मोरारजी देसाई (29 फरवरी, 1896-10 अप्रैल 1995)
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मोरारजी देसाई में खूबियां अधिक थीं।
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--सुरेंद्र किशोर--
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जिस नेता में खूबियां अधिक और कमियां कम हों,उन्हंे
समय -समय पर याद करना ही चाहिए।
मोरारजी देसाई वैसे नेताओं में प्रमुख थे।
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मोरारजी देसाई अपने कठोर संयम के कारण करीब
सौ साल जिए।
आज मैं असमय बीमार होते कुछ करीबी लोगों से यदाकदा पूछता हूं ।
आप खानपान में संयम क्यों नहीं बरतते ?
वे तुरंत जवाब दे देते हैं-‘‘क्या करें,मेरा जाॅब ही ऐसा है कि
संयम नहीं निभ पाता।’’
दरअसल यह चटपटा खाने -पीने का बहाना है !
क्या कोई जाॅब प्रधान मंत्री के जाॅब से भी अधिक व्यस्तता वाला हो सकता है ?
मैं नहीं मानता-जानता !
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देसाई का आत्मानुशासन बेजोड़
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यदि मोरारजी देसाई राजनीति की भागदौड़ वाली जिंदगी में भी करीब सौ साल का जीवन प्राप्त कर सके थे तो यह उनके आत्मानुशासन का ही परिणाम था।
प्रधान मंत्री रहे मोरारजी भाई जैसा अब कोई नहीं।
आप उनकी राजनीतिक, आर्थिक या किन्हीं अन्य नीतियों से असहमत हो सकते हैं।
पर, आप उनके निजी जीवन के कठोर अनुशासन से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकते।
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गोधरा दंगे को लेकर देसाई का
हुआ था अंग्रेज कलक्टर से मतभेद
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देसाई अपने जीवन के प्रारंभिक काल में डिप्टी कलक्टर थे।
गुजरात के गोधरा में तैनात थे ।
तब अंग्रेज कलक्टर ने उन पर दबाव डाला कि वे दंगाइयों को निर्दोष बताते हुए रपट दें।
मोरारजी ने ऐसा करने से इनकार कर दिया।
उस पर अंग्रेज शासक से उनका मतभेद शुरू हो गया।
अंततः गांधी जी के आहवान पर देसाई ने 1930 में नौकरी छोड़ दी ।
स्वतंत्रता आंदोलन में कूद पड़े।
राजनीतिक जीवन में भी उनकी अपनी तय की हुई लक्ष्मण रेखाएं थीं।
उनसे वे आम तौर पर कभी नहीं डिगते थे।
यह सब राजनीति में अब दुर्लभ है।
मोरारजी देसाई ने अपने लिए कोई मकान तक नहीं बनवाया।
अंतिम दिनों में वे किराए के मकान में थे।
कोई संपत्ति खड़ी नहीं की।
जबकि, वे 1952 में ही बंबई प्रांत के मुख्य मंत्री बन गए थे।
बाद में वे केंद्र में मंत्री,उप प्रधान मंत्री और अंततः प्रधान मंत्री बने।
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मोराजी का रूटीन
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मोरार जी प्रातः 4 बजे जग जाते थे।
रात में नौ बजे सो जाते थे।
पर वे कहते थे कि सोने और तैयार होने के समय को छोड़ कर उनका सारा समय लोगों का था।
चार बजे प्रातः से लेकर सात बजे सुबह तक का समय उनका अपना होता था।
उस समय वे किसी तरह का व्यवधान नहीं होने देते थे।
इस बीच वे नित्य क्रिया से निवृत होकर टहलते थे ।
मन ही मन गीता का पाठ करते थे।
वे नौ बजे रात के बाद किसी भी हालत में जगे नहीं रहते थे।
वे जब प्रधान मंत्री थे और 1979 में उनकी सरकार गिरने लगी तौभी उन्होंने नौ बजे रात के बाद जगने से मना कर दिया।
जबकि, सरकार बचाने के उपाय पर विचार करने के लिए रात में उनसे उनके कुछ प्रमुख राजनीतिक सहयोगी विचार विमर्श करना चाहते थे।
पर सहयोगी निराश ही हुए।
यानी मोरारजी एक बार जो कुछ तय कर लेते थे , उस बात पर घाटा उठा कर भी अमल करते थे।
उनकी विश्वसनीयता का सबसे बड़ा आधार यही था।
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मोरारजी का भोजन
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मोरार जी के भोजन में गाय का दूध, मक्खन, फल, नारियल पानी,शहद,अखरोट,उबले आलू,खजूर,गुड़-मक्के की बनी मिठाई शामिल थे।
सब चीज लेने के समय तय थे।
उसमें कोई व्यवधान नहीं हो सकता था।
वे कहते थे कि शाम में फल नहीं लेना चाहिए ।
क्योंकि आयुर्वेद में यह मना किया गया है।
काश ! मोरारजी का कोई जोड़ा राजनीति में आज भी होता।
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