मेरे इस लेख का सुसंपादित अंश आज के दैनिक
जागरण में प्रकाशित
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विपरीत परिस्थितियों में बेहतर जीत
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--सुरेंद्र किशोर--
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राजनीति के मोर्चे पर तमाम विपरीत परिस्थितियों के बावजूद राजग बिहार में अपनी सरकार बचाने में सफल रहा।
किसी मुख्य मंत्री के नेतृत्व में लगातार चैथी बार चुनाव चुनाव जीतने का रिकाॅर्ड बिहार ने भी कायम कर ही लिया ।
इससे पहले ज्योति बसु ने लगातार पांच बार और नवीन पटनायक ने चार बार चुनाव जीता है।
मुख्य मंत्री नीतीश कुमार की सफलता के पीछे सबसे बड़ा कारण यह रहा कि मतदाताओं ने नीतीश कुमार और प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की मंशा व सेवा पर अपेक्षाकृृत अधिक भरोसा किया।
कोविड महामारी और आर्थिक मंदी की पृष्ठभूमि में यह चुनाव हुआ।
इस चुनाव में यदि बाहरी राजनीतिक झांसे और भीतरी असहयोग के तत्व सक्रिय नहीं होते तो राजग को बड़ी सफलता मिलती।
यहां यह कहना एक हद तक सही है कि
‘‘घर को आग लग गई घर के चिराग से।’’
यहां आशय सिर्फ चिराग पासवान से ही नहीं है।
बल्कि कुछ अन्य ‘‘मोमबत्तियों’’ ने भी राजग को जहां -तहां झुलसाया।
राजग के कुछ परंपरागत मतदाताओं के एक हिस्से ने भी इस बार राजग का साथ नहीं दिया।
उनका गुस्सा जदयू यानी मुख्य मंत्री पर अधिक था।
क्योंकि कई बार नीतीश कुमार उनके अनुचित दबाव में नहीं आए।
इसके बावजूद यदि सफलता मिली तो उसका कारण यह रहा कि अति पिछड़ों व महिलाओं का राजग को भरपूर सहारा मिला।
राजग के लिए इस चुनाव का एक दुखदायी प्रकरण यह रहा कि सवर्णों के बीच के कुछ परंपरागत राजग समर्थकों ने भी अघोषित कारणों से नीतीश कुमार को सबक सिखाने का भरसक प्रयास किया।
किंतु प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की राजग व नीतीश के पक्ष में मतदाताओं से भावनात्मक अपील ने बड़ी भूमिका निभाई।
नीतीश कुमार के ‘अहंकारी’ होने का खूब प्रचार हुआ था।
पर चुनाव नतीजे ने बताया कि नीतीश कुमार आम लोगों के लिए अहंकारी कत्तई नहीं रहे।
जदयू का दावा रहा कि वे तो लगातार सेवक की ही भूमिका में रहे।
कुछ प्रेक्षकों के अनुसार इस रिजल्ट ने यह भी बताया कि निरर्थक गप्प-गोष्ठी से दूर रहने वाले मुख्य मंत्री के लिए अहंकार शब्द का इजाद उन लोगों ने किया जिनके निहितस्वार्थों की पूत्र्ति नहीं हुईं।
यह सच है कि कुछ सार्वजनिक कामों को करने में नीतीश सरकार इस बीच विफल रही।
सरकारी दफ्तरों में भ्रष्टाचार व अपराध के मामलों में लोगबाग बेहतर की उम्मीद कर रहे थे।
वह नहीं हुआ।
फिर भी अधिकतर लोगों ने मुख्य मंत्री की मंशा पर शक ंनहीं किया ।
अधिकतर लोगों ने विकल्प को अधिक खराब माना।
दो मामलों में राजनीतिक विरोधियों के पास भी नीतीश के खिलाफ कहने को कुछ नहीं था।
नीतीश कुमार पर आर्थिक गड़बड़ियों यानी जायज आय से अधिक धन संग्रह का कोई आरोप अब तक नहीं लगा है।
नीतीश ने कभी अपने रिश्तेदार,परिजन या वंशज को राजनीति में आगे नहीं किया।
इन बुराइयों से भरी- पड़ी बिहार की राजनीति नीतीश कुमार को एक विशेष स्थान देती है।
चुनाव में इसका भी लाभ मिला अन्यथा जदयू को कुछ और अधिक चुनावी नुकसान हुआ होता।
