बुधवार, 17 मार्च 2021

 वोटों के लिए राष्ट्रीय हितों की अनदेखी

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    --सुरेंद्र किशोर--

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यह चिंताजनक है कि नकली सेक्युलर नेताओं के लिए देश की एकता-अखंडता से अधिक महत्वपूर्ण उनका वोट बैंक है।

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बंगाल विधान सभा चुनाव के संभावित नतीजों के पूर्वानुमान आने शुरू हो गए हैं।

 कुछ अनुमानों में भाजपा और तृणमूल कांग्रेस के बीच बराबरी का मुकाबला बताया जा रहा है।

कुछ दिनों में स्थिति और भी साफ हो जाएगी।

पिछले कुछ महीनों में जितने बड़े पैमाने पर सांसदों ,विधायकों और नेताओं ने तृणमूल कांग्रेस को छोड़ा, वह एक रिकाॅर्ड है।

यह गौर करने लायक है कि जो भी नेता तृणमूल कांग्रेस छोड़ रहा है,वह मुख्यतः भाजपा में शामिल हो रहा है।

 आम तौर पर ऐसा तब होता है ,जब दल छोड़ने वाले नेताओं को उनके मतदाताओं से यह संकेत मिलता है कि किसी खास दल से चुनाव लड़ोगे तभी उन्हें उनके वोट मिलेंगे।

   आखिर इतनी बड़ी संख्या में सांसद-विधायक ममता का साथ क्यों छोड़ रहे हैं ?

जिस दल के जीतने की पक्की उम्मीद रहती है,उसे शायद ही कोई छोड़ता हो।

स्पष्ट है कि अभी जो चुनावी लड़ाई बराबरी की दिख रही है,उसका स्वरूप आने वाले दिनों में बदल भी सकता है।

मुख्य मंत्री ममता बनर्जी की रणनीतियों से यह लगता है कि 

वह विरोधियों के प्रति तीखे तेवर अपनाने में पीछे नहीं रहने वालीं।

  2016 में ममता बनर्जी ने मोदी और शाह को सार्वजनिक रूप से पंडा और गंुडा कहा था।

वह यह शब्दावली अब भी दोहरा रही हैं।

ममता बनर्जी के एजेंडे में न सिर्फ तुष्टिकरण और भतीजे की राजनीति को आगे बढ़ाने का काम शामिल है,बल्कि बंगला देशी घुसपैठियों की तरफदारी करना भी है।

  ममता बनर्जी अपने नेताओं पर लग रहे भ्रष्टाचार के आरोपों को गलत बताती हैं।

  इसके साथ ही केंद्र की विकास एवं कल्याणकारी योजनाआंें के अमल को लेकर भी उपेक्षा और असहयोगपूर्ण रवैया अपनाती हैं।

  इससे भाजपा के लिए अनुकूल राजनीतिक-चुनावी परिस्थिति तैयार हो रही है।

घुसपैठियों की विशेष पक्षधरता के कारण ही ममता बनर्जी ने 2020 के प्रारंभ में दार्जिलिंग की रैली में यह घोषणा कर दी कि बंगाल में सी ए ए (एन.पी.आर -एन आर सी) यानी नागरिक संशोधन कानून लागू नहीं होने दिया जाएगा।

ध्यान रहे कि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने हाल में कहा है कि कोरोना टीकाकरण के बाद सी ए ए लागू किया जाएगा।

 इससे पहले केंद्र सरकार सुप्रीम कोर्ट में यह कह चुकी है कि किसी भी संप्रभु देश के लिए राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर यानी एन आर सी जरूरी है।

  याद रहे कि अमेरिका,चीन,जर्मनी और जापान जैसे देशों की कौन कहे,पाकिस्तान,अफगानिस्तान और बंगला देश में भी नागरिकता रजिस्टर और नागरिकता कार्ड का प्रावधान है।

 भारत में कुछ लोगों को सी ए ए और एन आर सी किसी भी कीमत पर मंजूर नहीं।

  इनमें ममता प्रमुख हैं।

उनके जैसे वोटलोलुप नेताओं के लिए भारत कोई देश 

नहीं ,बल्कि धर्मशाला है।

  यह चिंताजनक है कि नकली सेक्युलर नेताओं के लिए देश की एकता अखंडता से अधिक महत्वपूर्ण उनका वोट बैंक है।

  पिछले महीने ही ममता बनर्जी ने कहा कि यदि मुझे जेल में बंद भी कर दिया गया तो मैं बंगबंधु शेख मुजीबुर रहमान की तरह ‘जाॅय बांग्ला’ का नारा दूंगी।

  आखिर मुजीब की भूमिका दोहराने के पीछे ममता बनर्जी की मंशा क्या है ?

कहां मुजीब और कहां ममता !

