रविवार, 14 मार्च 2021

 


 ट्रैफिक पुलिस की कमियों,अतिक्रमण व ओवरटेकिंग के कारण जाम की समस्या-सुरेंद्र किशोर

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लगता है कि टै्रफिक जाम की समस्या लाइलाज बीमारी बन चुकी है।यदि शासन इस समस्या को अधिक गंभीरता से ले तो लोगों को राहत मिल सकती है।

 एक दूसरे से आगे निकल जाने यानी ओवरटेकिंग की होड़, जाम का बड़ा कारण है।

 दूसरा कारण सड़कों पर भारी अतिक्रमण है।

तीसरा व महत्वपूर्ण कारण अनेक टै्रफिक पुलिसकर्मियों की कत्र्तव्यहीनता है।

ट्रैफिक पुलिस की संख्या भी जरूरत के अनुपात में काफी कम है।

कारण और भी हैं।

किंतु शासन को चाहिए कि वह पहले इन तीन मुख्य समस्याओं पर कठोरता से काबू पाए।

टै्रफिक जाम की असली पीड़ा उन्हें ही मालूम है जो लगातार चार-पांच घंटे तक कहीं जाम की समस्या कभी झेल चुके हैं।

जो चिलचिलाती धूप में जाम में सपरिवार घंटों से फंसे हंै और बच्चों के दूध व पानी के बोतल खाली हो चुके हैं।या फिर गंभीर रूप से घायल या बीमार व्यक्ति अस्पताल के रास्ते में हैं।

जाम में फंसने की पीड़ा एक ऐसी पीड़ा है जिस ओर शासन ने  कभी जरूरत के हिसाब से गंभीरता नहीं दिखाई।

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  समस्या और निदान

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सब जानते हैं कि सड़कों पर अतिक्रमण जितने होते हैं,उससे अधिक कराए जाते हैं।

कराने में किसका हाथ रहता है,उसकी पहचान हो और कड़ी कार्रवाई हो।

इससे शासन के शीर्ष को जनता की वाहवाही मिलेगी।

  ओवरटेकिंग को कौन बढ़ावा देता है ?

क्यों देता है ?

क्या यह बात किसी से छिपी हुई है ?

दूसरा कारण सड़कों पर भारी अतिक्रमण है।

तीसरा व महत्वपूर्ण कारण अनेक टै्रफिक पुलिसकर्मियों की कत्र्तव्यहीनता है।

कारण और भी हैं।

किंतु शासन को चाहिए कि वह पहले इन तीन समस्याओं पर कठोरता से काबू पाए।

टै्रफिक जाम की असली पीड़ा उन्हें ही मालूम है जो लगातार चार-पांच घंटे तक कहीं जाम की समस्या कभी झेल चुके हैं।

 ट्रैफिक पुलिस की संख्या जरूरत की तुलना में कम है।

साथ ही टै्रफिक पुलिसकर्मियों,खासकर महिला पुलिस के लिए

कार्यस्थल पर शौचालय का कोई प्रबंध नहीं है।

इस समस्या का निदान कौन करेगा ?

पहले सुविधा दीजिए,फिर कस कर काम लीजिए।

जब कोई देखता है कि सड़कों पर खुलेआम ट्रैफिक पुलिस रिश्वत लेती है तो उससे शासन का इकबाल घटता है।

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 लाठी से अधिक कारगर स्टिंग आपरेशन

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हाल में एक नेता जी ने अपने लोगों से कहा कि भ्रष्ट सरकारी कर्मियों को लाठी से पीटो ।

  मेरी समझ से उस नेता को यह कहना चाहिए था कि आप लोग भ्रष्टों के खिलाफ स्टिंग आपरेशन करिए-कराइए।

