स्वहित,परिवार हित और जाति हित की परवाह किए बिना आबकारी मंत्री जगलाल चैधरी ने कभी लागू कर दिया था बिहार में पूर्ण नशाबंदी
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सुरेंद्र किशोर
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आजादी के बाद की बिहार सरकार में जगलाल चैधरी आबकारी मंत्री थे।
वैसे तो वे सन 1937 में गठित राज्य मंत्रिमंडल में भी चार मंत्रियों में एक मंत्री थे।
अन्य तीन थे-डा.श्रीकृष्ण सिंह (प्रीमियर),डा.अनुग्रह नारायण सिंह और डा.सैयद महमूद।
जगजीवन राम उस सरकार के संसदीय सचिवों में से एक थे।
चैधरी जी पासी जाति से आते थे।
खुद उनका परिवार ताड़ी के व्यवसाय पर निर्भर था।
इसके बावजूद आबकारी मंत्री के रूप में जगलाल चैधरी ने नशाबंदी लागू कर दी।
उनका परिवार ताड़ी की आय से ही चैधरी जी को कलकता मेडिकल काॅलेज में डाॅक्टरी पढ़ा रहा था।
फिर भी चैधरी जी ने न तो अपने परिवार की आय की परवाह की और न अपनी जाति के आर्थिक हित की।
बाद में खुद उन्हें नशाबंदी की भारी कीमत चुकानी पड़ी।
कांग्रेस हाईकमान ने चैधरी जी को बाद में कभी
मंत्री नहीं बनने दिया।
दरअसल चैधरी जी कट्टर गांधीवादी थे।
(इस राजनीतिक घटना से भी इस आरोप के बल मिलता है कि आजादी के तत्काल बाद की कांग्रेस व उसकी सरकारों को गांधीवाद से कम ही मतलब रह गया था।)
दरअसल चैधरी जी नशाखोरी से होने वाले नुकसान को जानते थे।गांधी जी ने उन्हें सिखाया था।
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आबकारी मंत्री चैधरी ने कहा था कि ‘‘जब मैं अपने बजट को देखता हूं तो मालूम होता है कि इस साल हम पंद्रह करोड़ रुपए खर्च करेंगे।इसमें हम पांच करोड़ रुपए तो गरीबों के पाॅकेट से उन्हें शराब पिला कर लेंगे।’’
(याद रहे कि गांधी ने कहा था कि यदि सरकारी स्कूल का खर्च आबकारी आय से चलता हो तो वैसे स्कूलों का न चलना ही बेहतर है।)
कट्टर गांधीवादी जगलाल चैधरी के नशाबंदी आदेश से सबसे अधिक नुकसान उनकी अपनी ही पासी जाति को हुआ था।पर इस बारे में वे कहते थे कि
‘‘यह समाज कोई और रोजगार करे।
गरीब -दलित यदि शराब का व्यापार और शराब पीना छोड़ देंगे तो उनकी प्रतिष्ठा भी समाज में बढ़ेगी और उनकी गरीबी भी कम होगी।’’
पर, उनके मंत्री नहीं रहने पर नशाबंदी का आदेश बिखर गया था।
बाद के मंत्रिमंडल में जब उन्हें मंत्री नहीं बनाया गया तो राजनीतिक हलकों में यह आम चर्चा थी कि शराबबंदी के पक्ष में उनके विशेष आग्रह के कारण ही ऐसा हुआ।
चैधरी जी पर कांग्रेस हाईकमान भी नाराज हो गया था।
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याद रहे कि गांधी जी से प्रभावित होकर जगलाल चैधरी ने जब आजादी की लड़ाई में शामिल होने के लिए पढ़ाई छोड़ दी तब वे कलकत्ता में मेडिकल छात्र थे।
उनका चैथा साल था।
पर , उन्होंने कहा कि अब मेरे लिए इस पढ़ाई का कोई मतलब नहंीं रहा।
संयोग से वे उस चुनाव क्षेत्र (गड़खा,सारण)से लड़ते थे जहां मेरा पुश्तैनी गांव है।
उन्हें मैंेने अपने गांव में बचपन में देखा था।
सादगी की प्रतिमूत्र्ति थे।
वे लोगों से कहा करते थे कि आपलोग अंग्रेजी दवाओं से भरसक दूर रहें।
खेतों में रासायनिक खादों के बदले जैविक खाद डालें।भूजल स्त्रोतों की रक्षा करें।यानी, कम से कम ट्यूब वेल लगवाएं।
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एक और प्रकरण और !
चैधरी जी की बेटी की जब शादी थी,तब वे बिहार में मंत्री थे।
उनकी सरकार ने हाल ही में विधायिका से गेस्ट कंट्रोल एक्ट पास करवाया था।
शायद उसके अनुसार अत्यंत सीमित संख्या --तीस या पैंतीस --में ही अतिथियों को बुलाने का नियम बनाया गया।
बारात आई।उतने ही लोगों का खाना बना था।
पर,बिना बुलाए कई अतिथि आ गए।
नतीजतन खुद चैधरी जी के परिवार को उस रात भोजन नहीं मिला।
चैधरी जी ने अतिरिक्त भोजन नहीं बनने दिया था।
शादी को सम्मेलन बनाने वाले नेताओं के आज के दौर में
जगलाल चैधरी याद आते हैं।
हालांकि गेस्ट कंट्रोल एक्ट आज भी लागू है ,पर सिर्फ कागज पर।
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एक जगलाल चैधरी थे,और दूसरी ओर आज के अनेक नेता हैं जो बिहार में जारी शराबबंदी को फिर से चालू करवाना चाहते हैं।
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1 दिसंबर 22
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