पता नहीं,उनका इरादा क्या है ?

लेकिन अल्पसंख्यकों की तुष्टिकरण की राजनीति में वह किसी से पीछे रहना नहीं चाहतीं।

  इन दिनों बाटला हाउस मुठभेड़ की चर्चा हो रही है।

इस मुठभेड़ के बारे में एक समय ममता बनर्जी ने कहा था कि यदि मुठभेड़ सच साबित हुई तो मैं राजनीति छोड़ दूंगी।

अदालत ने इस मुठभेड़ को सच साबित किया है।

वह ऐसा बयान देकर एक तरह से इंडियन मुजाहिद्दीन के उन आतंकियों का बचाव कर रही थीं

जिन्होंने दिल्ली के एक इंस्पेक्टर को मार दिया था।

क्या ऐसी राजनीति मुजीब करते थे ?

क्या वह देश के दुश्मनों के साथ थे ?

 ऐसा तो बिलकुल भी नहीं था।

 मुजीब एक विशेष परिस्थिति में पूर्वी पाकिस्तान में चमके थे।

उन्हें चुनाव में बहुमत मिलने के बावजूद पश्चिमी पाकिस्तान के शासकों द्वारा पाकिस्तान का शासक नहीं बनने दिया गया था।

 पूर्वी पाकिस्तान के अधिकतर लोगों की सहानुभूति मुजीब के साथ थी।

  तृणमूल कांग्रेस के जीतने पर ममता बनर्जी ही मुख्य मंत्री बनेंगी।

यदि ममता फिर से सत्ता में आ जाती हैं तो भी केंद्र सरकार को सी ए ए , एन पी आर (एन आर सी)लागू करने में पीछे नहीं हटना चााहिए।

 घुसपैठियों से मुक्ति पाकर देश को सुरक्षित बनाने का दायित्व केंद्र सरकार को निभाना ही पड़ेगा।

ममता बनर्जी की राजनीति कितना मौकापरस्त है,यह एक खास राजनीतिक प्रकरण से पता चल जाएगा।

 इस प्रकरण से यह भी पता चल जाएगा कि वोट बैंक की राजनीति के कारण ममता किस तरह अपने ही रुख से पलट गईं।

  यह प्रकरण सन 2005 का है।

तब बंगाल में वाम मोर्चा की सरकार थी।

ममता तब लोक सभा सदस्य थीं।

4 अगस्त, 2005 को उन्होंने लोक सभा अध्यक्ष की टेबल पर कागजों का पुलिंदा जोर से फेंका।

 उसमें अवैध बंगलादेशी घुसपैठियों को मतदाता बनाए जाने के सबूत थे।

उनके नाम गैर कानूनी तरीके से मतदाता सूची में शामिल करा दिए गए थे।

यह अवैध काम वाम मोर्चा सरकार के लोगों ने किया था।

ममता ने सदन में कहा कि घुसपैठ की समस्या राज्य में ‘‘महा विपत्ति’’ बन चुकी है।

  इन घुसपैठियों के वोट का लाभ वाम मोर्चा उठा रहा है।

उन्होंने इस पर सदन में चर्चा की मांग की।

 चर्चा की अनुमति न मिलने पर ममता ने सदन की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया।

 चूंकि उनका इस्तीफा विधिवत रूप से तैयार नहीं किया गया था,इसलिए वह मंजूर नहीं हुआ।

   वर्ष 2011 में ममता बनर्जी बंगाल की मुख्य मंत्री बन गईं।

तब से घुसपैठियों के वोट उनकी पार्टी को मिलने लगे।

उसके बाद जो तबका ममता की नजर में ‘‘महा विपत्ति’’ था,वही उनकी पार्टी के लिए वोट बेंक के रूप में ‘‘महा संपत्ति’’ बन गया।

   वर्ष 2014 में नरेंद्र मोदी प्रधान मंत्री बन गए।

मोदी सरकार ने सी ए ए और एन आर सी की जरूरत महसूस की।

   इस पर मुख्य मंत्री ममता बनर्जी ने कहा कि ‘‘जो भी बांग्ला देश से यहां आए हैं,वे सभी भारतीय नागरिक हैं।

उन्हें यहां से भगाया नहीं जा सकता।’’

 सी ए ए ,एन पी आर और एन आर सी के विरोध में ममता ने एक अन्य अवसर पर कहा था कि 

‘‘इसे लागू करने पर गृह युद्ध हो जाएगा।’’

 देखना है कि बंगाल में आगे क्या-क्या  होता है ?

वहां जो भी हो,देशघाती राजनीति को पनपने का अवसर नहीं मिलना चाहिए।

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दैनिक जागरण ( 12 मार्च 2021) में प्रकाशित  



  

 

  





  


 



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