार के बारे में एक शीर्ष नेत्री की कैसी राय थी।  

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और अंत में

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कर्नाटका के पूर्व मुख्य मंत्री जगदीश शेट्टार ने भाजपा क्यों छोड़ी ?

भाजपा से उनकी शिकायत रही कि पार्टी, लिंगायतों के बीच से दल के लिए नया काॅडर तैयार कर रही थी।

ऐसी शिकायत इस देश के अन्य राज्यों के अनेक नेताओं की भी अपने नेतृत्व से रही है।

ऐसे नेतागण दल को तालाब के पानी के रूप में देखते हैं।दूसरी ओर विकासशील दलों के नेता अपने दल को अविरल जल वाली नदी बनाना चाहते हैं।

याद रहे कि शेट्टार भाजपा के टिकट पर छह बार विधायक बने।

पर,इस बार जब भाजपा ने उन्हें टिकट से वंचित कर दिया तो शेट्टार ने कांग्रेस ज्वाइन कर ली।

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