सोमवार, 8 मार्च 2021

    गद्यमय कविता के इस दौर में 

    बच्चन की ‘मधुशाला’ की शैली में 

    कमलाकान्त सिन्हा की ‘मतवाला’ !

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       --सुरेंद्र किशोर--

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‘‘बच्चन जी की मधुशाला के दूसरे भाग की पांडुलिपि कहां मिल गयी ?’’

    ‘मतवाला’ की पांडुलिपि देखकर प्रो.(डा.)रामवचन राय ने कमलाकान्त प्रसाद सिन्हा से यही सवाल किया था।

जब उन्हें बताया गया कि यह कमलाकान्त जी की कृति है तो 

प्रो.राय ने रचनाकार को बधाई दी।

  अपनी अनुरागानुभूति (प्रस्तावना) में प्रो.राय ने लिखा है कि 

‘‘हिन्दी कविता अपने विकास के इस दौर में अधिक गद्यमयता के कारण आम पाठकों की अभिरुचि और स्मरणीयता के दायरे से अलग होती गयी है।

ऐसे में मतवाला का प्रकाशन न सिर्फ उन पाठकों को आकर्षित करेगा,बल्कि नया पाठक वर्ग भी तैयार करेगा।’’

अब जेपी आंदोलन के नेता और कर्पूरी ठाकुर सरकार (1977)के संसदीय सचिव रहे कवि-शायर कमलाकान्त सिन्हा उर्फ लालू दा की रचना के कुछ नमूने पढ़िए।

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बहुत पुराना है मदिरालय

बहुत पुरानी है हाला,

आदिम मिट्टी से निर्मित है

यह सुन्दर मृण्मय प्याला।

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पा अनंग से सोम-कलश जब 

साकीबाला थिरक उठी

सृजनहार था पीनेवाला

प्रथम बना वह मतवाला

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तब से गमक रहा मदिरालय

तब से खनक रहा प्याला

तब से होड़ मची रिन्दों में 

गूंज रहा ‘हाला-हाला’

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अखिल भारतीय साहित्य परिषद, दुमका के अध्यक्ष बलभद्र नारायण सिंह बालेन्दु ने लिखा है कि ‘‘लालू दा(कमलाकान्त सिन्हा)को शायरी का शौक बचपन से है।

राजनीतिक और सामाजिक व्यवस्थाओं पर तीखी व्यंग्यात्मक टिप्पणियों से भरी है इनकी शायरी।

स्वभाव से फक्कड़ और मजदूरों का सा सादा जीवन जीने वाला यह कवि शायर खास अंदाज में शेरो -शायरी पेश कर एवं मौजूदा गंदी-बेढंगी राजनीति पर सामाजिक हलचल को समेट कर जनमन को खोलने की सरस चेष्टा करता है।

  लालू दा के व्यक्तित्व का निर्माण देशकाल से प्रभावित होता है।

इस संग्रह में कवि शायर की संघर्ष चेतना को वाणी मिली है।’’ 

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पुस्तक-‘मतवाला’

लेखक-कमलाकान्त सिन्हा

प्रथम संस्करण - सन 2021

के.एल.हाउस

गिलान पाड़ा

दुमका-814101

झारखंड

मो-9431154576

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5 मार्च 21


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