सोमवार, 30 नवंबर 2020

    जानिए देश-प्रदेश की दुर्दशा के मूल कारण 

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संभवतः बात सन 1949-50 की है।

बिहार साठी लैंड (रिस्टोरेशन) बिल पर

बिहार विधान सभा में चर्चा चल रही थी।

कांग्रेस के केंद्रीय नेतृत्व के निदेश पर राज्य सरकार ने यह बिल लाया था।

इसके बावजूद एक स्वतंत्रता सेनानी ने सदन में कहा कि 

कुछ नेताओं को बेतिया राज की जो जमीन राज्य सरकार ने दे दी  है,वह गलत नहीं हुआ था।

1857 के विद्रोह के समय जिन भारतीयों ने अंग्रेजांे का

साथ दिया था,उन्हें अंगे्रज सरकार ने तरह -तरह के धन -भूमि लाभ व उपाधियों से नवाजा। 

हमने व हमारे परिवार ने गांधी जी के नेतृत्व में चली आजादी की लड़ाई में अपार कष्ट सहे हैं।

हमें भी सरकार ने कुछ दिया तो उस पर एतराज क्यों ?

  वह नेता, हालांकि उन्होंने खुद साठी की जमीन नहीं ली थी,बाद में बिहार के मुख्य मंत्री भी बने थे।

ऐसे ही शासकों से भरे इस प्रदेश में बिहार बीमारू राज्य बन गया,तो उसमें अश्चर्य की क्या बात है ?

ऐसा तो होना ही था।

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स्वतंत्रता के बाद बिहार की दुर्दशा का हाल जानना हो तो अय्यर कमीशन की रपट पढ़िए।

कमीशन ने 1967 से 1970 के बीच बिहार के छह सबसे बड़े कांग्रेसी नेताओं के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच की थी।

यदि आजादी के बाद देश की दुर्दशा जाननी हो तो एम.ओ.मथाई की दो संस्मरणात्मक पुस्तकें पढ़िए।

मथाई 13 साल तक जवाहरलाल नेहरू का निजी सचिव था।

मथाई की पुस्तकें इस देश में प्रतिबंधित हैं।

उतनी अधिक सच्ची बातें जो लिखेगा,उसकी पुस्तक पर प्रतिबंध लगेगा ही।

हालांकि इच्छुक लोग उसे  विदेश से आॅनलाइन मंगाते ही रहते हैं।

अय्यर कमीशन की रपट गुलजाबाग स्थित सरकारी प्रेस में बिक्री के लिए उपलब्ध है।

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  1985 में तत्कालीन प्रधान मंत्री राजीव गांधी ने स्वीकार किया  था कि 

हम दिल्ली से सौ पैसे भेजते हैं किंतु जनता को उसमें से  सिर्फ 15 पैसे ही मिल पाते हैं।

बाकी बिचैलिए खा जाते हैं।

 यानी 1985 आते -आते देश की ऐसी स्थिति बन गई थी।

  1970 में ही बिहार, ओड़िशा को छोड़कर देश का सर्वाधिक पिछड़ा राज्य बन चुका था।

बाद के दशकों की देश-प्रदेश की कहानियां तो मालूम ही होंगी।

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--सुरेंद्र किशोर--30 नवंबर 20

 


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