कानोंकान
सुरेंद्र किशोर
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अपराधीकरण पर आयोग की सिफारिश पर गौर
करे सुप्रीम कोर्ट
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चुनाव आयोग ने गंभीर अपराधों के आरोप के तहत मुकदमे का सामना कर रहे लोगों को चुनाव नहीं लड़ने देने की सिफारिश की है।
सन 2013 के नवंबर में चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष इस संबंध में एक महत्वपूर्ण प्रस्ताव रखा था।
वह प्रस्ताव अपराधियों को चुनावी राजनीति से दूर रखने के लिए था।
चुनाव आयोग की राय रही है कि यदि किसी व्यक्ति के खिलाफ ऐसे मामले में कोर्ट ने आरोप गठित कर दिया है जिसके तहत उसे पांच साल की सजा हो सकती हो,तो उस व्यक्ति को चुनाव लड़ने से वंचित कर दिया जाना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट यदि इस दिशा में कोई ठोस कदम उठाता है तो वह देश के लोकतंत्र और शांतिप्रिय लोगों के लिए बड़ी राहत की बात होगी।़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़
पिछले ही महीने सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग की निष्पक्षता की चिंता की है।
उसकी चिंता जायज है।
सबसे बड़ी अदालत की मंशा यह है कि मुख्य चुनाव आयुक्त और आयोग के अन्य सदस्यों के पदों पर निष्पक्ष लोगों की तैनाती हो।
पर,इस मामले में कोई राह तैयार होने से पहले देश की सबसे बड़ी अदालत चुनाव आयोग की पिछली सिफारिशों को लागू कराने का प्रयास कर सकती है।उससे देश के लोकतंत्र का भला होता।
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गैर जरूरी उप चुनाव
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सन 2017 और उसके बाद से अब तक उत्तर प्रदेश के रामपुर में लोक सभा और विधान सभा के कुल पांच चुनाव हो चुके है।
इस महीने छठे चुनाव के लिए वोट डाले जाएंगे।
वैसे तो वहां इस अवधि में लोक सभा व विधान संभा के सिर्फ तीन चुनाव ही होने चाहिए थे।
पर, तीन उप चुनाव भी कराने पड़े।
ऐसा सिर्फ उत्तर प्रदेश में ही नहीं हुआ है।
देश भर में आए दिन ऐसा होता रहता है।
क्यों न उप चुनावों का प्रावधान ही समाप्त कर दिया जाए ?
यदि कोई सीट खाली होती है तो उसे सदन की अवधि समाप्त होने तक खाली ही रहने दिया जाए।
या, ऐसी संवैधानिक व्यवस्था हो कि संबंधित दल वैकल्पिक व्यक्ति का नाम दे दे।
उसे सदन का सदस्य मनानीत कर दिया जाए।
इसलिए जरूरी है कि निचले सदन में मनोनयन के लिए कुछ सीटें निर्धारित कर दी जाएं।
हां,इसमें एक अपवाद हो सकता है।यदि कोई सरकार मात्र एक या दो विधायक या सांसद के बहुमत से चल रही हो तो वहां का कोई उप चुनाव टाला नहीं जाना चाहिए।
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़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़हत्या के मामलों की केस डायरी
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दंड प्रक्रिया संहिता ,1973 की धारा -172 के तहत प्रत्येक पुलिस अधिकारी अन्वेषण में की गई अपनी कार्यवाही को दिन -प्रतिदिन एक डायरी में लिखेगा।उसमें उस समय का जिक्र होगा,जब उसे घटना की जानकारी मिली।
वह समय लिखेगा जब उसने जांच शुरू की।वह समय जिन स्थानांे पर अन्वेषण अधिकारी गया।
वह समय भी डायरी में लिखेगा जब उसने जांच का काम पूरा किया।
याद रहे कि किसी मामले में केस डायरी का बड़ा महत्व होता है।
यदि किसी डायरी में जानबूझ कर हेर-फेर कर दी जाए तो अभियुक्त के बच निकलने की आशंका रहती है।
क्या बिहार राज्य पुलिस मुख्यालय कम से कम हत्याओं के मामलों में पुलिस थानों में लिखी जा रही डायरियों की माॅनिटरिंग नहीं कर सकती ?
याद रहे कि राज्य में हत्या और हत्या के प्रयासों के मामलों बिहार में अदालती सजा का प्रतिशत असंतोषजनक है।
आधुनिक तकनीकी के इस युग में हत्या के अनुसंधान के कम मंें लिखी जा रही डायरियों का विवरण समय -समय पर राज्य पुलिस मुख्यालय चाहंेे तो अपने पास मंगवा सकता है।या मुख्यालय थानों को यह निदेश दे दे कि वे डायरी भेज दिया करे।
इससे यह होगा कि किसी प्रभाव में आकर केस डायरी में परिवर्तन कर देने की आशंका समाप्त हो जाएगी।
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भूली-बिसरी याद
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देशरत्न डा.राजेंद्र प्रसाद ने लिखा है कि ‘‘महात्मा गांधी मनुष्य का चरित्र सुधारने के लिए यह जरूरी समझते थे कि नशा छोड़ दी जाये।
क्योंकि कोई भी जब नशे में होता है तो उसका विवेक नष्ट हो जाता है।
वह भला-बुरा ,पाप-पुण्य और सत्य-असत्य का भेद समझने में असमर्थ हो जाता है।
उसकी शक्ति इतनी क्षीण हो जाती है कि वह अपने को संभाल भी नहीं सकता।
राजेन बाबू लिखते हैं कि ‘‘इसीलिए गांधी जी नशाबंदी को एक आवश्यक और महत्वपूर्ण बात मानते थे।
वे चाहते थे कि जनता में प्रचार करके नशा छुड़वाया जाए और सरकार भी इसे कानून द्वारा बंद कर दे।
इसीलिए सन 1921 में ही उनके आदेश से शराब,गांजा आदि की दुकानों पर धरना देने का कार्यक्रम प्रारंभ किया गया था।’’
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और अंत में
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सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस के.एम.जोसेफ और जस्टिस हृषिकेश राय के खंड पीठ ने गत 9 नवंबर को एक केस की सुनवाई करते हुए कहा कि ‘‘भ्रष्ट लोग देश को तबाह कर रहे हैं और पैसे की मदद से बच निकलते है।’’
उससे पहले इसी माह की 3 तारीख को प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि ‘‘हमें ऐसा प्रशासनिक पारिस्थितिकी तंत्र विकसित करना है जो भ्रष्टाचार के खिलाफ शून्य सहिष्णुता रखता हो।’’
इन दो शीर्ष हस्तियों की ऐसी टिप्पणियों में भ्रष्टाचार पीड़ित लोगों को उम्मीद की नयी किरण दिखाई पड़ती है।
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प्रभात खबर
पटना
5 दिसंबर 22
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