इमरजेंसी में सरकारी आतंक
का एक नमूना यह भी
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--सुरेंद्र किशोर-
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आजकल कुछ लोग यदा -कदा यह कहते रहते हैं कि इन दिनों देश में इमरजेंसी जैसे हालात हैं।
उन्हें एक छोटी सी ‘इमरजेंसी कथा’ सुनाता हूं।
कर्पूरी ठाकुर इमरजेंसी में फरार थे।
पटना के वीरचंद पटेल पथ स्थित उनके सरकारी आवास
से शासन ने उनका सारा सामान बाहर फेंक दिया।
ऐसा करने का शासन को पूरा हक था।
क्योंकि तब तक वे किसी सदन के सदस्य नहीं रह गए थे।
पर, उसके बाद की कहानी जानिए।
उनके परिजन के समक्ष यह समस्या थी कि उस सामान को कहां रखा जाए ?
उनकी पार्टी के एक ऐसे एम.एल.सी.से संपर्क किया गया जो कर्पूरी जी की मेहरबानी से एम.एल.सी.बने थे।
पर,उस एम.एल.सी.साहब ने अपने लंबे-चैड़े सरकारी आवास में उस सामान को रखने से साफ मना कर दिया।
फिर सामने आए एक कांग्रेसी विधायक।
वीरेंद्र कुमार पांडेय ने (मांडु से कांग्रेसी विधायक थे।) ने अपने घर में वह सब सामान रखा।
पता नहीं, पांडे जी अब कहां हैं ?
मैं उनसे अक्सर मिलता था।
एक प्रतिष्ठित परिवार से आते थे।
बहादुर व स्वतंत्र चेता नेता थे।
जिस समाजवादी एम.एल.सी.ने कर्पूरी जी का सामान रखने से मना कर दिया था,वे फिर भी कर्पूरी जी प्रशंसक -समर्थक थे।
पर, वे भी एक खास स्थिति में डर गए थे।
उन्हें लगा था कि सामान रखने के कारण ही उनकी गिरफ्तारी भी हो सकती है।
1977 में जब कर्पूरी जी मुख्य मंत्री बने तो वे एक बार फिर ‘‘ठाकुर कृपा’’ से एम.एल.सी.बन गए।
मुख्य मंत्री कर्पूरी जी की किसी गलत नीति के खिलाफ जब मैंने दैनिक ‘आज’ में कुछ लिखा तो वह एम.एल.सी.साहब काॅफी हाउस में मुझसे झगड़ बैठे थे।
मैंने झगड़ने वाला यह प्रकरण इसलिए लिखा
कि आप जानें कि वे कर्पूरी जी के प्रति वे कितना ‘लाॅयल’ थे।
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इमरजेंसी में सरकार का ऐसा आतंक था !
आज मौजूदा सरकार का कितना आतंक है,इसका अनुमान निष्पक्ष लोग आसानी से लगा सकते हैं।
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--सुरेंद्र किशोर--11 मार्च 2021
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