जदयू को उम्मीद से कम सीटें मिलने का बड़ा कारण यह भी रहा कि निहितस्वाथियों ने संगठित होकर जदयू को खास तौर पर निशाना बनाया।
चुनाव प्रचार के बीच नीतीश कुमार ने एक बार कहा भी था कि शराब माफिया हमारे खिलाफ अभियान चला रहे हैं।
अधिकतर लोगों को यह लगा है कि कमियां दूर करने और बेहतर काम करने की उम्मीद यदि किसी से की जा सकती है तो वह राजग सरकार से ही की जा सकती है । राजद सरकार से नहीं।
मुख्य प्रतिपक्षी दल राजद को अभी यह साबित करना बाकी है कि वह भी शांतिप्रिय व विकासपसंद लोगों की उम्मीदों पर खरा उतर सकता है।
उसके पिछले खराब रिकाॅर्ड उसका अब भी पीछा कर रहे हैं।
हांलाकि राजद नेता तेजस्वी यादव ने खुद को पहले से बेहतर साबित करने की कोशिश जरूर की है।
इसमें एक हद वे सफल भी हुए हैं।
यानी राजद को एक बेहतर नेतृत्व मिल गया है।
इस चुनाव प्रचार के बीच में ही राजद ने अपने पोस्टरों से लालू प्रसाद और राबड़ी देवी की तस्वीरें हटवा दी थीं।
बिहार विधान सभा में प्रतिपक्ष के नेता तेजस्वी यादव ने चुनाव के ठीक पहले अपनी व अपनी पार्टी व सरकार की पिछली गलतियों के लिए सार्वजनिक रूप से आम लोगों से माफी मांगी।
साथ ही, राजद ने चुनाव नतीजों के बाद अनुचित नारेबाजी,हर्ष फायरिंग प्रतिद्वंद्वियों के खिलाफ अशिष्ट व्यवहार आदि नहीं करने का अपने कार्यकत्र्ताओं को सख्त निदेश दिया।
ऐसा इसलिए भी किया गया क्योंकि हाल में सोशल मीडिया पर अनेक राजद समर्थकों ने अशिष्टता की सारी हदें पार कर दी थी।
चुनाव नतीजे बताते हैं कि बिहार के अधिकतर लोगों को अब भी 1990-2005 का ‘जंगल राज’ याद है।
वैसे यह मानना पड़ेगा कि इस चुनाव में तेजस्वी यादव उम्मीद से बेहतर नेता के रूप में उभरे।
उन्होंने अधिकतर दफा जिम्मेदारी से बातें कीं।
यदि राजद के उदंड कार्यकत्र्ताओं को नियंत्रित करने का तेजस्वी का प्रयास जारी रहा तो राजद आने वाले दिनों में एक जिम्मेवार दल के रूप में उभर सकता है।
किंतु चुनावी आश्वासन देने में वे एक जिम्मेदार नेता का सबूत नहीं दे सके।
दस लाख सरकारी नौकरियां देने का निर्णय अपनी पहली ही कैबिनेट में कर देने के उनके वादे का वांछित असर मतदाताओं पर नहीं पड़ा।
हां कुछ युवाओं पर जरूर पड़ा।
वैसे युवा विभिन्न सामाजिक समूहों से थे।
यदि राजद अपने एम.वाई.यानी मुस्लिम-यादव वोट बैंक के बाहर से भी कुछ मत प्राप्त कर सका तो उसका एक कारण 10 लाख सरकारी नौकरियों का वादा भी था।
पिछले साल राजद ने संसद में सवर्ण आरक्षण का विरोध कर दिया था।
नतीजतन गत लोक सभा चुनाव में राजद के कम से कम दो ऐसे सवर्ण उम्मीदवार हार गए जिनकी जीत की उम्मीद की जा रही थी।
उस विरोध का असर एक हद तक इस विधान सभा चुनाव पर भी पड़ा।
असद्ददीन आवैसी के दल ने परोक्ष रूप से राजद को नुकसान पहुंचाया ।
लोजपा के अलग होने का जो नुकसान हुआ,उसकी क्षतिपूत्र्ति एक हद तक ओवैसी ने कर दी।
पूर्व मुख्य मंत्री जीतन राम मांझी और मुकेश सहनी के दलों से राजग को मदद मिली है।
पर दूसरी तरफ कांग्रेस से राजद को कम ही मदद मिली।
राजनीतिक प्रेक्षकों के अनुसार राजद ने तालमेल में कांग्रेस को 70 सीटें देकर अदूरदर्शिता का परिचय दिया था।
कांग्रेस की अपनी ताकत के अनुपात में वह काफी ज्यादा था।
आने वाले दिनों में बिहार राजग के साथ खासकर नीतीश कुमार के साथ चिराग पासवान कैसा संबंध रहेगा ?
