मंगलवार, 27 दिसंबर 2022

 ‘गोदी मीडिया’ कब नहीं था ?!

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सुरेंद्र किशोर

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सन 1987 से 1989 तक इस देश में बोफोर्स घोटाले की जोरदार चर्चा रही।

उस तथा कुछ अन्य घोटालों के कारण सन 1989 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की सीटें 404(1984 में इतनी सीटें मिली थीं।) से घट कर 197 रह गईं।

बाद में संबंधित प्रभावशाली संस्थाओं व हस्तियों ने मिलकर इस घोटाले के मुख्य आरोपितों को साफ बचा लिया।

हालांकि मनमोहन सिंह के प्रधान मंत्रित्व काल में ही भारत सरकार के ही आयकर न्यायाधीकरण ने बोफोर्स घोटाले की दलाली का पर्दाफाश कर दिया था।

नतीजतन,

सन 2019 के नवंबर में आयकर विभाग ने मुम्बई स्थित बोफोर्स दलाल विन चड्ढ़ा के फ्लैट को 12 करोड़ ़2 लाख रुपए में नीलाम कर दिया,इंकम टैक्स के पैसे वसूलने के लिए।

आयकर महकमे का तर्क था कि दलाली में जो पैसे मिले हैं,उस पर आयकर बनता है। 

उससे पहले न्यायाधीकरण ने कह दिया था कि बोफोर्स की दलाली के मद में 41 करोड़ रुपए क्वात्रोचि और विन चड्ढ़ा को मिले थे।

याद कीजिए,राजीव गांधी लगातार कहते रहे कि बोफोर्स सौदे में कोई दलाली नहीं ली गई।लोस की सीटें 

इसलिए घटी क्योंकि मतदाताओं को लगा कि गोदी मीडिया की मदद से प्रधान मंत्री राजीव गांधी बोफोर्स दलाल क्वात्रोचि का लगातार बचाव कर रहे हैं।

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 सी.बी.आई. ने स्विस बैंक की लंदन शाखा में बोफोर्स की दलाली के पैसे का पता लगा लिया था।

वह पैसा क्वात्रोचि के खाते में था।

उस खाते का नंबर था-99921 टी.यू.।

बोफोर्स घोटाले के आरोप पत्र में भी यही खाता नंबर है।

 उस खाते को गैर- कांग्रेसी शासन काल में सी.बी.आई.ने जब्त करवा दिया था।

पर बाद में मन मोहन सरकार ने अपने एक बड़े अफसर को  लंदन भेजकर उस जब्त खाते को खुलवा दिया।

   उससे पहले क्वात्रोचि को भारत से भाग जाने दिया गया था।

  लंदन बैंक के अपने खाते से पैसे भी क्वात्रोचि ने निकाल लिए।

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आज मैं एक पत्रिका की फाइल उलट रहा था। 

20 नवंबर 1988 का वह अंक मेरे सामने है।

उसमें एक बड़े पत्रकार का लेख छपा है जिसमें उस स्विस बैंक खाते की चर्चा है।

उस लेख का शीर्षक है--‘‘द चार्ज आॅफ लाई ब्रिगेड’’।

लेख वी.पी.के सख्त खिलाफ और राजीव गांधी के बचाव में है।(वह पत्रिका तब गोदी मीडिया का जीता-जागता उदाहरण थी।)

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चार्ज लगाया था वी.पी.सिंह ने पटना में अराजपत्रित कर्मचारियों की सभा में।

4 नवंबर 1988 को उस सभा में श्री सिंह ने कहा कि स्विस बैंक की लंदन शाखा में बोफोर्स की दलाली के पैसे खुफिया खाते में रखे हुए हैं।

उस खाते का नंबर है--99921 टी.यू.।

 उस सभा में मैं जनसंत्ता संवाददाता के रूप में मौजूद था।

मुझे टी.यू.के बदले पी.यू. सुनाई पड़ा।(मेरी गलती थी)

मैंने जनसत्ता को रपट भेजी।

संख्या तो सही छपी,किंतु टी.यू.के बदले पी.यू.छपा।

  सिर्फ एक ही अखबार में यानी सिर्फ जनसत्ता में खाता नंबर छपा था।(कल्पना कीजिए कि तब गोदी मीडिया का कितना बड़ा विस्तार था !)

एक न्यूज एजेंसी ने यह खबर 4 नवंबर को ही जारी भी की थी।पर,ऊपरी दबाव में उस खबर को ‘किल’ कर दिया गया।

उस दिन देर शाम आई.बी.के दो अफसर हमारे ‘जनसत्ता’ आॅफिस में आ धमके।

मुझे आशंका हुई।पर उन्हें सिर्फ खाता नंबर चाहिए था।दिल्ली से मांग हुई थी।

मैंने दे दिया क्योंकि वह तो सार्वजनिक हो चुका था। 

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वी.पी.सिंह ने 8 नवंबर, 1988 को नई दिल्ली में वही आरोप दुहराया और खाता नंबर बताया।

दूसरी बार, जनसत्ता में खाता नंबर सही छपा।

उस पत्रिका के लेखक ने पी.यू. बनाम टी.यू. को मुद्दा बना कर अपने लेख में वी.पी.सिंह की पूरी खिंचाई कर दी।

उन्हें नौटंकीबाज लिखा।

 इस तरह उसने गोदी मीडिया की भूमिका सफलतापूर्वक निभाई।

वह भी एक भ्रष्टाचार के बचाव में और भ्रष्टाचार के खिलाफ अभियान चलाने वाले के खिलाफ जाकर।

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मैंने गोदी मीडिया का यहां एक ही उदाहरण दिया है।

आजादी के बाद के ऐसे अनेक उदाहरण आपको मिल जाएंगे।

बोफोर्स घोटाला विवाद के समय देश का मीडिया दो हिस्सों में बंट चुका था।

उन दिनों के अखबार और पत्रिकाआंे की फाइलें देखने से यह बात साबित हो जाएगी।

कुछ अखबार राजीव सरकार के घोटालों को उजागर करने में लगे थे तो अन्य अधिकतर सरकार पक्षी अखबार बचाव और वी.पी.सिंह के खिलाफ झूठे आरोप गढ़ने और उसे छापने में लगे थे।

 वी.पी.सिंह के खिलाफ आरोप अंततः गलत साबित हुए।

राजीव गांधी के खिलाफ आरोप सही साबित हुए।तभी तो विन चड्ढा का फ्लैट जब्त हुआ।

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(इस पोस्ट के साथ उस पत्रिका के लेख के संबंधित अंश की फोटोकाॅपी है।

साथ में बोफोर्स केस से संबंधित आरोप पत्र का वह पेज है जिस पर  स्विस बैंक का खाता नंबर लिखा हुआ है।)

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27 दिसंबर 22

 

 


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