शुक्रवार, 30 दिसंबर 2022

 


छात्राओं की सुरक्षा के लिए ‘छेड़खानी विरोधी दस्तों’ का सशक्तीकरण जरूरी 

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सुरेंद्र किशोर

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कुछ साल पहले पटना पुलिस ने ‘एंटी रोमियो दस्ता’ बनाया  था।

पर,वह कारगर नहीं हो सका।

 पटना सहित बिहार के विभिन्न जिलांे से यह खबर आती रहती है कि शैक्षणिक संस्थाओं के आसपास ‘‘छेड़खानी दस्ते’’ सक्रिय रहते हैं।

छात्राओं की मदद के लिए वहां एंटी रोमियो दस्ता नजर नहीं आता।

कुछ जगहों से यह भी खबर मिल रही है कि इस कारण कुछ छात्राएं स्कूल जाना छोड़ रही हैं।

  पटना के एक स्कूल में असामाजिक तत्व परिसर में भी प्रवेश कर जाते हैं। 

उन्हें स्थानीय दबंगों का संरक्षण हासिल रहता है।

ऐसे में शिक्षक कौन कहें,छात्राओं के अभिभावक भी खुद को लाचार और बेबस महसूस करते हैं।

  छात्राओं के साथ ऐसी घटनाओं का उनके मन -मस्तिष्क पर बुरा असर पड़ता है।

उनका सामान्य विकास नहीं हो पाता।

इस संबंध में एक संस्था ने सर्वेक्षण भी किया है।

पहले बिहार में पुलिस बल की कमी थी।अब तेजी से बहालियां हो रही हैं।

  राज्य सरकार को चाहिए कि वह अधिक संख्या में छेड़खानी विरोधी दस्तों का गठन करे।

उनमें शामिल पुलिस बल की विशेष टंे्रनिंग हो।

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    एक बार फिर ‘स्कूटर पर सांड’ 

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     छह दिसंबर, 1985 को रांची से सड़क मार्ग से घागरा चार सांड पहुंचाए गए।

रांची से घागरा की दूरी 344 किलोमीटर है।

   बिहार सरकार के पशुपालन विभाग ने इसके एवज में तैयार 1289 रुपये के जाली बिल का भुगतान  ठेकेदार को कर दिया। 

पर, जब इस विपत्र की सघन जांच सी.ए.जी..ने की तो उसे पता चला कि जिस वाहन का बिल पेश किया गया था , वह कोई ट्रक नहीं बल्कि स्कूटर था।यानी सांड वहां भेजे  ही नहीं गये थे।सब कुछ जाली था।

याद रहे कि तब तक बिहार का विभाजन नहीं हुआ था।

1985 में राज्य में कांग्रेस की सरकार थी।

  इस साल भी सी.ए.जी.की ताजा रपट बिहार विधान सभा के पटल पर रखी गई।

 इस ताजा रपट

में भी उसी तरह के घोटाले की चर्चा है जबकि पिछले घोटालेबाजों को सजा हो चुकी है।

 आखिर, ऐसा क्यों हो रहा है ?

घोटालेबाज पिछली सजा से कुछ सीख क्यों नहीं रहे हैं ?  इसलिए कि ऐसे मामलों में कम ही सजा का कानूनी प्रावधान है। 

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   चुनावी भविष्यवाणी में जल्दीबाजी

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सन 2024 के लोक सभा चुनाव का क्या नतीजा होगा ?

इस पर पक्के तौर पर कुछ कहना अभी जल्दीबाजी होगी।

हां,कोई चाहे तो अपनी सदिच्छा को भविष्यवाणी के रूप में प्रस्तुत कर सकता है।हालांकि वह अपनी साख की कीमत पर ही ऐसा करेगा।फिर भी कुछ लोग ऐसा कर रहे हैं।

  अभी पूरा साल यानी 2023 सामने है।अगले साल नौ राज्य विधान सभाओं के चुनाव होने हैं।

उस चुनाव के क्या नतीजे होते हैं,पहले उसे देख और समझ लेना महत्वपूर्ण होगा।

इसके साथ ही,अगले सवा साल में देश-दुनिया में कैसी -कैसी घटनाएं होती हैं,वह भी देखना होगा।क्योंकि उन घटनाओं का यहां के अगले चुनाव पर असर पड़ सकता है।

यह भी संभव है कि उसका निर्णायक असर हो !

इसीलिए भविष्य वक्ताओं को अभी से अधीर नहीं होना चाहिए।

हां, राजनीतिक दलों के नेताओं को अपने पक्ष में भविष्यवाणियां करके हवा बनाने की पूरी छूट है। 

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भूली बिसरी याद  

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सन 1939 के त्रिपुरी कांग्रेस के अध्यक्षीय भाषण में नेता जी सुभाषचंद्र बोस ने कहा था कि ब्रिटिश शासन से निर्णायक

संघर्ष की घड़ी आ गई है।

मध्य प्रदेश में स्थित त्रिपुरी में कांग्रेस का राष्ट्रीय अधिवेशन हुआ था।

उसमें सुभाषचंद बोस अध्यक्ष चुने गए थे।

नेता जी ने अपने ऐतिहासिक भाषण में कहा था कि ‘‘अब हमारे पास जो ताकत है ,वह है सत्याग्रह की ताकत।

ब्रिटिश सरकार आज इस स्थिति में नहीं है कि अखिल भारतीय सत्याग्रह जैसे किसी बड़े संघर्ष का वह लंबे समय तक सामना कर सके।

  मुझे इस बात का दुख है कि कांग्रेस में ऐसे निराशावादी लोग हैं जो समझते हैं कि अभी ब्रिटिश साम्र्राज्यवाद पर कोई बड़ा हमला करने का समय नहीं आया है।

पर,मुझे निराशा का कोई कारण नजर नहीं आता।

 आठ प्रांतों में कांग्रेस के सत्ता में होने के कारण हमारी राष्ट्रीय संस्था की ताकत और प्रतिष्ठा बढ़ी है।

पूरे ब्रिटिश भारत में जन आंदोलन काफी आगे बढ़ चुका है।

देशी रियासतों में एक अभूतपूर्व जागृति पैदा हुई है।

स्वराज की दिशा में अंतिम कदम उठाने को हमारे राष्ट्रीय इतिहास में इससे अच्छा मौका और क्या हो सकता है ?

तब, जबकि अंतरराष्ट्रीय हालत भी हमारे पक्ष में है।’’

याद रहे कि महात्मा गांधी तथा अन्य नेतागण बोस के इस विचार से सहमत नहीं थे।

अंततः उन्हें कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफा देना पड़ा।नेता जी ने फारवर्ड ब्लाक नाम से अपनी पार्टी का गठन किया। 

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    और अंत में 

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पटना के मजहरुल हक पथ यानी फ्रेजर रोड पर सड़क पार करना बहुत ही कठिन काम है।

पटना रेलवे जंक्शन से निकल कर गांधी मैदान जाने वाली इस सड़क पर दिन भर बड़ी संख्या में हर तरह के वाहनों की आवाजाही होती रहती है।

सड़क की दोनों ओर महत्वपूर्ण दुकानें हैं।

भारी ट्राफिक के कारण एक तरफ से दूसरी तरफ जाना कठिन काम है।पता नहीं, अब तक शासन ने इस मार्ग पर ‘‘फुट ओवर ब्रिज’’ बनाने के बारे में क्यों नहीं सोचा ?

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प्रभात खबर,पटना,26 दिसंबर 22

 


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