महाराणा प्रताप की याद में
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इस महावीर के प्रति सरकारी उदासीनता के बावजूद
लोगबाग गांवों में भी महाराणा प्रताप के चित्र टांगते थे
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सुरेंद्र किशोर
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जो घास की रोटी खाना मंजूर करता है, फिर भी अपने सिद्धांत से समझौता नहीं करता,उसे उसी तरह का सम्मान मिलता है जिस तरह का सम्मान महाराणा प्रताप व उनके वंशज को मिलता रहा है।
मैंने बचपन से ही अपने गांव तथा आसपास के इलाकों में देखा है कि लोग महाराणा प्रताप के बड़े -बड़े चित्र वाले कलेंडर दीवालों पर लगाना पसंद करते थे।
ऐसा करने वालों में लगभग हर जाति के लोग थे।
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महाराणा प्रताप की प्रतिष्ठा के कुछ नमूने यहां प्रस्तुत हैं--
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भारत की आजादी के बाद तक भी कहीं किसी समारोह में राजस्थान के सभी राजा, महाराणा प्रताप के वंशज को शाष्टांग प्रणाम
करते थे।
सभी राजा, यानी सभी राजा !
पता नहीं, अब क्या स्थिति है ?
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अंग्रेजी सरकार ने जार्ज पंचम के दिल्ली दरबार(सन 1911) में हाजिर होने से सिर्फ महाराणा प्रताप के वंशज को छूट दे दी थी।
याद रहे कि सारे भारतीय राजाओं की यह मजबूरी होती थी कि वे ब्रिटिश किंग के सामने झुककर उन्हें नजराना दें।
चूंकि महाराणा के वंशज इसके लिए तैयार नहीं थे,इसलिए अंग्रेजों ने उन्हें यह छूट दे दी थी।(-एम.ओ.मथाई लिखित पुस्तक ‘‘नेहरू के साथ तेरह वर्ष’’से)
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आजादी के बाद एकमात्र अपवाद सामने आया था।
महाराणा के वंशज को ‘‘महाराज प्रमुख’’ बनाया गया।
अन्य राजे-महाराजे ‘राज प्रमुख’ ही बने।
जबकि, जयपुर अपेक्षाकृत बड़ा राज्य था।
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प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू ने महाराणा के वंशज को दिल्ली बुलाकर अपने साथ प्रधान मंत्री आवास में ठहराया और उनकी समस्या दूर की थी।
प्रधान मंत्री की ओर से ऐसा सम्मान शायद ही किसी को मिलता था।
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यह सब क्यों हुआ ?
क्योंकि महाराणा प्रताप एक मात्र राजा थे जिन्होंने घास की रोटी भले खाई, किंतु बादशाह अकबर की अधीनता स्वीकार नहीं की।
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नीतीश सरकार ने हाल में पटना के मुख्य मार्ग यानी मजहरूल हक पथ,यानी, फ्रेजर रोड पर महाराणा प्रताप की मूर्ति लगवा कर उन्हें सम्मान दिया।
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बिहार विधान परिषद के सदस्य व बिहार जदयू के उपाध्यक्ष संजय सिंह ने इस काम को संभव बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।(वैसे मेरी समझ से एक कमी रह गयी।उस मूर्ति के शिला लेख में वह टिप्पणी होनी चाहिए थी जो वियतनाम के राष्ट्राध्यक्ष ने महाराणा प्रताप के शौर्य के बारे में व्यक्त की थी।याद रहे कि राष्ट्राध्यक्ष का कहना था कि महाराणा की युद्ध नीति से मिली प्रेरणा से ही वियतनाम अमेरिका को पराजित कर पाया था।)
याद रहे कि आजादी के 75 साल में इससे पहले किसी राज्य सरकार को महाराणा की याद नहीं आई थी।
दूसरी ओर नब्बे के दशक में तत्कालीन केंद्रीय मानव संसाधन मंत्री
अर्जुन सिंह ने मुगल सम्राट अकबर की 450 वीं जयंती धूमधाम से मनाने का काम शुरू कर दिया था।
किंतु दक्षिण भारत से विरोध होने पर उन्हें समारोह को बीच में ही रोक देना पड़ा।याद रहे कि दक्षिण के लोग अकबर को हमलावर मानते हैं।
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एक सवाल जरूर है।
वह यह कि महाराणा प्रताप के जीवन से आज के नेताओं व अन्य लोगों को कैसी शिक्षा लेनी चाहिए ?
जवाब यह है कि सबसे बड़ी शिक्षा तो यही अपेक्षित है कि भले ‘‘घास की रोटी खानी पड़े’’ किंतु वे सत्ता सुख और धन लिप्सा की पूर्ति के लिए अपने सिद्धांतों से समझौता न करें।
देश-प्रदेश के हितों को नुकसान न पहुंचाएं।
बाहर-भीतर के देशद्रोहियों से मुकाबला करते समय वोट बैंक का ध्यान न रखें।
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क्या ऐसी शिक्षा ग्रहण करना आज के अधिकतर नेताओं के लिए आसान है ?
आसान तो नहीं है किंतु असंभव भी नहीं है।
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9 मई 23
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