यह तो बाद में पता चलेगा।
पर, यह बात भी जरूर साफ हुई कि चुनावी सफलता के लिए चिराग पासवान की लोजपा पर राजग की निर्भरता की कोई मजबूरी अब नहीं रही।
भाजपा नेतृत्व अपना यह वादा निभाएगा ही कि नीतीश कुमार ही मुख्य मंत्री बनेंगे भले जदयू को कम सीटें मिलें।
कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि सामाजिक समीकरण के साथ -साथ बिहार में विकास व जन कल्याण के कामों का चुनाव पर सकारात्मक असर पड़ना अब भी जारी है।
हाल के महीनों में राज्य भर में बिजली पहुंचा दी गई है।
राज्य के अधिकतर इलाकों के लिए बिजली एक सपने की तरह थी।
किसानों, महिलाओं, छात्र-छात्राओं आदि के लिए जारी केंद्र व राज्य सरकार की अनेक योजनाएं भी चुनाव में काम कर र्गइं।
नल जल योजना में अनियमितताओं की खबरें जरूर आई हैं।
पर उस योजना में लूट मचाने वालों के खिलाफ हाल में बड़े पैमाने पर
सरकार ने कार्रवाइयां की हैं।
पर,नई राज्य सरकार को
दो मोरचों पर अब पहले से अधिक सक्रियता दिखानी होगी।
अपराध के मामले में लोगों को कुछ और निश्चिंतता चाहिए।
खासकर उद्योगपतियों को।
इसके लिए पुलिस प्रशासन को चुस्त व भ्रष्टाचारमुक्त करना होगा।
कहने की जरूरत नहीं कि यह राज्य नेपाल की सीमा पर स्थित है।
इस दृष्टि से भी कानून-व्यवस्था में बेहतरी और भी जरूरी है।
राष्ट्रद्रोही तत्वों का भारत-नेपाल की सीमा से अबाध आवाजाही को रोकने की चुनौती सामने है।
साथ ही सरकारी दफ्तरों में भ्रष्टाचार को लेकर लोगों में नाराजगी देखी जाती है।
उस दिशा में कुछ ठोस व कड़ा कदम उठाना होगा।
नीतीश कुमार इस दिशा में कोशिश करते भी रहे हैं।
पर उसमें अन्य संबंधित पक्षों का सक्रिय व ठोस सहयोग भी जरूरी है।
हाल के वर्षों में शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्रों की कमजोरियां सामने आई हैं।
इसके लिए कुछ हलकों में मौजूदा शासन को भी जिम्मेदार ठहराया जाता रहा है।
गरीबों तक यदि शिक्षा व स्वास्थ्य का लाभ पहुंचाना है,तो उस दिशा में
सरकार ही मदद कर सकती है न कि निजी क्षेत्र।
उम्मीद है कि नई सरकार इस दिशा में पहले से बेहतर काम करेगी।
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12 नवंबर 20