बुधवार, 17 मई 2023

     गंजियों को अदल-बदल कर पहनना !

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         सुरेंद्र किशोर

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अस्सी के दशक में हमारे एक परिचित बुद्धिजीवी की एक विशेष ‘आदत’ थी।

यह सच्ची कहानी है।

मत पूछिएगा कि बुद्धिजीवी पत्रकार थे या कवि।

वे गंदी गंजी पहनने के अभ्यस्त थे।

उनके पास दो गंजियां थीं।

एक गंजी जब गंदी हो जाती थी तो वे दूसरी पहनने लगते थे।

जब वह भी गंदी हो जाती थी तो दोनों गंजियों की गंदगी का आपस में मिलान करते थे।

दोनों में से जो गंजी अपेक्षाकृत उन्हें साफ लगती थी,उसे वे पहनने लगते थे।

फिर दूसरी की बारी आती थी।

इस तरह वे लंबे समय तक उन गंजियों को साफ किए बिना पहनते रहते थे।

उनके पास बैठने वाले व्यक्ति कई बार दुर्गंध परेशान हो जाते थे।

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सन 1967 से मैं राजनीति देख रहा हूं।

बुद्धिजीवी जी की गंजी को थोड़ी देर के लिए राजनीतिक दल मान लें।

(अधिक देर के लिए नहीं।राजनीतिक दल वालों से क्षमा प्रार्थना सहित !) अपवादों को छोड़कर इस देश-प्रदेश के आम मतदातागण दशकांे से दो गंजियों को बदल-बदल कर बारी -बारी से पहनते रहते हैं।

कर्नाटका के ताजा चुनाव नतीजों से इसकी तुलना आप कर सकते हैं।

उससे पहले कर्नाटका में हुए कई विधान सभा चुनावों में आम तौर पर सरकारें बदलती रहीं।

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जो लोग

कर्नाटका के ताजा चुनाव नतीजों से कुछ लोग उत्साहित है।कई लोग उसमें अपने लिए सन 2024 के लोक सभा चुनाव में शुभ-लाभ देख रहे है।

 वही लोग सन 2018 के राजस्थान विधान सभा चुनाव नतीजों में, जिसमें कांग्रेस जीत गई थी, सन 2019 के लोक सभा चुनाव नतीजों की झलक देख रहे थे।पर ,क्या हुआ ?

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सन 2024 में अंततः क्या होगा ?

आम मतदाता तब यदि यह महसूस करेंगे कि मनमोहन सिंह की दस साला सरकार (2004-2014)से मोदी की दस साला सरकार बदतर रही तो वे एक बार फिर ‘‘मनमोहन सिंह टाइप की सरकार’’ स्थापित कर देंगे।

यदि उन्हें उल्टा महसूस हुआ तो नरेंद्र मोदी जारी रहेंगे।

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(हां, इस विश्लेषण में साम्प्रदायिक वोट बैंक समूहों और सामाजिक समूहों की राजनीतिक ताकतों को ध्यान में नहीं रखा गया है।क्योंकि वह तो घटती-बढ़ती रहती है।यू.पी.उसका उदाहरण है।वहां आजम गढ़ ढह रहा है और आजम का गढ़ भी।)

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14 मई 23

 


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