पिछले कुछ महीनों में स्टिंग आपरेशन का सकारात्मक असर दिखाई पड़ा है।

एक मीडिया संगठन ने पटना लोअर कोर्ट में भ्रष्टाचार को लेकर स्टिंग आपरेशन किया था।

संबंधित कर्मचारियों की सेवाएं समाप्त हो गईं।

एक अन्य मीडिया ने पटना कलक्टरी के पास जाली स्टाम्प को लेकर स्टिंग आपरेशन किया था ।इस मामले में भी कार्रवाई करने की प्रशासन ने कोशिश की है।

  दोनों मामलों में संबंधित मीडियाकमियों को सराहना मिली।

पर लाठियों से पीटनेवाली अपील पर न तो नेताजी का कोई मान बढ़ा और न ही किसी ने उनकी अपील पर किसी को लाठी से पीटा।

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   पहले आरक्षित कोटे को तो भरिए

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आरक्षण का प्रतिशत बढ़ा देने की मांग समय-समय पर होती रहती है।

किंतु क्या आरक्षण का पक्षधर कोई नेता यह मांग करता है कि निर्धारित कोटे को भरा क्यों नहीं जाता ?

केंद्र सरकार की नौकरियों में पिछड़ों के लिए 27 प्रतिशत आरक्षण निर्धारित है।

इनमें से औसतन 15 प्रतिशत सीटें ही भर पाती हैं ?

इसके लिए कौन जिम्मेदार है ?

  1993 के बाद अनेक मंडल मसीहा सत्ता के शीर्ष पर रहे या फिर सत्ता को प्रभावित करने की स्थिति में रहे।

क्या उन लोगों ने पता लगाया कि किन कारणों से सीटें खाली रह जाती हैं ?

पता नहीं लगाया।

वैसे लोग भी सत्ता से हटने के बाद आरक्ष्ण का कोटा बढ़ाने की मांग करते रहते हैं।

कोटा जरूर बढ़वाइए,यदि अदालत अनुमति दे।किंतु जो कोटा उपलब्ध है,उसे तो भरने का उपाय कीजिए।

अन्यथा लोग समझेंगे कि कोटा बढ़ाने की आपकी मांग राजनीति से प्रेरित है।

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  उद्योग मंत्री के लिए अनुकूल अवसर

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बिहार के नए उद्योग मंत्री शाहनवाज हुसैन के लिए अच्छा अवसर है।

उधर केंद्र सरकार ने गन्ना -मक्का से इथनाॅल उत्पादन की अनुमति दे दी और इधर शाहनवाज साहब नए उत्साह के साथ बिहार के उद्योग मंत्री बन गए।

  जानकार लोग बताते हैं कि इस ताजा अनुमति से,जिसकी मांग नीतीश सरकार वर्षों से कर रही थी,बिहार में नए -नए उद्योग खुलेंगे।

  हां,एक कमी फिर भी रह जाएगी ।उसे मुख्य मंत्री को पूरा करना होगा।

उद्योगों को सुरक्षा प्रदान करने के लिए वे जरूरत के अनुसार नए -नए पुलिस थानों की स्थापना कराएं।

  महेंद्र सिंह धोनी तो आम तौर पर मैच के आखिरी दौर में चैके --छक्के लगात थे।

शाहनवाज को तो ऐसा अनुकूल अवसर मिल गया है कि वे शुरूआती दौर से ही उद्योग के चैके-छक्के लगा सकते हैं।

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 और अंत में

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केरल सी.पी.एम.ने अपने करीब तीन विधायकों के टिकट काट दिए हैं।

उधर,तृणमूल कांग्रेस ने भी अपने दो दर्जन विधायकों के टिकट काटे ।

अब देखना है कि टिकट कटने के बावजूद कितने विधायक सी.पी.एम.में बने रहते है !

यह भी गौर करने लायक बात होगी कि तृणमूल कांग्रेस के कितने विधायक पार्टी छोड़ते हैं।

इस देश की राजनीति के ऐसे दौर में यह सवाल मौजूं है जब कहा जाता रहा है कि 

‘‘टिकट कर्मा,टिकट धर्मा, धर्मा-कर्मा टिकट -टिकट !!’’  

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कानोंकान

प्रभात खबर 

पटना

12 मार्च 21


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