सत्तर के दशक में कर्जदार धर्म तेजा का न सिर्फ भारत सरकार ने लंदन से प्रत्यर्पण कराया,बल्कि उसे कोर्ट से 3 साल की सजा भी दिलवाई
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सुरेंद्र किशोर
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भारत सरकार ने जयंती शिपिंग कंपनी के मालिक धर्म तेजा का 1971 में लंदन से भारत प्रत्यर्पण कराने में सफलता पाई थी।
कर्ज लेकर चुकाने और टैक्स देने में विफल रहे आरोपी धर्मतेजा को भारत की अदालत ने तीन साल की सजा दी।
वह 1975 में भारतीय जेल से रिहा हुआ।
सन 1977 में विदेश भाग गया।
सन 1985 में अमेरिका में उसका निधन हो गया।
धर्मतेजा ने जहाज खरीदने के लिए भारत सरकार से 20 करोड़ रुपए का कर्ज लिया था।
उन दिनों जहाज खरीदने के लिए कंपनियों को केंद्र सरकार जहाज के मूल्य का 90 प्रतिशत तक कर्ज देती थी। हर जहाज की खरीद पर कमीशन मिलता था जो कंपनियों के निदेशक रख लेते थे।लेन देन का यह काम विदेश में ही संपन्न हो जाता था।
हालांकि तत्कालीन परिवहन राज्य मंत्री सी.एम.पुनाचा ने कहा था कि धर्म तेजा को 20 करोड़ नहीं बल्कि सिर्फ सवा छह करोड़ रुपए ही कर्ज मिला था।हालांकि उन्होंने यह माना कि कंपनी की निजी पूंजी से कर्ज चैगुना अधिक है।
साठ के दशक में सवा छह करोड़ रुपए भी एक बहुत बड़ी राशि थी।
आंध्र प्रदेश का मूल निवासी धर्म तेजा अनिवासी भारतीय था।साठ के दशक में उसने अपनी शिपिंग योजना से तत्कालीन प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू को प्रभावित कर दिया था।
धर्मतेजा पर आरोप लगा कि वह पैसे लिचेस्टाइन बैंक के अपने निजी खाते में जमा करता था।
फिर वह देश छोड़कर भाग गया।सन 1970 में लंदन में उसे गिरफ्तार किया गया।भारत सरकार के प्रयास से उसका प्रत्यर्पण हुआ।
उस पर मुकदमा चला और भारतीय अदालत ने धर्म तेजा को सजा दी।
उससे पहले लंदन की एक अदालत में धर्मतेजा ने आरोप लगाया था कि उसने एक बड़ी कांग्रेसी नेत्री को चुनाव में जीप खरीदने के लिए पैसे दिए थे।
दो सत्ताधारी कांग्रेसी नेताओं ने एक अखबार को 10 लाख रुपए चंदा देने का दबाव बनाया था ।
पर मैंने नहीं दिया।इसलिए सरकार नाराज होकर मुझे तंग करना चाहती है।
यह खबर उन दिनों अखबारों में छपी थी जिसका कोई खंडन नहीं आया था।
धर्म तेजा की कहानी इस देश में कतिपय सत्ताधारी नेताओं, कई अफसरों और कुछ व्यापारियों की अपवित्र साठगांठ की कहानी है।
यानी ऐसी साठगांठ की शुरुआत आजादी के तत्काल बाद ही हो चुकी थी।
यह जरुर है कि आजादी के बाद के प्रारंभिक वर्षों में घोटाले कम होते थे।घोटालों की रकम भी आम तौर पर अपेक्षाकृत कम ही रहती थी।
तब लोकलाज थोड़ा बचा हुआ था।पर, अब छोटे घोटालों ने बटवृक्ष का रूप धारण कर लिया है।
अब कई ‘‘आधुनिक धर्म तेजाओं’’ के प्रत्यर्पण की इस देश में प्रतीक्षा हो रही है।
धर्म तेजा ने दावा किया था कि वह एक राष्ट्रवादी परिवार से हैं ।
सन 1922 में उसके जन्म के समय महात्मा गांधी उसके घर मंे ही थे।
तेज तर्रार धर्म तेजा, विजयलक्ष्मी पंडित के एक अत्यंत करीबी रिश्तेदार के जरिए तत्कालीन प्रधान मंत्री नेहरू के नजदीक पहुंचा था।उनका करीबी बना।
नेहरू परिवार के एक करीबी ने लिखा है कि इंदिरा गांधी उनकी आवभगत किया करती थीं।खुद नेहरू उसके काम और व्यापारिक प्रस्तावों से प्रभावित थे।
नेहरू के 13 साल तक निजी सचिव रहे एम.ओ.मथाई के अनुसार नेहरू को पैसे का तो कोई लोभ नहीं था।पर,संभव है कि वह यह समझते हों कि धर्म तेजा देश के विकास में मददगार होगा।
धर्मतेजा का दावा था कि उसने कुछ विदेशी हस्तियों से जवाहरलाल नेहरु की मुलाकात करवाई थी।
परिवहन और जहाज रानी मंत्रालय के तत्कालीन सचिव डा.नगेंद्र सिंह ने धर्म तेजा के प्रति प्रधान मंत्री की मेहरबानी पर एतराज किया था।
उन्होंने मथाई से मिलकर अपना एतराज जताया था।डा.सिंह मानते थे कि धर्म तेजा सरकार को नुकसान पहुंचा सकता है।
धर्म तेजा ने अपने धंधे को जारी रखने के लिए इस देश की प्रभावशाली हस्तियों के रिश्तेदारों को अपनी कंपनी से जोड़ा।
वित्तीय कुप्रबंधन के कारण जब जयंती शिपिंग कंपनी के कर्मचारियों को वेतन के लाले पड़ गए तो संसद में डाह्या भाई पटेल ने,जो सरदार पटेल के पुत्र थे, आवाज उठाई।इंदिरा गांधी सरकार को जांच करानी पड़ी।
जांच रपट के आधार पर सी.बी.आई.ने कोर्ट में आरोप पत्र दाखिल कर दिया।
कोर्ट ने आरोपों को सही मान कर धर्म तेजा को सजा सुनाई।
भारत सरकार की राजनीतिक और प्रशासनिक कार्यपालिका के बीच धर्म तेजा को लेकर समय -समय पर मतभेद उभरे।
पर,तब के दिग्गज प्रतिपक्षी नेताओं ने अक्सर धर्म तेजा के कारनामों को उजागर ही किया।
डा.राम मनोहर लोहिया ने तब संसद में यह आरोप लगाया था कि प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी ने धर्म तेजा से महंगा ‘‘मिंक कोट’’ उपहार के रूप में स्वीकार किया है।
उसे सरकार के पास जमा नहीं किया गया।जब इस पर हंगामा हुआ तो इंदिरा गांधी ने उस कोट को बाद में जमा करवा दिया।दूसरी ओर, एक अन्य प्रधान मंत्री ने बाद के वर्षों में सार्वजनिक रूप से यह कह दिया था कि धर्म तेजा ने देश से जितना लिया,उससे अधिक देश को दिया है।हालांकि कोर्ट और आयकर महकमे की राय अलग रही।
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वेबसाइट-मनीकंट्रोल हिन्दी पर 10 दिसंबर 22 को प्रकाशित
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