मंगलवार, 27 दिसंबर 2022

 आज का चिंतन

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सुप्रीम कोर्ट से इस आम नागरिक की,

जो संयोग से पत्रकार भी है,आतुर गुहार !

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सुरेंद्र किशोर

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सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय संविधान के अनुच्छेद-142 का सहारा लेकर बाबरी मस्जिद -राम मंदिर विवाद सलटा दिया है।

याद रहे कि उस विवाद को शांतिपूर्ण ढंग से सलटाना इस देश के नेताओं के वश में नहीं था।

यह काम हमारी सबसे बड़ी अदालत को करना पड़ा।

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इस बीच हमारे देश में कुछ ऐसी समस्याएं पैदा आती रहती हैं या की जाती हैं जिन्हें हमारे नेता या तो सलटाना नहीं चाहते या वे सलटा नहीं पा रहे हैं।या उन समस्याओं को बनाए रखने में उनका निहित स्वार्थ है। 

सुप्रीम कोर्ट से मेरी आतुर गुहार है कि उन मामलों को भी आप ही सलटाइए ताकि लोगों का लोकतंत्र में विश्वास बना रहे।

यदि लोकतंत्र नहीं रहेगा तो स्वतंत्र न्यायपालिका भी नहीं रहेगी।

वैसे भी इन दिनों सुपीम कोर्ट कुछ अधिक ही सक्रिय हो चला है।

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फिलहाल मैं दो-तीन मुख्य बातों की ही चर्चा करूंगा।

1. दिल्ली सरकार के मंत्री सत्यंेद्र जैन जेल में हैं ।फिर भी वे मंत्री बने हुए हैं।

संविधान निर्माताओं ने इस बात की कल्पना भी नहीं की होगी कि एक दिन इस देश ऐसे-ऐसे नेता और उस दल के

ऐसे सुप्रीमो होंगे जिनका लोकलाज से तनिक भी संबंध न होगा।

यह अनर्थ उसी महा नगर में हो रहा है जहां सुप्रीम कोर्ट का वास है।

ऐसा अनर्थ हाल में महाराष्ट्र में भी हो चुका है।आगे भी नहीं होगा,उसकी कोई गारंटी नहीं।

इसलिए हे सुप्रीम कोर्ट ! जल्दी कोई उपाय करिए।

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2.-सांसद फंड-विधायक फंड इस देश के भ्रष्टाचार को आगे बढ़ाने के लिए ‘डबल इंजन’ का काम कर रहा है।

वीरप्पा मोइली के नेतृत्व वाले प्रशासनिक सुधार आयोग ने बहुत पहले ही यह सिफारिश कर रखी है कि सांसद क्षेत्र विकास फंड को बंद कर देना चाहिए।

इसके बावजूद इसे न तो प्रधान मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी चाहते हुए भी बंद नहीं कर पाए और न ही प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह चाहते हुए भी बंद कर पाए।

इस फंड के समर्थकों की जरा ‘ताकत’ तो देखिए !

प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी भी इसे चाहते हुए भी नहीं बंद कर पा रहे हैं।

अब तो सुप्रीम कोर्ट ही सहारा है।

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सांसद-विधायक फंड किस तरह अपवादों को छोड़कर प्रशासन व राजनीति को दूषित कर रहा है,यह बात बच्चा-बच्चा जानता है।

यदि अदालत को शक हो तो वह एक जांच आयोग बैठा दे।

क्या यह बात सही है कि सांसद-विधायक फंड के खर्चे की जांच सी.ए.जी.नहीं करता ?

दरअसल सांसद-विधायक फंड को खत्म किए बिना प्रशासन-राजनीति से भ्रष्टाचार दूर करना असंभव होगा।

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1993 में सुप्रीम कोर्ट के जज रामास्वामी के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव संसद में आया था।

उस प्रस्ताव को कांग्रेस और मुस्लिम लीग ने मिल कर पास नहीं होने दिया।

क्या यह बात सही है कि उस घटना के बाद न्यायपालिका के बीच के भ्रष्ट तत्वों का मनोबल बढ़ गया है ?

सुप्रीम कोर्ट को इस बात की जांच करानी चाहिए।

इससे अदालतों का सम्मान और भी बढ़ेगा।

इस तरह यह मामूली आदमी सबसे बड़ी अदालत से, जो उम्मीद की आखिरी किरण है,लोकतंत्र के तीनों स्तम्भों की सफाई के उपाय करने की गुहार की हैै।

सुप्रीम कोर्ट को अनुच्छेद -142 के जरिए बहुत बड़ा ब्रह्मास्त्र प्रदान कर दिया गया है।

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अनुच्छेद-142 के अनुसार,

‘‘उच्चत्तम न्यायालय अपनी अधिकारिता का प्रयोग करते हुए ऐसी डिक्री पारित कर सकेगा या ऐसा आदेश कर सकेगा जो उसके समक्ष लंबित किसी वाद या विषय में पूर्ण न्याय करने के लिए आवश्यक हो और इस प्रकार पारित डिक्री या किया गया आदेश भारत के राज्य क्षेत्र में सर्वत्र ऐसी रीति से, जो संसद द्वारा बनाई गई किसी विधि द्वारा या उसके अधीन विहित की जाए,और जब तक इस निमित्त इस प्रकार उपबंध नहीं किया जाता है तब तक ,ऐसी रीति से जो राष्ट्रपति आदेश द्वारा विहित करे, प्रवर्तनीय होगा।’’

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27 दिसंबर 2022

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